विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकासशील देशों को 2035 तक हर साल 300 अरब डॉलर की राशि देने की प्रतिबद्धता जताई है. यह राशि विकसित देशों द्वारा जताई गई प्रतिबद्धता से कहीं अधिक है. आईआईएसडी के एक विश्लेषण से पता चलता है कि जीवाश्म ईंधन के लिए सरकारी समर्थन 2023 में कम से कम 1,500 अरब डॉलर पर पहुंच गया. यह 2022 के बाद दूसरा सबसे बड़ा वार्षिक समर्थन होगा, जब रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक जीवाश्म ईंधन मूल्य संकट को जन्म दिया था.
सबसे ज्यादा सब्सिडी देने वाले देश
साल 2023 में जीवाश्म ईंधन के 10 सबसे बड़े सब्सिडी देने वाले देशों में रूस, जर्मनी, ईरान, चीन, जापान, भारत, सऊदी अरब, नीदरलैंड, फ्रांस और इंडोनेशिया शामिल थे. आंकड़ों के अनुसार, 23 विकसित राष्ट्रों ने जीवाश्म ईंधन सब्सिडी पर 378 अरब डॉलर खर्च किए. इन्हें विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के तहत अधिकृत किया गया है.
2035 तक देने होंगे अरबों डॉलर
पिछले महीने अजरबैजान के बाकू में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में इन देशों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद के लिए 2035 तक विकासशील देशों को हर साल 300 अरब डॉलर उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जताई थी. हालांकि, यह तेजी से गर्म हो रही पृथ्वी की समस्या से निपटने के लिए वैश्विक दक्षिण को प्रतिवर्ष आवश्यक 1,300 अरब डॉलर से बहुत कम है. भारत, बोलीविया, नाइजीरिया और मलावी ने 45 सबसे कम विकसित देशों (एलडीसी) के समूह की ओर से बोलते हुए विकासशील देशों के लिए नए जलवायु वित्त पैकेज की कड़ी आलोचना की.
जीवाश्म ईंधन से आता है 90 फीसदी कार्बन
भारत ने तर्क दिया कि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के रूप में जानी जाने वाली महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं को लागू करने के लिए 300 अरब डॉलर पर्याप्त नहीं हैं. उसने कहा कि मुद्रास्फीति के लिए समायोजित करने पर यह राशि 2009 में सहमत हुए पिछले 100 अरब डॉलर के लक्ष्य से कम है. जीवाश्म ईंधन में शामिल कोयला, तेल और गैस जलवायु परिवर्तन में सबसे बड़े योगदानकर्ता हैं, जो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 75 प्रतिशत से अधिक और समस्त कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लगभग 90 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं.
Tags: Business news, Fuel price hike, Petrol free
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