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-ओंकारेश्वर मंदिर के निकट चुन्नी गांव में शुरू हुआ पांडव नृत्य: राजकुमार तिवारी

उदय भूमि
रूद्रप्रयाग। श्री केदारनाथ धाम के शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के समीप चुन्नी गांव में बुधवार से 21 दिवसीय पांडव नृत्य का आयोजन शुरू हो गया है। उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है और यदि बात केदारघाटी की की जाए तो इस घाटी में हर वर्ष कहीं न कहीं पौराणिक पांडव नृत्य का आयोजन होता है। वहीं चुन्नी गांव में यह पौराणिक पांडव नृत्य 34 साल बाद किया जा रहा है। पांडव नृत्य कमेटी के अध्यक्ष बचन सिंह रावत कहते हैं पांडव नृत्य हमारी पौराणिक और धार्मिक प्रतीकों में एक है। 34 साल बाद सभी ग्राम वासियों की खुशहाली के लिए 24 दिवसीय इस आयोजन को बृहद रूप दिया जा रहा है। गांव के कुल पुरोहित यशोदा प्रसाद मैठानी द्वारा आज दीप प्रज्ज्वलित कार्यक्रम और हनुमान ध्वजा स्थापित की गई। इस मौके पर अपने गांव चुन्नी में श्री केदार सभा के अध्यक्ष पं राजकुमार तिवारी भी उपस्थित रहे। पांडव नृत्य कि परंपरा पर श्री केदार सभा के अध्यक्ष पं राजकुमार तिवारी बताते हैं पांडवों का उत्तराखंड के गढ़वाल से गहरा नाता रहा है।

मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों के ऊपर कुल के लोगों की हत्या का दोष लग गया था, जिसके पश्चाताप के लिए वह भोलेनाथ की शरण में जाना चाहते थे। भोलेनाथ उनसे नहीं मिलना चाहते थे, इसलिए वह पांडवों से मिलने से बच रहे थे। पांडव भी उनकी खोज में देवभूमि उत्तराखंड आ गए। जिन-जिन स्थानों से होकर पांडव गुजरे, उन स्थानों में पांडव लीला का आयोजन किया जाता है। स्कंदपुराण में केदारखंड में गढ़वाल में पांडवों का इतिहास मिलता है। पांडव नृत्य के माध्यम से आज भी ग्रामीण पौराणिक संस्कृति को संजोए रखने के लिए पांडव लीला का आयोजन करते हैं। इससे आने वाली पीढ़ी भी अपनी पौराणिक संस्कृति से रूबरू होती है। इसका आयोजन गढ़वाल के कई इलाकों में नवंबर से फरवरी माह तक होता है। राजकुमार तिवारी का कहना है कि देवभूमि के ग्रामीण गांव की खुशहाली और सौहार्द के लिए पांडव नृत्य का आयोजन करते हैं। इन आयोजनों में पांडव पश्वों (अवतारी पुरुष) के बाण निकालने का दिन, धार्मिक स्नान, मोरु डाली, मालाफुलारी, चक्रव्यूह, कमल व्यूह, गरुड़ व्यूह आदि सम्मिलित होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी हमारी पौराणिक परंपराएं जीवित हैं।

पहाड़ के प्रत्येक व्यक्ति को इन्हें संजोने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पांडव नृत्य असत्य पर सत्य की जीत का द्योतक है। केदारघाटी में आयोजित पांडव नृत्य में अनेक परंपराओं निर्वहन करने में ग्रामीणों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। पांडव नृत्य में कुल 13 पश्वा होते हैं। इनमें द्रौपदी, भगवान नारायण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, हनुमान, अग्नि बाण, मालाफुलारी, भवरिक व कल्याल्वार शामिल हैं.नृत्य में इन सबका अहम योगदान रहता है। पाण्डव नृत्य दीप प्रज्ज्वलित कार्यक्रम के अवसर पर पांडव नृत्य कमेटी के अध्यक्ष बचन सिंह रावत, उपाध्यक्ष अंजना रावत, सचिव प्रेम सिंह रावत, उप सचिव सरोज तिवारी, कोषाध्यक्ष कर्मवीर बर्तवाल, शिवप्रसाद तिवारी, इंद्र सिंह, ब्रह्मानंद तिवारी, राजेंद्र सिंह रावत, वीरेंद्र सिंह रावत, अनुसूया प्रसाद, कमेटी के सदस्य विनोद रावत, अनुराग रावत, मदन सिंह रावत, गोबिंद शुक्ला, प्रदीप शुक्ला, अरंविद, अजय, सुभाष, विशाल, विनय, अक्षय पुष्पवान और अन्य लोग उपस्थित रहे।

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