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हाइलाइट्सये घटना तब हुई जब वनवास के दौरान राम को राजा दशरथ की मृत्यु का पता लगा राम और लक्ष्मण को फल्गु नदी के किनारे पिता का अंतिम संस्कार करना था तब कुछ ऐसा हुआ कि सीता को आघात लगा और वह नाराज हो गईं

जब राम, लक्ष्मण और सीता वनवास में थे, तभी राजा दशरथ की मृत्यु हो गई. जब खबर उन तक पहुंची तो वो तीनों शोक में डूब गए. तीनों का दिल टूटा हुआ था. विलाप कर रहे थे. अयोध्या वो लौट नहीं सकते थे. लिहाजा तीनों ने तय किया कि फल्गु नदी पर जल्दी से जल्दी जो जरूरी अंतिम संस्कार हैं वो पूरा कर देना चाहिए. राम और लक्ष्मण जरूरी सामग्री जुटाने निकल गए, क्योंकि शाम से पहले ही सबकुछ कर लेना था. यही मौका था जब सीता ने पहली और आखिरी बार 4 लोगों को शाप दिए. जिससे वो सभी अब तक अभिशप्त हैं.

सीता ने फल्गु नदी के किनारे विलाप कर रहे राम और लक्ष्मण को संभाला. उन्होंने कहा कि रघुनंदन आपको नदी के किनारे ही अंतिम संस्कार कर देना चाहिए. भाइयों ने खुद को संभाला और जरूर सामग्री जुटाने निकल गए.

अनुष्ठान का समय बीत रहा था, सीता चिंतित थीं
कई घंटे बीत गए. दोनों भाई लौटकर नहीं आए. समय निकलता जा रहा था. सीता की आंखें सूर्य की गति की ओर देख रहीं थीं. दोपहर खत्म होने वाली थी. सूर्य ऊपर चढ़ रहा था. यानि जल्दी ही शाम होने वाली थी. शाम अगर हो जाती तो अनुष्ठान का समय गुजर जाता.

तब सीता ने ये फैसला किया
ऐसे में सीता ने तय किया कि उनके पास जो सामग्री है, उससे ही वह ये संस्कार पूरा करेंगी. सीता ने फल्गु नदी में स्नान किया. गाय का दूध निकाला. फिर केतकी का फूल तोड़ा. इसके बाद बरगद के पेड़ से पत्ता. उन्होंने हवन किया. फिर मिट्टी का दीपक जलाया. जैसे ही सीता ने प्रसाद अर्पित किया, उन्हें आकाशवाणी सुनाई दी, “तुम्हें आशीर्वाद, सीता. मुझे ये स्वीकार है.” आवाज राजा दशरथ की थी.

समय निकला जा रहा था. शाम होने वाली थी. राम और लक्ष्मण का इंतजार करते हुए सीता को लगा कि राजा दशरथ का अंतिम संस्कार फल्गु नदी के किनारे उन्हें ही करना होगा. (Image generated by Leonardo AI)

तब राजा दशरथ की आवाज में हुई आकाशवाणी
सीता कुछ चकित हुईं. तब उन्हें फिर राजा दशरथ की आवाज सुनाई पड़ी, “हां, सीता मैं दशरथ हूं, तुमने संस्कार पूरा कर दिया है”. तब सीता ने शंका जताई, “आपके दोनों बेटे यहां मौजूद नहीं हैं. वो विश्वास नहीं करेंगे कि मैने अनुष्ठान पूरा कर दिया है”. दशरथ ने जवाब दिया, “वो कर लेंगे क्योंकि यहां पांच साक्षी हैं”.

क्यों शंकित थीं सीता
तब राजा दशरथ ने बताया कि ये पांच साक्षी फल्गु नदीं, अग्नि, गाय, बरगद और केतकी का फूल हैं. फल्गु नदी में तुमने स्नान किया. अग्नि से दीपक जलाया, गाय से दूध लिया, केतकी का फूल तोड़ा. बरगद से पत्ता लिया. लेकिन सीता अब भी शंकित थीं.

तब राम और लक्ष्मण लौटे…तब क्या हुआ
खैर राम और लक्ष्मण जब लौटे तो शाम एकदम होने ही वाली थी. सीता ने उन्हें बताया कि अंतिम संस्कार उन्होंने कर दिया तो उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ. दोनों भाइयों को लगा कि जब सामग्री ही नहीं थी तो इतने कम साधनों में अंतिम संस्कार कैसे हुआ. तब सीता ने कहा, “मेरे पास पांच साक्षी हैं”. राम ने फल्गु नदी से पूछा.

