- कॉपी लिंक
दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। आरोपी की याचिका खारिज की।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा, ‘युवाओं का ब्रेनवॉश करने वाले भाषणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।’ अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट (UAPA) से जुड़े मामले में जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने ये टिप्पणी की।
बेंच ने कहा- युवाओं का ब्रेनवॉश करने और उन्हें देश के खिलाफ गैरकानूनी कामों के लिए भर्ती करने वाले भाषणों को इस आधार पर पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता कि कोई खास आतंकी एक्टिविटी नहीं की गई है।
दरअसल, UAPA के तहत आतंकवाद से जुड़े मामले के आरोपी मोहम्मद अब्दुल रहमान को ट्रायल कोर्ट ने फरवरी 2023 में 7 साल 5 महीने की सजा सुनाई थी। उसने आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे खारिज किया गया।
मोहम्मद अब्दुल रहमान को आतंकी संगठन अल-कायदा के भारतीय संगठन के सहयोगी होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उसके पास से कई सारे फर्जी डॉक्यूमेंट्स मिले थे। इसमें फर्जी पासपोर्ट भी शामिल है। वो पाकिस्तान भी होकर आया था।
रहमान का हाईकोर्ट में तर्क था कि अगर उसे टेररिस्ट एक्टिविटी और लोगों की भर्ती करने का दोषी ठहराया गया था, लेकिन ऐसा कोई सबूत है जो साबित करने की उसने ऐसा कुछ किया है।
बेंच ने कहा-
कोर्ट ने कहा- आरोपी मोहम्मद अब्दुल रहमान अल-कायदा के भारतीय संगठन के जुड़े लोगों से संपर्क में था। उनके बीच घनिष्ठ संबंध थे। ये सभी बड़े नेटवर्क का हिस्सा थे। इसलिए ट्रायल कोर्ट का फैसला बरकरार रखा जाता है।
नेटवर्क पर ये हैं आरोप
- भड़काऊ भाषण देना
- धर्म और भारत विरोधी सामग्री बांटना
- पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठनों से संपर्क
- आतंकी संगठनों के साथ मीटिंग करना,
- टेरर ग्रुप के लिए भर्ती करना, फंड जुटाना
- भारत और यहां के पॉलिटिकल लीडर्स के खिलाफ नजर फैलाना
बेंच ने फैसले में ये बातें भी कहीं
- इस तरह की साजिशों में छिपी एक्टिविटी की जरूरत नहीं, लेकिन घोषित आतंकी संगठनों को गुप्त समर्थन जरूर मिलता है।
- आतंकी एक्टिविटी को अंजाम देने की योजना कई सालों तक चल सकती है। UAPA की धारा 18 का मोटिव ऐसी तैयारी को संबोधित करना है। भले ही कोई आतंकी एक्टिविटी न हुई हो।
- भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठन बेहद गुप्त तरीके से काम करते हैं। इसके सहयोगी अक्सर कोई सबूत नहीं छोड़ते हैं।
- फरवरी 2023 में ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता और अन्य आरोपियों को ऐसे कृत्यों को अंजाम देने की साजिश के लिए दोषी ठहराया, जो किसी आतंकवादी कृत्य को अंजाम देने की तैयारी का गठन करते हैं।
……………………………….
दिल्ली हाईकोर्ट से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें…
दिल्ली HC बोला- शारीरिक संबंध का मतलब यौन उत्पीड़न नहीं: दोषी साबित करने के लिए सबूत चाहिए; POCSO एक्ट के आरोपी को बरी किया
दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO एक्ट के मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि नाबालिग पीड़िता के शारीरिक संबंध शब्द इस्तेमाल करने का मतलब यौन उत्पीड़न नहीं हो सकता। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने इसके साथ ही आरोपी को बरी कर दिया। उसे ट्रायल कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। पूरी खबर पढ़ें…
- व्हाट्स एप के माध्यम से हमारी खबरें प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- टेलीग्राम के माध्यम से हमारी खबरें प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
- हमें फ़ेसबुक पर फॉलो करें।
- हमें ट्विटर पर फॉलो करें।
———-
🔸 स्थानीय सूचनाओं के लिए यहाँ क्लिक कर हमारा यह व्हाट्सएप चैनल जॉइन करें।
Disclaimer: This story is auto-aggregated by a computer program and has not been created or edited by Ghaziabad365 || मूल प्रकाशक ||