उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा था, “मैं पैसे देने से मना करता हूं और मौत को चुनता हूं. मैं नहीं चाहता हूं कि मेरे पैसे का इस्तेमाल वे लोग मुझे और मेरे परिवार को प्रताड़ित करने के लिए करें. कोर्ट के बाहर ही मेरी अस्थियां गटर में बहा दी जाएं.” बिहार के समस्तीपुर जिले के वैनी पूसा रोड के रहने वाले अतुल सुभाष पर उनकी पत्नी निकिता सिंघानिया ने कई मामले दर्ज करा रखे थे. उनकी पत्नी ने उनसे तीन करोड़ रुपये की मांग की थी.
विवाहित लोगों में सुसाइड की ऊंची दर
भारत में शादी के बाद पति-पत्नी को अक्सर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ये दुश्वारियां ही विवाहित लोगों में सुसाइड की ऊंची दर का कारण बनती हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार भारत में 2016 से 2020 के बीच 37,000 से अधिक सुसाइड शादी से संबंधित मुद्दों के कारण हुए. विशेष रूप से 10,584 सुसाइड विवाह न होने के कारण और 10,282 दहेज से संबंधित मुद्दों के कारण हुए. जबकि 2,688 सुसाइड के मामले सीधे तलाक से संबंधित थे. आंकड़े बताते हैं कि विवाहित पुरुषों में सुसाइड की आशंका विवाहित महिलाओं की तुलना में अधिक होती है. इसका कारण अक्सर सामाजिक दबाव और आर्थिक तनाव होता है.
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मानसिक स्वास्थ्य पैदा करता है संकट
सुसाइड के मुख्य कारणों में घरेलू हिंसा भी है. घरेलू हिंसा सुसाइड करने वाली एक-तिहाई महिलाओं को प्रभावित करती है. दूसरा बड़ा कारण है आर्थिक निर्भरता. क्योंकि भारत में ज्यादातर घरों में कमाने वाले पुरुष ही होते हैं. महिलाएं आर्थिक रूप से पति पर निर्भर होती हैं. इसके अलावा, अरेंज मैरिज भी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकती हैं. क्योंकि कई महिलाएं और पुरुष अपनी परिस्थितियों में फंसा हुआ महसूस करते हैं. पारिवारिक अपेक्षाओं का दबाव और घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ इन समस्याओं को और बढ़ा देता है, जिससे एक मानसिक स्वास्थ्य संकट पैदा होता है.
भारत में शादी के बाद होने वाले सुसाइड के लिए सामाजिक कारण बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. क्योंकि समाज ने जो पारंपरिक मानदंड और सामाजिक अपेक्षाएं बना रखी हैं उससे तनाव पैदा होता है. इसकी मुख्य वजह ये हैं…
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क्या अरेंज्ड मैरिज बनती हैं वजह?
भारत में होने वाली शादियां अमूमन अरेंज्ड होती हैं. इसकी वजह से ज्यादातर पति-पत्नियों के बीच भावनात्मक निकटता की कमी होती है. इससे विशेष रूप से महिलाओं में अकेलापन और निराशा की भावना पैदा हो सकती है. क्योंकि वे पारिवारिक और सामाजिक अपेक्षाओं के कारण अपमानजनक रिश्तों में फंसा हुआ महसूस कर सकती हैं. तलाक के बाद होने वाली बदनामी इस समस्या को और बढ़ा देती है. इसीलिए लोग सामाजिक प्रतिक्रिया से बचने के लिए असंतुष्ट विवाह में रहने के लिए मजबूर होते हैं.
कमजोर समझे जाने से डरता है पुरुष?
हमारे समाज में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग भूमिकाएं तय हैं. जहां पुरुषों से अपनी कमाई से घर चलाने की उम्मीद की जाती है और महिलाओं को अक्सर घरेलू जिम्मेदारियों तक सीमित कर दिया जाता है. यह दबाव मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है. खासतौर से पुरुषों के लिए जो कमजोर के रूप में देखे जाने के डर से अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते या मदद नहीं मांग पाते. दूसरी ओर, महिलाएं घरेलू हिंसा को अपने वैवाहिक जीवन का सामान्य हिस्सा मान सकती हैं, जिससे उनके बीच सुसाइड की दर बढ़ जाती है.
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जब लगने लगता है सुसाइड है अंतिम विकल्प?
भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में कम बात की जाती है. हमारी सामाजिक मान्यताएं ऐसी हैं कि वो लोगों को खासकर पुरुषों को मदद मांगने से रोकते हैं. समाज में अक्सर भावनात्मक संकट के बारे में खुली चर्चा को हतोत्साहित किया जाता है. जिससे इस समस्या से जूझ रहे लोगों में असहायता की भावना पैदा होती है. वैवाहिक समस्याओं का सामना करने वाले व्यक्ति महसूस कर सकते हैं कि उनके पास अपने कष्ट को चुपचाप सहने या सुसाइड करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
दहेज की मांग से बढ़ता है जोखिम?
