प्रख्यात इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि जिले के सदर कोतवाली क्षेत्र अंतर्गत देवकली गांव में स्थित इस प्राचीन शिवालय के बारे में पद्मपुराण के दर्दर क्षेत्र महात्म में वर्णित श्लोकों के अनुसार, यत्र साक्षान्महादेवस्य त्रास्ते विमलेश्वरः अर्थात यहां महादेव साक्षात विमलेश्वर नाम से विराजमान हैं.
इसलिए गांव का नाम पड़ा देवकली…
श्रुति प्रमाण के अनुसार महर्षि भृगु ने यहां यज्ञ किया था, जिसमें आए सभी देव-देवियों को यहीं ठहराया गया था . इसलिए इस गांव का नाम देवकली पड़ा. वैसे तो इस गांव में सप्त सरोवरों के होने का उल्लेख है किन्तु ज्यादातर सरोवर भर जाने के कारण वर्तमान में केवल एक सरोवर है.
उल्टा है इस शिव मंदिर का अरघा
मंदिर के पुजारी दिलीप पांडेय ने बताया कि वह इस मंदिर के लगभग 27 साल से पुजारी हैं. यह मंदिर काफी प्राचीन है. पहले के समय में यह पूरा जंगल हुआ करता था. यहां पर ऋषि मुनियों का निवास था. यह शिवलिंग खुद ही प्रकट हुआ था. ऋषि मुनियों ने विचार किया था कि इसे काशी विश्वनाथ के यहां स्थापित किया जाएगा, लेकिन सुबह होते ही यह शिवलिंग खुद ही मुड़ गया. इस कारण ऋषि मुनियों ने इस शिवलिंग को यही स्थापित कर दिया. हर शिवालय में अरघा उत्तर दिशा में होता है, लेकिन विमलेश्वर नाथ महादेव का अरघा दक्षिण और पश्चिम के कोण पर है.
24 घंटे घूमता रहता है गुंबद का त्रिशूल
पुजारी और श्रद्धालुओं (मिथुन पांडेय अथवा शत्रुघ्न कुमार पांडेय) के मुताबिक इस मंदिर की सबसे बड़ी बात ये है कि इस मंदिर के ऊपर गुंबद पर लगा त्रिशूल सेकंड के सुई की तरह धीरे-धीरे घूमता है. यानी परिक्रमा करता है. इस विमलेश्वर नाथ महादेव से गहरी आस्था जुडी हुई है. जो भी सच्चे मन से इस दरबार में सर झुकाता है उसकी मनोकामना जरुर पूरी होती है. यहां तक की इसमें मत्था टेकने वालों के अंदर अच्छे विचार आने लगते हैं.
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FIRST PUBLISHED : December 29, 2024, 09:44 IST
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