डेंट कॉर्न और इसके इथेनॉल उत्पादन में उपयोग को लेकर हाल के दिनों में भारत में बड़ी तेजी से चर्चा हो रही है। डेंट कॉर्न को अक्सर एक गैर-खाद्य फसल के रूप में पेश किया जाता रहा है, जिसका उपयोग केवल जैव-इथेनॉल के लिए होता है। लेकिन यह धारणा पूरी तरह से सत्य नहीं है। डेंट कॉर्न के उपयोग और इसके प्रचार के पीछे के प्रभावों को समझने के लिए हमें कृषि, खाद्य सुरक्षा, और जीएम मकई आयात से जुड़े जोखिमों को समझना बेहद जरूरी है।
इस मक्के का नाम डेंट कॉर्न इसीलिए है क्योंकि यह सूखने पर दानों में बनने वाले गड्ढे (डेंट) के कारण पहचाना जाता कई देशों जैसे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, और एशिया के कुछ क्षेत्रों में, डेंट कॉर्न लाखों लोगों के आहार का अहम हिस्सा है। यह पशु चारे के रूप में भी अहम भूमिका निभाता है। इसके अलावा, डेंट कॉर्न का उपयोग औद्योगिक उत्पादों और दवाओं में भी होता है। हालांकि डेंट कॉर्न को जैव-इथेनॉल उत्पादन के लिए उपयोग किया जा सकता है, लेकिन यह इसके कुल उपयोग का एक छोटा हिस्सा है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में केवल 10–15% डेंट कॉर्न ही इथेनॉल उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है, जबकि लगभग 38% का उपयोग खाद्य उत्पादों में और 35% पशु चारे में के रूप में किया जाता है।
अब सोचने की बात ये है कि डेंट कॉर्न को लेकर फैलाई जा रही भ्रामक जानकारी के पीछे किसका और क्या मकसद हो सकता है? हाल ही में, भारत में कच्चे मक्का अनाज में जीएम तत्व पाए जाने की घटनाएं सामने आई हैं, जिससे इसके अवैध आयात की आशंका बढ़ गई है। जीएम फ्री इंडिया ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए जांच की मांग की है। कहीं इस प्रचार के पीछे कुछ ऐसी ताकतें तो नहीं हैं जो विदेशों से मक्के के आयात करने की वकालत कर रही हैं । अमेरिका में उगाये जाने वाले 99% से अधिक डेंट कॉर्न, जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM CORN) है। जीएम का समर्थन करने वाले लोग जैव इथेनॉल के नाम पर मक्के के को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि भारत में जीएम फसलों पर पहले से ही प्रतिबंध है। डेंट कॉर्न में स्टार्च की अधिक मात्रा होने के कारण इसे जैव-इथेनॉल के लिए अनिवार्य बताकर जीएम मक्के की आपूर्ति को बढ़ाने का एक प्लेटफार्म तैयार किया जा रहा है ।
आयातित डेंट कॉर्न पर बढ़ती निर्भरता से घरेलू मकई की कीमतों में उतार-चढ़ाव हो सकता है, जिससे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों को नुकसान होगा। इसके अलावा, भारत की समृद्ध कृषि परंपरा और स्थानीय गैर-जीएम मक्का किस्में, जो पीढ़ियों से खेती का हिस्सा रही हैं, जीएम के प्रसार से खतरे में पड़ सकती हैं। भारतीय किसान, जो मुख्य रूप से गैर-जीएम मक्का उगाते हैं, सस्ते आयातित जीएम मकई के कारण अपनी उपज के लिए मांग में कमी का सामना कर सकते हैं। यह न केवल भारत की कृषि स्वायत्तता को खतरे में डालता है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता को भी प्रभावित करता है। अतः भारत सरकार और नीति निर्धारकों को इथेनॉल उत्पादन के लिए स्थानीय गैर-जीएम मकई की संभावनाओं पर ध्यान देना चाहिए। स्थानीय मकई किस्मों को खाद्य और औद्योगिक उपयोग के लिए अनुकूलित करके, भारत खाद्य सुरक्षा को मजबूत कर सकता है और किसानों की आय में वृद्धि कर सकता है। डेंट कॉर्न केवल इथेनॉल उत्पादन का साधन नहीं है; यह खाद्य सुरक्षा, पशु चारे और औद्योगिक उपयोगों के लिए एक अनमोल संसाधन है। इसे केवल एक औद्योगिक फसल के रूप में पेश करना भारत की कृषि व्यवस्था को कमजोर करने की एक साजिश है। भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करते हुए, अपनी कृषि परंपराओं और खाद्य सुरक्षा को बनाए रखना चाहिए। स्थानीय संसाधनों और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को प्राथमिकता देकर, भारत एक मजबूत और आत्मनिर्भर कृषि भविष्य का निर्माण कर सकता है।
डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी
पर्यावरणविद, समाजसेवी, और ट्रस्टी, प्रशुभगिरी ट्रस्ट
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