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Ballia: पद्म पुराण के उपसंहार खंड के अनुसार, भृगु मुनि ने श्री हरि विष्णु को त्रिदेव परीक्षण के दौरान छाती पर पैर से प्रहार किए थे, जिसका पश्चाताप भी भृगु जी को करना पड़ा. भृगु मुनि को अंत में इसी पावन धरा पर मोक्ष की प्राप्ति हुई. आज भी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा मास में जो गंगा स्नान कर भृगु मुनि के चरणों पर जल चढ़ाता है, उसके जन्म-जन्मांतर के पाप दूर हो जाते हैं. इसी दौरान बलिया में भृगु जी के द्वारा ही एक मेले की शुरुआत की गई, जो परंपरा आज भी बरकरार है. इस मेले में देश-दुनिया के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. भृगु जी ने अपने शिष्य दर्दर मुनि के नाम पर ही इस मेले का “ददरी मेला” रखा था.

क्यों मचा है बवाल
बताते चलें कि प्राचीन काल से इस मेले का आयोजन नगर पालिका करती आ रही है. इस बार ऐतिहासिक और पौराणिक मेले को लेकर जिस प्रकार का निर्णय नगर पालिका ने किया है, उसे जानकर न केवल आप हैरान होंगे, बल्कि होश भी उड़ जाएंगे. इस बारे में लोकल 18 की टीम ने यहां की जनता से बात की और उनकी राय मांगी. जानते हैं क्या है पूरा माजरा और क्यों मचा है नगर पालिका के इस फैसले से बवाल.

गाय, भैंस, बैल और घोड़े की खरीद-बिक्री पर रोक
ददरी मेले का महत्वपूर्ण भाग नंदी मेला है. नगर पालिका अध्यक्ष बलिया संत कुमार गुप्ता उर्फ मिठाई लाल ने सीधे तौर पर कहा है कि “गाय, भैंस, बैल इत्यादि पशुओं की खरीद-बिक्री प्राचीन काल से होती आ रही है.” पशु मेले में पशुओं को लेकर कई तरह की परेशानी भी हो जाती है, इसलिए इस बार गाय, बछड़े, बैल वगैरह पशुओं की खरीद-बिक्री पूरी तरह से प्रतिबंधित रहेगी. अध्यक्ष ने आगे बताया कि मेले में बाकी सब पहले जैसा ही रहेगा लेकिन परंपरागत पशु मेले में बदलाव किया जाएगा.

गाय-बैल की जगह लेंगे विदेशी नस्ल के कुत्ते-बिल्ली
इस बार इस ऐतिहासिक और पौराणिक मेले की सुंदरता विदेशी नस्ल की बिल्लियां और कुत्ते बढ़ाएंगे. अध्यक्ष का कहना है कि, अब तक मेले का प्रारूप जो भी रहा हो, इस बार उसे कुत्ते और बिल्ली बदल देंगे. पहली बार विदेशी नस्ल के कुत्ते और बिल्ली आ रहे हैं, इसलिए उन्हें आमंत्रित किया जा रहा है. इनका ऐतिहासिक ददरी मेले में स्वागत भी किया जाएगा.

बोले बलियावासी – नंदीग्राम मेले का मिटने वाला है अस्तित्व
यह मेला खासतौर से भृगु मुनि ने जनता के लिए शुरू किया था. इस नई पहल को लेकर लोकल 18 ने बलिया की जनता से बात की, तो तमाम लोगों (वरिष्ठ नागरिक चंद्रशेखर उपाध्याय, चेतन सिंह और आलोक रंजन इत्यादि) ने इस पर नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि, अब धीरे-धीरे इस ऐतिहासिक और पौराणिक मेले का अस्तित्व मिटता जा रहा है. भृगु मुनि के द्वारा शुरू किया गया यह मेला अब कुत्ते-बिल्ली तक आ पहुंचा है. यह सही बात है कि ददरी मेले में एक नंदी मेला लगता है, जिसमें पशुओं को प्राथमिकता दी जाती है. इसमें सभी प्रकार के पशु आएं लेकिन देसी गाय, भैंस, घोड़े और बैल को प्राथमिकता देनी चाहिए. यह बहुत विचारणीय और जनपद के लिए दुखद विषय है.

Tags: Ballia news, Ground Report, Local18, News18 uttar pradesh

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