पीलीभीत : उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में सोमवार को पुलिस ने 3 खालिस्तानी आतंकियों को एनकाउंटर में मार गिराया गया. यूपी और पंजाब पुलिस ने सोमवार तड़के इस ऑपरेशन को अंजाम दिया. पुलिस सूत्रों के अनुसार सभी आतंकी खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स ( KZF) के सदस्य थे. इन 3 आतंकियों के कथित तौर पर 19 दिसंबर को पंजाब के गुरदासपुर जिले में पुलिस चौकी पर ग्रेनेड से हमला किया था. पीलीभीत में हुए खालिस्तानी आतंकियों के एनकाउंटर ने अतीत के काले पन्नों को खोल दिया है. लोगों के मन 80 और 90 के दशकों के दौरान तराई में फैले खालिस्तानी आतंक की दहशत ताजा हो गई है. लोकल 18 से बातचीत में रिटायर्ड प्रिंसिपल ने 35 साल पहले पीलीभीत में हुई खालिस्तानी आतंक की वारदात की दहशत की दास्तान सुनाई है.
नई पीढ़ी के लिए भले ही खालिस्तानी आतंक महज़ इतिहास भर है लेकिन पुराने लोगों ने उस दौर में फैली दहशत को जिया है. इनमें से एक है पीलीभीत में रहने वाली रिटायर्ड शिक्षिका सुशीला देवी. 80 के दशक में सुशीला देवी की तैनाती बतौर प्रधानाचार्या शहर से सटे गांव दहगला में थी. सुशीला देवी ने लोकल 18 को बताया कि 1980 से 90 के दौरान पीलीभीत जिले में खालिस्तानी आतंकवाद चरम पर था. इस दौरान उनकी तैनाती शहर से कुछ दूर स्थित दहगला व सिरसा गांवों में रही है.
300 बच्चों पर मंडरा रहा था मौत का खतरा
सन 1989 में उनकी तैनाती दहगला गांव में थी. इसी दौरान एक दिन वे अपने सहकर्मियों के साथ बच्चों को पढ़ा रही थी, एकाएक करीब के किसी गाँव से ताबड़तोड़ फायरिंग की आवाज आने लगी. सड़क से गुजर रहे राहगीरों से बात करने पर पता चला कि पड़ोस के गांव धनकुना में खालिस्तानी आतंकवादी गोलीबारी कर दहशत फैला रहे हैं. सुशीला देवी बताती हैं कि उस समय उनके स्कूल में 300 से भी अधिक बच्चे पढ़ाई कर रहे थे. ऐसे में उन्हें और उनके सहकर्मियों को इन मासूमों की जान की फ़िक्र खुद की जान से ज़्यादा थी. ऐसे में उन्होंने सभी बच्चों और शिक्षकों को कमरों में ताला जड़ बंद कर दिया. उस दौरान एक एक पल काटना मुश्किल था, लेकिन कुछ देर बाद खालिस्तानी आतंकवादी हाथों में बंदूकें लहराते हुए उनके स्कूल के सामने से निकले.
काला इतिहास है खालिस्तानी आतंक
खालिस्तानी आतंकियों के गुजर जाने के कई घंटे बाद तक भी दहशत के चलते इलाक़े में सन्नाटा पसरा रहा. जब राहगीरों से जानकारी मिली कि उग्रवादी पीलीभीत की तरफ चले गए तब जाकर सबने चैन की सांस मिली. उन्होंने बताया कि निश्चित तौर पर ही वह दौर तराई के लोगों के लिए एक काला इतिहास है.
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