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चैन्नई2 मिनट पहले

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केंद्र और राज्य सरकार दोनों के अधीन वाले विषयों को फिर से राज्य सूची में लाने की सिफारिश करेगी कमेटी।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए मंगलवार को एक हाई लेवल कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस कुरियन जोसेफ करेंगे।

इस समिति को उन विषयों को फिर से राज्य सूची में लाने की सिफारिश करने का भी काम सौंपा गया है, जो पहले राज्य सरकार देखती थी, लेकिन अब केंद्र और राज्य सरकार दोनों के अधीन है।

समिति में पूर्व अधिकारी अशोक शेट्टी और एमयू नागराजन भी शामिल होंगे। इस समिति की अंतरिम रिपोर्ट जनवरी 2026 तक और अंतिम रिपोर्ट 2028 तक पेश की जानी है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने विधानसभा में कहा कि इसका उद्देश्य तमिलनाडु सहित सभी राज्यों के अधिकारों की रक्षा करना है।

तमिलनाडु सरकार ने NEET से छूट की मांग की थी

यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच शिक्षा जैसे मुद्दों को लेकर टकराव चल रहा है। विशेष रूप से NEET परीक्षा को लेकर।

तमिलनाडु सरकार ने NEET से छूट की मांग की थी। दरअसल, तमिलनाडु सरकार मेडिकल (MBBS) में एडमिशन लेने के लिए NEET की जगह 12वीं के अंकों का इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी थी। जिसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने अस्वीकार कर दिया था।

स्टालिन ने कहा था – केंद्र सरकार ने भले ही हमारी मांग को ठुकरा दिया हो, लेकिन हमारी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। हम इस निर्णय को चुनौती देने के लिए कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श करेंगे।

इसके अलावा राज्यपाल आर.एन. रवि और राज्य सरकार के बीच भी लंबे समय से टकराव जारी है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल रवि को फटकार लगाई और कहा कि उन्होंने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित 10 विधेयकों को बिना अधिकार के लंबे समय तक रोके रखा। कोर्ट ने इसे “मनमाना” और “अवैध” करार दिया था।

इन विधेयकों में स्टेट यूनिवर्सिटी के कुलपतियों की नियुक्ति से जुड़े नियमों में बदलाव भी शामिल था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के पावर को कम करते हुए विधानसभा की ओर से भेजे गए बिल पर निर्णय लेने के समय सीमा को 1 महीना कर दिया था।

शिक्षा को राज्य सूची में लाने की मांग

तमिलनाडु में शिक्षा अभी समवर्ती सूची में है, यानी इसे केंद्र और राज्य दोनों मिलकर चलाते हैं। मुख्यमंत्री स्टालिन ने मांग की है कि संविधान के 42वें संशोधन को पलटते हुए शिक्षा को राज्य सरकार को सौंप दिया जाए। हाल ही में NCERT ने किताबों के इंग्लिश नाम बदलकर हिंदी नाम रख दिए, तमिलनाडु सरकार ने इसका विरोध किया है।

ट्राई लैंग्वेज फार्मूले पर विवाद

राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ट्राई लैंग्वेज फार्मूले को लेकर भी विवाद गहराया है। NEP 2020 के तहत, स्टूडेंट्स को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, लेकिन किसी भाषा को अनिवार्य नहीं किया गया है। राज्यों और स्कूलों को यह तय करने की आजादी है कि वे कौन-सी तीन भाषाएं पढ़ाना चाहते हैं। किसी भी भाषा की अनिवार्यता का प्रावधान नहीं है। प्राइमरी क्लासेस (क्लास 1 से 5 तक) में पढ़ाई मातृभाषा या स्थानीय भाषा में करने की सिफारिश की गई है।

DMK ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि तमिलनाडु की मौजूदा दो-भाषा नीति ही काफी है, और राज्य पहले से ही शिक्षा के क्षेत्र में आगे है। पार्टी ने केंद्र सरकार, विशेष रूप से शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पर आरोप लगाया कि वह राज्य को 2,500 करोड़ रुपए की शिक्षा निधि रोकने की धमकी देकर “ब्लैकमेल” कर रहे हैं। बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज किया था और कहा कि नीति में हिंदी को अनिवार्य नहीं किया गया है, और DMK खुद पहले इस नीति को लागू करने की बात कह चुकी थी।

चुनावों से पहले टकराव तेज

DMK और BJP के बीच यह विवाद लोकसभा चुनावों से पहले और भी तेज हो गया है। इनमें एक और मुद्दा आगामी परिसीमन अभ्यास भी है, जिससे तमिलनाडु को डर है कि संसद में उसकी सीटें घट सकती हैं। चुनावों को देखते हुए BJP ने AIADMK के साथ फिर से गठबंधन किया है।

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