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नई दिल्ली2 घंटे पहले

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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल लोकसभा में सोमवार, यानी 16 दिसंबर को पेश नहीं किया जाएगा। इससे जुड़े दोनों बिल को लोकसभा की रिवाइज्ड लिस्ट से हटा दिया गया है। इससे पहले 13 दिसंबर के कैलेंडर में कहा गया था कि सोमवार को बिल लोकसभा में रखा जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक, अब फाइनेंशियल बिजनेस के पूरा होने के बाद बिल सदन में पेश किया जाएगा। हालांकि, सरकार बिल को आखिरी समय में भी लोकसभा स्पीकर की परमिशन के बाद सप्लीमेंट्री लिस्टिंग के जरिए सदन में पेश कर सकती है। कैबिनेट ने 12 दिसंबर को बिल की मंजूरी दी थी।

लोकसभा में 13 और 14 दिसंबर को संविधान पर चर्चा हुई थी। अब तक प्रधानमंत्री मोदी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और राजनाथ सिंह इस पर बोल चुके हैं। 16 और 17 दिसंबर को अब राज्यसभा में संविधान पर चर्चा होगी। संसद का शीतकालीन सत्र 25 नवंबर को शुरू हुआ था, जो 20 दिसंबर को खत्म होगा।

बिल को 18 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया जा सकता है।

रामनाथ कोविंद ने 14 मार्च को रिपोर्ट सौंपी थी एक देश-एक चुनाव पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को एक कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने करीब 191 दिनों में 14 मार्च 2024 को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी।

एक देश-एक चुनाव के अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे।

संविधान संशोधन से क्या बदलेगा, 3 पॉइंट…

  1. संविधान संशोधन के जरिए अनुच्छेद- 82(A) जोड़ा जाएगा, ताकि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकें। वहीं, अनुच्छेद- 83 (संसद के सदनों का कार्यकाल), अनुच्छेद- 172 (राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल) और अनुच्छेद- 327 (विधानसभाओं के चुनाव से जुड़े कानून बनाने में संसद की शक्ति) में संशोधन किया जाएगा।
  2. बिल के जरिए प्रावधान किया जाएगा कि आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख पर राष्ट्रपति नोटिफिकेशन जारी करेंगे। नोटिफिकेशन जारी करने की तारीख को अपॉइंटेड डेट कहा जाएगा। लोकसभा का कार्यकाल अपॉइंटेड डेट से 5 साल का होगा। लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा समय से पहले भंग होने पर बचे हुए कार्यकाल के लिए ही चुनाव कराए जाएंगे।
  3. बिल के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि यह पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक देश-एक चुनाव पर हाईलेवल कमेटी की सिफारिशों पर आधारित है। कोविंद कमेटी ने देश और राज्यों को चुनावों के साथ ही लोकल बॉडीज इलेक्शन कराने की भी सिफारिश की थी। हालांकि 12 दिसंबर को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इसे लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ है।

कोविंद कमेटी की 5 सिफारिशें…

  1. सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
  2. हंग असेंबली (किसी को बहुमत नहीं), नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
  3. पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे फेज में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडीज (नगर निकाय) इलेक्शन कराए जा सकते हैं।
  4. चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड तैयार करेगा।
  5. कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है।

कमेटी ने स्टेकहोल्डर्स और एक्सपर्ट्स से चर्चा के बाद रिपोर्ट तैयार की थी।

एक देश-एक चुनाव क्या है… भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। एक देश-एक चुनाव का मतलब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से है। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय वोट डालेंगे।

आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद दिसंबर, 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

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वन नेशन, वन इलेक्शन से जुड़ी खबर…

1. वन नेशन-वन इलेक्शन- 3 बिल ला सकती है सरकार, दो संविधान संशोधन करने होंगे

देश में एक साथ चुनाव कराने की अपनी योजना को अमल में लाने के लिए 3 विधेयक लाए जाने की संभावना है, जिनमें दो संविधान संशोधन से संबंधित होंगे। प्रस्तावित संविधान संशोधन विधेयकों में से एक स्थानीय निकाय चुनावों को लोकसभा और विधानसभाओं के साथ कराए जाने से संबंधित है। पूरी खबर पढ़ें…

2. क्या 2029 से देश में होगा वन इलेक्शन, फायदे-खामियां सब कुछ जानें…

आजाद भारत का पहला चुनाव 1951-52 में हुआ। उस वक्त लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे। 1957, 1962 और 1967 तक ये परंपरा जारी रही। 1969 में बिहार के मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री की सरकार दलबदल के चलते अल्पमत में आ गई और विधानसभा भंग हो गई। 1970 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा चुनाव भी 11 महीने पहले करा लिए। पढ़ें पूरी खबर…

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