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नई दिल्‍ली. पुरानी दिल्‍ली का सीताराम बाजार… संकरी सड़क, ई-रिक्‍शा और दोपहिया वाहनों की वजह से लोगों का पैदल निकलना मुश्किल है. ट्रैफिक धीरे-धीरे चल रहा है. लोग बचते बचाते हुए निकल रहे हैं. सामने बनी दुकानों में लाखों का कारोबार चल रहा है, जैसे उनके लिए यह जाम सामान्‍य बात है. इस सड़क की जिस भी गली में घुस जाएं तो आप वास्‍तविक पुरानी दिल्‍ली यानी हवेलियों की दिल्‍ली में पहुंच जाएंगे. ऐसी ही गली में आगे बढ़ते हुए हम एक पुरानी हवेली में पहुंच गए. बाहर बैठे लोगों ने बताया कि यह बैरिस्‍टर की हवेली है. इमारत के बाहर बनी नक्‍काशी और गुंबद दूर से बता रहे हैं कि हवेली खास रसूख वाले व्‍यक्ति की रही होगी.

काफी देर तक दरवाजा खटखटाते रहे, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आया. बाहर बैठे लोगों ने बताया कि आवाज अंदर तक नहीं जा रही होगी, फिर भारी भरकम दरवाजा खोलकर अंदर चले गए. कई आवाज देने पर एक सज्‍जन निकले और अंदर आने का कारण पूछा. परिचय देने के अंदर बैठाया और अपना नाम प्रियांक बताया. उन्‍होंने बताया कि वे इस हवेली के मालिक फकीर चंद की छठवीं पीढ़ी हैं, एडवरटाइजमेंट और प्रिंटिंग का व्‍यावसाय करते हैं, जो इसी हवेली से चलता है.

हवेली में छठवीं पीढ़ी के प्रियांक भाइयों के साथ रहते हैं.

120 साल पुरानी है हवेली

प्रियांक ने बताया कि इस हवेली का निर्माण 1904 में हुआ था. इसे बनाने में करीब 3 साल का समय लगा था. इसका पत्‍थर राजस्‍थान से आए थे. हवेली की भव्‍यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आंगन में एक फाउंटेन बना है. इसी बनावट संसद भवन के बाहर फाउंटेन से मिलती जुलती है. हालांकि उसके मुकाबले यह काफी छोटा है और अब काम नहीं करता है. इस हवेली को आज भी लोग देखने आते हैं, इसमें काफी संख्‍या में विदेशी पयर्टक भी शामिल हैं.

हवेली के आंगन में छोटा फाउंटेन आज भी बना है.

इसलिए बैरिस्‍टर की हवेली पड़ा नाम

हवेली के मालिक का नाम भले ही फकीरचंद रहा हो, लेकिन वे अपने जमाने के जाने माने बैरिस्‍टर रहे थे. इस वजह से अंग्रेजों ने उन्‍हें राय बहादुर की उपाधि दी थी. वे अंग्रेजों के केस लड़ते थे. बैरिस्‍टर होने की वजह से इस हवेली का नाम बैरस्टिर की हवेली पड़ा है. साथ ही, फकीरचंद चांदनी चौक के प्रमुख गौरी शंकर मंदिर के हेड ट्रस्‍टी थे और वैश्‍य समाज के प्रमुख भी रहे थे.

हवेली में मेंटीनेंस की जरूरत है.

हवेली का गांधी और नेहरू से गहरा रिश्‍ता

इस हवेली का महात्‍मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू से गहरा रिश्‍ता है. प्रियांक ने बताया कि दादा से सुना था कि आजादी से पहले बेसमेंट में बने हॉल में आजादी को लेकर सीक्रेट बैठकें होती थीं, जिसमें महात्‍मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू समेत कई प्रमुख हस्तियां शामिल होती हैं. इसके अलावा धार्मिक आयोजन भी यहां पर होते रहे हैं, जिसमें शंकराचार्य भी आ चुके हैं.

इमारत की वास्‍तुकला गजब की है. आंगन इतना बड़ा की छोटी-मोटी पार्टी तक हो जाए.

हवेली में 30 कमरे

यह हवेली बेसमेंट के अलावा दो मंजिला है. इस हवेली में कुल 30 कमरे हैं. सभी कमरों का आज भी इस्‍तेमाल होता है. प्रियांक ने बताया कि मौजूदा समय चार भाइयों का 15 लोगों का परिवार रह रहा है. कुछ लोग यहां से शिफ्ट हो चुके हैं. हवेली वास्‍तुकला के अनुसार बनी है, जिसमें हर कमरे में सूरज की रोशनी पहुंचती है.

Tags: New Delhi news

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