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चेन्नई15 मिनट पहले

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तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री अंबिल महेश पोय्यामोझी ने राज्य में केंद्र की पॉलिसी लागू नहीं करने की बात कही।

तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री अनबिल महेश पोयामोजी ने कहा कि केंद्र ने 5वीं-8वीं के बच्चों को आगे की क्लास में प्रमोट नहीं करने का जो फैसला लिया है, वह हमारे राज्य में लागू नहीं है।

उन्होंने कहा कि केंद्र का ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ खत्म करना बच्चों के लिए बाधा बन जाएगा। गरीब घरों के बच्चों को और ज्यादा दिक्कतें आएंगी, इसलिए तमिलनाडु में ऑटोमेटिक प्रमोशन वाला मॉडल ही जारी रहेगा।

जहां तक ​​तमिलनाडु का सवाल है, हमने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भी लागू नहीं किया है। हम अपने तमिलनाडु के लिए एक स्पेशल राज्य शिक्षा नीति का लाने की तैयारी कर रहे हैं।

चूंकि राज्य अपनी खुद की पॉलिसी फॉलो कर रहा है। इसलिए केंद्र की यह पॉलिसी उन्हीं स्कूल में चलेंगी, जो सेंट्रल पॉलिसी अपनाते हैं।

राज्य सरकार की नीति से चलने वाले स्कूलों के बच्चों को डरने की जरूरत नहीं है। पैरेंट्स और टीचर्स को भी कन्फ्यूज नहीं होना चाहिए।

दरअसल, केंद्र सरकार ने सोमवार को ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ खत्म कर दी थी। इसके तहत 5वीं और 8वीं क्लास के एग्जाम में फेल होने वाले स्टूडेंट्स को अब पास नहीं किया जाएगा।

16 राज्यों में पहले से खत्म है नो-डिटेंशन पॉलिसी केंद्र सरकार की नई पॉलिसी का असर केंद्रीय विद्यालयों, नवोदय विद्यालयों और सैनिक स्कूलों सहित करीब 3 हजार से ज्यादा स्कूलों पर होगा। 16 राज्य और 2 केंद्र शासित प्रदेश (दिल्ली और पुडुचेरी) नो-डिटेंशन पॉलिसी पहले पहले ही खत्म कर चुके हैं। शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक स्कूली शिक्षा राज्य का विषय है, इसलिए राज्य इस संबंध में अपना निर्णय ले सकते हैं।

केंद्र सरकार ने पॉलिसी में बदलाव क्यों किया

2016 में सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन यानी CABE ने ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट मिनिस्ट्री को ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ हटाने का सुझाव दिया था। CABE ने कहा कि इस पॉलिसी के वजह से स्टूडेंट्स के सीखने का स्तर गिर रहा है।

नो डिटेंशन पॉलिसी के अंतर्गत स्टूडेंट्स का मूल्यांकन करने के लिए टीचर्स के पास पर्याप्त साधन नहीं थे। ज्यादातर मामलों में स्टूडेंट्स का मूल्यांकन ही नहीं किया जाता था। देशभर में 10% से भी कम स्कूलों में पॉलिसी के हिसाब से टीचर्स और इंफ्रास्ट्रक्चर पाया गया। पॉलिसी में मुख्य रूप से एलिमेन्ट्री एजुकेशन में स्टूडेंट्स का एरोल्मेंट बढ़ाने पर फोकस किया गया जबकि बेसिक शिक्षा का स्तर गिरता रहा। इससे स्टूडेंट्स पढ़ाई को लेकर लापरवाह हो गए क्योंकि अब उन्हें फेल होने का डर नहीं था।

2016 की एनुअल एजुकेशन रिपोर्ट के अनुसार क्लास 5वीं के 48% से कम स्टूडेंट्स ही दूसरी (2) क्लास का सिलेबस पढ़ पाते हैं। ग्रामीण स्कूलों में आठवीं क्लास के सिर्फ 43.2% स्टूडेंट्स ही सिम्पल डिवीजन कर सकते हैं। 5वीं क्लास में चार में से सिर्फ एक स्टूडेंट ही अंग्रेजी का वाक्य पढ़ सकता है। कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने प्रारंभिक शिक्षा पर आर्टिकल 16 के इस असर को लेकर चिंता जताई थी।

शिक्षा पर टीएसआर सुब्रमण्यम कमेटी और CABE के तहत बनाई गई वासुदेव देवनानी कमेटी ने भी नो डिटेंशन पॉलिसी को रद्द करने की सिफारिश की थी।

नो डिटेंशन पॉलिसी क्यों लागू की गई

नो डिटेंशन पॉलिसी राइट टू एजुकेशन 2009 का हिस्सा थी। ये सरकार की पहल थी जिससे भारत में शिक्षा की स्थिति में सुधार हो सके। इसका उद्देश्य था कि बच्चों को शिक्षा के लिए बेहतर माहौल दिया जा सके ताकि वो स्कूल आते रहें। फेल होने से स्टूडेंट्स के आत्मसम्मान को ठेस पहुंच सकती है। साथ ही फेल होने से बच्चे शर्म भी महसूस करते हैं जिससे पढ़ाई में वो पिछड़ सकते हैं। इसलिए नो डिटेंशन पॉलिसी लाई गई जिसमें 8वीं तक के बच्चों को फेल नहीं किया जाता।

2018 में लोकसभा में बिल पास हुआ था जुलाई 2018 में लोकसभा में राइट टु एजुकेशन को संशोधित करने के लिए बिल पेश किया गया था। इसमें स्कूलों में लागू ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म करने की बात थी। इसके अनुसार 5वीं और 8वीं क्लास के स्टूडेंट्स के लिए रेगुलर एग्जाम्स की मांग की गई थी। इसी के साथ फेल होने वाले स्टूडेंट्स के लिए दो महीने के अंदर री-एग्जाम कराने की भी बात थी।

2019 में ये बिल राज्य सभा में पास हुआ। इसके बाद राज्य सरकारों को ये हक था कि वो ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ हटा सकते हैं या लागू रख सकते हैं। यानी राज्य सरकार ये फैसला ले सकती थीं कि 5वीं और 8वीं में फेल होने पर छात्रों को प्रमोट किया जाए या क्लास रिपीट करवाई जाए।

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