जब राम और लक्ष्मण वापस लौटे तो उन्हें पता लगा कि अंतिम संस्कार बहुत कम संसाधनों में सीता ने कर दिया. उन्होंने जब इस बात पर विश्वास नहीं किया तो सीता क्षुब्ध भी हुईं और निराश भी (Image generated by Leonardo AI)

और तब सबने क्या बोला कि सकते में आ गईं सीता
राम ने पूछा, “मुझे बताओ हे पूज्य फल्गु क्या सीता ने अनुष्ठान पूरा किया”. जवाब मिला,” नहीं, नहीं किया”. सीता अवाक. फिर गाय से पूछा गया. उसने भी साफ मना कर दिया. अब बारी केतकी की आई, वहां भी साफ इनकार हुआ. सीता अब धैर्य छोड़ रही थीं.

उन्हें विश्वास था कि कम से कम अग्नि तो उनका साथ देंगे लेकिन जब उन्होंने भी मना कर दिया तो सच में सीता अंदर से चीत्कार उठीं. अब बचा केवल बरगद. राम ने वही सवाल उससे किया, “बताओ आदरणीय बरगद, क्या मेरी पत्नी ने अनुष्ठान पूरा किया”. जवाब मिला, ” हां पूरा किया. बिल्कुल किया. आपके पिता संतुष्ट थे “.

क्षुब्ध तब वो राम पर भी हुईं
अब सीता को कुछ सहारा मिला, उन्होंने पति से पूछा, “क्या अब आपको मुझ पर विश्वास है. राम तब भी चुप खड़े थे. अब सीता ने कुछ तल्खी से पूछा, “मतलब आपको अब भी मुझ पर विश्वास नहीं”. राम ने कहा, “मुझको तो है लेकिन शायद दूसरों को न हो”. सीता खून का घूंट पीकर रह गईं. वह राम पर कुपित हुईं लेकिन शांत रहीं.

फिर राम को लगा उन्होंने गलत कर दिया
अब राम फिर से अंतिम संस्कार करने बैठे ही थे कि फिर दशरथ की आवाज में आकाशवाणी हुई, “तुम फिर से मेरा आह्वान क्यों कर रहे हो. सीता ये अनुष्ठान कर चुकी है”. तब राम ने जब फिर सवाल किया तो दशरथ ने कहा, “तुम अपनी पत्नी पर विश्वास करोगे या दूसरों पर”. राम चुप हो गए. तब दोनों भाइयों ने सीता से क्षमा मांगी. सीता ने उन्हें तो क्षमा कर दिया लेकिन सभी को नहीं.

 इन चारों को जो श्राप मिला, उससे आज भी अभिशप्त
तब उन्होंने केतकी फूल, फाल्गु नदी, गाय और अग्नि को श्राप दिया. केतकी को श्राप मिला, “तुम झूठे हो और अब तुम कभी पूजा योग्य नहीं रहोगे”. अग्नि पर नाराज सीता ने उन्हें श्राप दिया, “अग्निदेव मैं तुम्हें शाप देती हूं कि अब से तुम्हें जो भी अर्पित किया जाएगा, तुम उसका सेवन करोगे, चाहे वो शुद्ध हो या अशुद्ध. तुम्हारे पास अब इसे चुनने का विकल्प नहीं होगा”.

गाय को उन्होंने श्राप दिया, “अब तुम बचे हुए खाने पर जीने के लिए अभिशप्त रहोगी. कभी उचित भोजन नहीं पा सकोगी”. फल्गु नदी को लताड़ते हुए कहा, “तुम झूठी हो, अब सूखी ही रहोगी, तुम्हारे अंदर कभी ज्यादा पानी नहीं होगा और ना ही तुम कभी अपनी पूरी क्षमता तक पहुंच सकोगी”.

बरगद को मिला वरदान
अब बारी थी बरगद की, जिसने अकेले सीता का साथ दिया. केवल बरगद के वृक्ष ने ही राम से कहा, “सीता जी अंतिम संस्कार को पूर्ण किया है”. सीता ने बरगद के पेड़ को आशीर्वाद दिया, “तुमने ईमानदारी दिखाई, इसलिए तुम्हें अमरता प्राप्त होगी, भक्तों द्वारा किए जाने वाले भविष्य के अनुष्ठानों के लिए तुम्हें हमेशा महत्व मिलेगा. तुम पवित्र माने जाओगे.”

…उस दिन सीता ने एक बात और समझी
कहा जाता है कि इन शापों के स्थायी प्रभाव हुए.सीता के श्राप आज भी इन सभी के साथ चल रहे हैं. तब सीता को ये भी लगा कि बेशक राम उनका भरोसा करें लेकिन उन पर दूसरे लोगों की बातों का असर भी पड़ता है. इसलिए उन्हें हर बार अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा.

Tags: Lord Ram, Ramayan

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