भारतीय समाज में कम ही महिलाएं आर्थिक तौर पर सक्षम होती हैं. इसीलिए वो ज्यादातर आर्थिक आजादी की कमी का सामना करती हैं. शादी के बाद अपने पति पर आर्थिक रूप से निर्भरता उन्हें अपमानजनक या असंतोषजनक विवाहों में फंसा सकती है. इसके साथ ही अगर उसे दहेज की मांग या ससुराल में हिंसा जैसे तनावों का सामना करना पड़े तो सुसाइड का जोखिम बढ़ जाता है.
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निजी हितों को प्राथमिकता ना देना गलत?
शादी के बाद पारिवारिक दबावों की भूमिका भी अहम होती है. इसमें पति और पत्नी दोनों से उम्मीद की जाती है कि वे अपने निजी हितों को पारिवारिक प्रतिष्ठा से ऊपर नहीं रखेंगे. इसकी वजह से रिश्तों में तनाव बढ़ता है और वे घुटनभरे हो जाते हैं. इससे पुरुषों और महिलाओं दोनों में मानसिक स्वास्थ्य संकट पैदा होता है. जिसकी वजह से सुसाइड के मामलों में वृद्धि हो सकती है.
इसके अलावा विवाहित जीवन में तनाव और असंतोष कई कारणों से पैदा हो सकते हैं. यहां कुछ मुख्य कारण दिए गए हैं जो परेशानियों की वजह बन सकते हैं…
कम्युनिकेशन की कमी: कई शादियों में खराब कम्युनिकेशन एक आम समस्या है. जब जोड़े अपनी भावनाओं, जरूरतों और चिंताओं को प्रभावी ढंग से व्यक्त नहीं कर पाते, तो गलतफहमियां और नाराजगी बढ़ सकती हैं, जिससे वैवाहिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं.
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आर्थिक समस्याएं: आर्थिक तनाव वैवाहिक कलह के प्रमुख कारणों में से एक है. खर्च करने की आदतों, कर्जों और वित्तीय जिम्मेदारियों पर असहमति, रिश्ते में तनाव और झगड़ा पैदा कर सकती है.
विश्वासघात : विश्वासघात से साथी के बीच विश्वास और बंधन को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है. चाहे भावनात्मक हो या शारीरिक. धोखा अक्सर विश्वासघात, गुस्सा और नाराजगी की भावनाओं को जन्म देता है, जिन्हें दूर करना मुश्किल हो सकता है.
अवास्तविक अपेक्षाएं: कई लोग अपने साथी या रिश्ते के बारे में अवास्तविक अपेक्षाओं के साथ शादी में प्रवेश करते हैं. जब वास्तविकता उनकी आदर्शों से मेल नहीं खाती, तो यह निराशा और हताशा का कारण बन सकता है.
मूल्यों और लक्ष्यों में अंतर: जब साथी के मूल्यों, विश्वासों या जीवन के लक्ष्यों में अंतर होता है, तो संघर्ष उत्पन्न हो सकते हैं. परिवार नियोजन, करियर की आकांक्षाओं या जीवनशैली विकल्पों पर असहमति समय के साथ दरार पैदा कर सकती है.
निकटता की कमी: एक स्वस्थ शादी के लिए निकटता महत्वपूर्ण है. भावनात्मक या शारीरिक निकटता में कमी से उपेक्षा या असंतोष की भावना उत्पन्न हो सकती है, जिससे साथी एक-दूसरे से दूर हो सकते हैं.
घरेलू जिम्मेदारियां : घरेलू कामों और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारियों का असमान विभाजन निराशा और नाराजगी का कारण बन सकता है. जब एक साथी को अधिक बोझ महसूस होता है और दूसरा समान रूप से योगदान नहीं करता, तो यह रिश्ते में तनाव पैदा कर सकता है.
बाहरी दबाव: परिवार का हस्तक्षेप, सामाजिक अपेक्षाएं और साथियों का प्रभाव शादी पर अतिरिक्त तनाव डाल सकते हैं. जोड़े कुछ मानकों या अपेक्षाओं के अनुरूप होने का दबाव महसूस कर सकते हैं जो उनकी व्यक्तिगत इच्छाओं के अनुरूप नहीं होते.
उबाऊपन और नीरस दिनचर्या: समय के साथ, जोड़े एक नीरस दिनचर्या में पड़ सकते हैं जिसमें उत्साह या सहजता की कमी होती है. उबाऊपन, असंतोष और शादी के बाहर बदलाव की इच्छा पैदा कर सकता है.
Tags: Jaunpur news, Marriage news, UP news, UP police
FIRST PUBLISHED : December 11, 2024, 18:20 IST
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