-दक्षिण भारत में हिंदी विरोध पर जताई गहरी चिंता
उदय भूमि संवाददाता
बेंगलुरु। भारत की भाषाई एकता और सांस्कृतिक समरसता को मजबूत बनाने की दिशा में गुरुवार को समाजसेवी एवं जनसेवक तरुण मिश्र ने कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत से राजभवन में शिष्टाचार भेंट की। यह मुलाकात केवल एक सामाजिक संवाद नहीं थी, बल्कि एक राष्ट्रवादी सोच और भाषाई सौहार्द्र को पुनर्स्थापित करने का गंभीर प्रयास थी। भेंट के दौरान तरुण मिश्र ने दक्षिण भारत में बढ़ते हिंदी विरोध पर चिंता व्यक्त करते हुए राज्यपाल को स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि इस प्रवृत्ति पर समय रहते अंकुश नहीं लगाया गया, तो इससे देश की आंतरिक एकता, व्यापारिक संबंधों और सांस्कृतिक संपर्कों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए एक भारत, श्रेष्ठ भारत के मंत्र को दोहराते हुए बताया कि भारत की सशक्तता उसकी भाषाई विविधता में है, ना कि विरोध में।
तरुण मिश्र ने कहा कि दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में जिस तरह हिंदी भाषा के खिलाफ नकारात्मक माहौल बन रहा है, वह न केवल समाज को विभाजित करता है बल्कि आर्थिक प्रगति के रास्ते में भी बाधा बनता है। जब तक हम एक-दूसरे की भाषाएं नहीं जानेंगे, तब तक न तो दिल जुड़ेंगे और न ही कारोबार बढ़ेगा। तमिल, तेलुगु, कन्नड़ जैसी भाषाओं का जिस प्रकार सम्मान होता है, उसी प्रकार हिंदी को भी उसका सम्मान मिलना चाहिए। हिंदी को नकारना, भारत की आत्मा को नकारने के समान है। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने तरुण मिश्र के विचारों को समाज के लिए उपयोगी और राष्ट्रीय हित में महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने यह भी कहा कि भाषा कोई दीवार नहीं बल्कि पुल होती है, जो लोगों को जोड़ती है। उन्होंने मिश्र को भरोसा दिलाया कि यह विषय केवल चर्चा में नहीं रहेगा, बल्कि आवश्यक स्तर पर ठोस कार्यवाही के लिए केंद्र और राज्य में संवाद को आगे बढ़ाया जाएगा।
राष्ट्रीय एकता और भाषा की भूमिका
गौरतलब हो कि यह मुलाकात इस दृष्टिकोण को सशक्त करती है कि भाषाएं केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि संस्कृति, व्यापार और भाईचारे की डोर होती हैं। यदि किसी भाषा को राजनीतिक या क्षेत्रीय स्वार्थों में बांधकर रोका जाएगा, तो न केवल राष्ट्र की आत्मा आहत होगी, बल्कि उसकी आर्थिक गति भी प्रभावित होगी। तरुण मिश्र ने यह भी कहा कि भाषा कोई राजनीतिक औजार नहीं बल्कि पहचान की संवाहक होती है। दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध केवल एक भाषा का विरोध नहीं, बल्कि भारत की एकता और अखंडता के मूल भाव पर आघात है।
इसे रोकना हर जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है। यह मुलाकात समाजसेवी तरुण मिश्र के भाषाई सौहार्द्र, सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रहित में सक्रिय सोच का परिचायक बनी। राज्यपाल से हुई यह वार्ता अब एक सकारात्मक पहल के रूप में देखी जा रही है, जिसके दूरगामी प्रभाव देश के भाषाई संतुलन और राष्ट्रीय एकता की दिशा में निर्णायक साबित हो सकते हैं। भविष्य में जब भारत की भाषाई नीति की नई इबारत लिखी जाएगी, तो यह संवाद उस नींव का हिस्सा बन सकता है, जिस पर एक राष्ट्र, अनेक भाषाएं, एक पहचान का स्वप्न आकार लेगा।
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