लकड़ी के पेंसिल बॉक्स से लेकर बेड और सोफे तक तैयार किए जाते हैं. इसके अलावा लकड़ी के तमाम सजावटी सामान भी बनाए जाते हैं. ये सारी चीजें विदेश के अलावा देश के सभी पर्यटन स्थलों, बड़े शहरों और मेलों में सप्लाई किए जाते हैं.
विदेश में चल रहे युद्ध के कारण सहारनपुर के कारीगर काम छोड़ने को मजबूर
सहारनपुर: सहारनपुर का नाम लकड़ी पर नक्काशी (वुड कार्विंग) के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. यहां वुड कार्विग उद्योग से प्रतिवर्ष करीब एक हजार करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित होती थी, जो अब घटकर 500 करोड़ रुपये से भी कम हो गई है. वहीं कुछ कारीगर अब वुड कार्विंग का काम छोड़कर अपना घर चलाने के लिए कुछ और काम करने को मजबूर हैं. पहले तो लॉकडाउन ने इस कारोबार को काफी नुकसान पहुंचाया और उसके बाद विदेश में चल रहे युद्ध ने इस कारोबार को खत्म होने की कगार पर पहुंचा दिया है. जहां नकाशी के इस काम से लाखों लोग जुड़े हुए थे, लेकिन अब उन लोगों को अपना घर चलाने के लिए नकाशी का काम छोड़कर कुछ और काम करना पड़ रहा है.
पेंसिल से लेकर कई तरह के बनते हैं आइटम
पूरी दुनिया में लकड़ी पर नक्काशी के लिए मशहूर सहारनपुर का वुड़ कार्विंग उद्योग यहां पर घर-घर में संचालित है. शहर के खताखेड़ी, शाहजी की सराय, सराय हिसामुद्दीन, पुरानी मंडी, कमेला कालोनी, पीरवाली गली, आज़ाद कालोनी, इंद्रा चौक, 62 फुटा रोड, रहमानी चौक, पुल कम्बोहान सहित गली मोहल्लों में लकड़ी पर हाथ से नक़्क़ाशी का काम किया जाता है. यहां पर लकड़ी के पेंसिल बॉक्स से लेकर बेड और सोफे तक तैयार किए जाते हैं. इसके अलावा, लकड़ी के तमाम सजावटी सामान भी बनाए जाते हैं. यह माल विदेश के अलावा देश के सभी पर्यटन स्थलों, बड़े शहरों, मेलों और नुमाइश में सप्लाई किया जाता है. इस काम से लाखों लोग जुड़े हुए थे, लेकिन पहले कोरोना महामारी और उसके बाद विदेश में चल रहे युद्ध के कारण भारत का माल बाहर विदेशों में पहुंच नहीं पा रहा है, जिससे नकाशी कर रहे मजदूर के ऊपर इसका सीधा असर पड़ रहा है.
बंद होने के कगार पर है वुड कार्विंग, मजदूर हैं परेशान
कारीगर महमूद हसन ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि लगभग 45 साल से वह लकड़ी पर नकाशी का काम कर रहे हैं. जैसा व्यापार पहले चल रहा था अब बिल्कुल भी वैसा व्यापार नहीं है. व्यापार मंदी के दौर से गुजर रहे हैं. कुछ लोग अपने घर को चलाने के लिए कुछ और काम करने लगे हैं, जबकि कारीगर तौसीफ बताते है कि वह बचपन से ही अपने पिताजी के साथ वुड कार्विंग का काम कर रहे हैं जिसमें वह बेड, सोफे, स्टूल, टेबल इत्यादि सामान बनाते हैं.
लॉकडाउन से भी पड़ा असर
लॉकडाउन के बाद काम पूरे तरीके से मंदी की कगार पर है काफी लोगों ने काम छोड़ भी दिया है. साथ ही विदेश में युद्ध चल रहा है जिसके कारण भारत का माल बाहर नहीं जा पा रहा. जहां पहले 10 से 12 लोग काम किया करते थे अब वहां पर मात्र दो लोग ही काम कर रहे हैं और काम को बंद करने की सोच रहे हैं.
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