लालू यादव का देसी अंदाज और जनता से सीधे जुड़ने की कला ने बिहार की राजनीति में गहरी छाप छोड़ी है. खासकर सतुआन जैसे पर्व पर सत्तू खाने की परंपरा को अपनाकर ये नेता न केवल अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं, बल्कि बिहार की ग्रामीण जनता के दिलों में भी जगह बनाते हैं. सतुआन बिहार का एक महत्वपूर्ण लोक पर्व है, जिसमें लोग सत्तू खाकर गर्मी के मौसम में शरीर को ठंडक और ऊर्जा प्रदान करते हैं.
तेजस्वी का लालू वाला अंदाज
सत्तू बिहार के ग्रामीण और मेहनतकश वर्ग का प्रमुख भोजन रहा है. यह सस्ता, पौष्टिक और आसानी से उपलब्ध होने वाला खाद्य है, जो बिहार की मिट्टी और मेहनत से जुड़ा है. लालू यादव ने इस सांस्कृतिक प्रतीक को राजनीति का हिस्सा बनाया. वे चुनाव प्रचार से पहले सत्तू खाकर हेलिकॉप्टर में बैठते थे, जो उनकी सादगी और जनता से जुड़ाव का प्रतीक था. अब तेजस्वी यादव भी राघोपुर जैसे अपने विधानसभा क्षेत्र में सतुआन मनाते दिखते हैं, जिससे वे अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.
लालू यादव ने हमेशा अपनी सादगी और हास्य से जनता का दिल जीता. चाहे सड़कों को “हेमा मालिनी के गालों” जैसा बनाने का वादा हो या सत्तू खाकर प्रचार शुरू करना, उनका अंदाज बिहारी जनमानस को अपनी ओर खींचता रहा. सतुआन पर सत्तू खाना सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि बिहार के मेहनतकश किसानों, मजदूरों और गरीबों के साथ एकजुटता का संदेश था. यह दिखाता था कि लालू भले ही सत्ता के शिखर पर हों, उनकी जड़ें गांव की मिट्टी में हैं. यह अंदाज बिहार की जनता को यह भरोसा दिलाता था कि लालू उनके अपने हैं.
तेजस्वी की नई पारी
तेजस्वी यादव ने अपने पिता की इस विरासत को न केवल संभाला, बल्कि उसे आधुनिकता के साथ जोड़ा. सतुआन पर सत्तू खाने की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं, जो युवा वोटरों को आकर्षित करती हैं. तेजस्वी का यह अंदाज दिखाता है कि वे नई पीढ़ी के नेता हैं, जो परंपराओं का सम्मान करते हुए बदलते वक्त के साथ कदम मिलाते हैं. राघोपुर में सतुआन मनाने का उनका तरीका यह संदेश देता है कि वे अपने क्षेत्र की संस्कृति और लोगों की भावनाओं को समझते हैं. यह जनता के साथ उनके भावनात्मक रिश्ते को मजबूत करता है.
सियासी रणनीति का हिस्सा
लालू और तेजस्वी का सतुआन अंदाज सिर्फ सांस्कृतिक नहीं, बल्कि एक सोची-समझी सियासी रणनीति भी है. बिहार में यादव, मुस्लिम और पिछड़े वर्गों का बड़ा वोट बैंक है, जो ग्रामीण और मेहनतकश समुदायों से आता है. सत्तू जैसे साधारण भोजन को अपनाकर ये नेता इस वर्ग को यह संदेश देते हैं कि वे उनकी जरूरतों और जीवनशैली को समझते हैं. यह रणनीति खासकर चुनावों में कारगर साबित होती है, जब वोटर भावनात्मक और सांस्कृतिक जुड़ाव को तवज्जो देते हैं.
सतुआन का यह अंदाज बिहार की जनता को इसलिए भाता है, क्योंकि यह उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है. जब लालू या तेजस्वी सत्तू खाते हैं, तो यह आम बिहारी को लगता है कि ये नेता उनके जैसे हैं. यह भावना वोटरों में विश्वास जगाती है. साथ ही, सोशल मीडिया के दौर में तेजस्वी का यह देसी अंदाज युवाओं को भी प्रेरित करता है, जो उन्हें एक जमीनी नेता के रूप में देखते हैं.
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