फ्रंटलाइन फाइटर है सुखोई 30
भारत ने 1990 के दशक में रूस के साथ 272 सुखोई-30 फ़ाइटर जेट का सौदा किया था जिनमें से कुछ सीधा रूस से बनकर आए और बाकी का उत्पादन भारत में HAL ने किया. 13 सुखोई एयरक्राफ्ट क्रैश भी हुए जिससे इन 272 सुखोई-30 से अब 259 रह गई. इसी कमी को पूरा करने के लिए 12 अतिरिक्त सुखोई-30 जेट का सौदा किया गया है. भारतीय वायुसेना में इस समय 13 स्क्वाड्रन मौजूद है. भारतीय वायुसेना में इस समय सबसे ज्यादा तादाद सुखोई-30 फ़ाइटर जेट्स की ही है. दो सीटों और दो इंजिन वाला यह जेट 2 मैक की रफ्तार तक उड़ान भर सकता है और एक बार में 3000 किमी तक की दूरी तय कर सकता है. सुखोई को ब्रह्मोस मिसाइल से लैस किया जा चुका है. इसमें 12 पॉड लगे हैं जिसमें अलग अलग तरह के मिसाइल और बम को लगाया जा सकता है. कुल 8000 किलो वज़न के हथियार ले जा सकता है. यह मल्टी रोल है इसलिए इसमें हवा से हवा और हवा से ज़मीन पर मार करने वाले अलग-अलग हथियार लगाए जा सकते हैं.
बालाकोट स्ट्राइक में निभाया था महत्पूर्ण रोल
कारगिल की जंग के बाद बालाकोट एयर स्ट्राईक ही एसा मौका था जब रीयल कॉंबेट मिशन के लिए आपरेशन लॉंच किया गया था. सुखोई उस फाइटर पैकेज का हिस्सा था. बम तो मिराज 2000 ने बरसाए लेकिन सुखोई उन मिराज को बालाकोट तक ले जाने के लिए फ्री एस्कॉर्ट की जिम्मेदारी. यही नही दुश्मन के किसी भी अटैक से मिराज को बचाते हुए ये सुखोई टाईड एस्कॉर्ट में भी शामिल थे. बालाकोट अटैक के बाद पाकिस्तीन एयरफोर्स के आपरेशन को भी मिग 21 के साथ साथ सुखोई ने ही चुनौती दी थी. इसके अलावा भारत और चीन के बीच लद्दाख में हुए तनाव के बाद तो इन सुखोई को लगातार तैयार रखा गया है
कब होंगे पूरे 42 फाईटर स्क्वाड्रन ?
भारतीय वायुसेना इस समय लड़ाकू स्क्वाड्रनों की कमी से जूझ रही है. वायुसेना के लिए स्वीकृत 42 स्क्वाड्रन की जगह इस समय वायुसेना के पास केवल 31 स्क्वाड्रन बची हैं. इस कमी को पूरा करने के लिए 114 मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट की खरीद प्रक्रिया जारी है. बाकी कमी स्वदेशी फाइटर जेट तेजस से करनी है. लेकिन तेजस में लगने वाले इंजिन के अमेरिका से आने में देरी होने के चलते इस कमी के पूरा करने में और ज्यादा देरी हो रही है. जानकारों की माने तो स्क्वाड्रन की संख्या को 31 से 42 करने में 15 साल से ज्यादा का लंबा वक़्त लग सकता है.
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