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घर पहुंचने पर सीम को पैसों की माला पहनाकर स्वागत करते लोग।

करनाल की शिव कॉलोनी निवासी सीमा ने ओडिशा के भुवनेश्वर में आयोजित पैरा-फेंसिंग चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन करते हुए 2 गोल्ड और 1 ब्रॉन्ज पदक जीता है।

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इस जीत से सीमा ने न केवल अपने शहर और प्रदेश का नाम रोशन किया है, बल्कि कई दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए प्रेरणास्रोत भी बन गई हैं।

सीमा अपने मेडल दिखाते हुए।

महिला ने प्रेरित किया, फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

सीमा ने बताया कि साल 2016 में जब वह खेल से बिल्कुल अनजान थीं, तब एक महिला ने उन्हें प्रेरित किया और कहा कि वह खेलों में आगे बढ़ सकती हैं। उस प्रेरणा के बाद सीमा ने तलवारबाजी को करियर के तौर पर अपनाया और करनाल के कर्ण स्टेडियम में कोच सत्यम सिंह के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग शुरू की।

शुरू में उनके पास कोई खेल उपकरण नहीं था, लेकिन पहले खेल में हिस्सा लेने के बाद उन्होंने धीरे-धीरे अपने उपकरण खुद बनाने शुरू कर दिए। आज वह हरियाणा के लिए अब तक 17 पदक जीत चुकी हैं।

घर पहुंचने पर स्वागत करती महिलांए।

सरकार से मिलती है स्कॉलरशिप

सीमा एक साधारण परिवार से हैं। उनके पति टेलर का काम करते हैं और सीमित आय में घर का गुजारा होता है। सीमा को सरकार की ओर से स्कॉलरशिप जरूर मिलती है, लेकिन भविष्य की तैयारी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए उन्हें आर्थिक मजबूती की जरूरत है। इसी को देखते हुए वाल्मीकि एजुकेशन सोसाइटी के पदाधिकारियों ने सीमा के लिए स्थायी रोजगार की मांग की है ताकि वह बिना किसी चिंता के अपने खेल पर ध्यान दे सके।

वाल्मीकि एजुकेशन सोसाइटी और पार्षद ममता सैनी ने किया सम्मानित

​​​​​​​सीमा की इस उपलब्धि पर नव-निर्वाचित वार्ड पार्षद ममता सैनी और वाल्मीकि एजुकेशन सोसाइटी ने उन्हें सम्मानित किया। पार्षद ममता सैनी ने कहा कि सीमा ने शिव कालोनी का मान बढ़ाया है। वह आगे भी देश का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन करना चाहती है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि सीमा के सपनों को साकार करने के लिए हरसंभव मदद करे।

पैसों की माला पहनाकर सीमा का स्वागत करते लोग।

ओलिंपिक जैसे बड़े मंच पर देश का नाम रोशन करने का सपना

​​​​​​​सोसाइटी के पदाधिकारियों ने कहा कि सीमा ने यह दिखाया है कि दिव्यांगता किसी भी प्रतिभा की राह में रुकावट नहीं बन सकती। अब जरूरत है कि सरकार और समाज मिलकर इस होनहार खिलाड़ी को वो संसाधन और सुविधाएं दें, जिससे वह अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर सके और ओलिंपिक जैसी बड़ी स्पर्धाओं में देश को मेडल दिला सके।

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