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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम यह नहीं मान सकते हैं कि आरोपी के मन में ऐसी इच्छा थी कि विक्टिम सुसाइड करे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि व्यक्ति पर किसी की आत्महत्या के लिए उकसाने का दोष तभी लगाया जा सकता है, जब इसका पुख्ता सबूत हो। सिर्फ प्रताड़ना का आरोप इसके लिए काफी नहीं है। यह टिप्पणी विक्रम नाथ और पीबी वराले की पीठ ने 10 दिसंबर को गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले पर सुनवाई के दौरान दी।
दरअसल, गुजरात हाईकोर्ट ने एक महिला के उत्पीड़न और उसे आत्महत्या के लिए मजबूर करने के आरोप में उसके पति और ससुराल वालों को बरी करने से इनकार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के इस फैसले को पलटते हुए उन्हें महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से बरी कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब बेंगलुरु में 34 साल के IT इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला चर्चा में है। अतुल ने 24 पेज के सुसाइड नोट में अपनी पत्नी और उसके घरवालों पर उसे प्रताड़ित करने और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया था। इसके आधार पर बेंगलुरु पुलिस ने उनके खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज किया है।
जानिए क्या था पूरा मामला…
गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2021 में यह केस IPC की धारा 498A (विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत दर्ज किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 306 के तहत दोषी पाए जाने के लिए व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने की नीयत के पुख्ता सबूत होना जरूरी है। आरोपी को आत्महत्या के लिए उकसाए जाने का दोषी साबित करने के लिए सिर्फ प्रताड़ना काफी नहीं है।
आरोप लगाने वाले पक्ष को ऐसे सबूत पेश करने होंगे जो दिखाएं कि आरोपी ने सीधे तौर पर कुछ ऐसा किया है जिससे मृतक आत्महत्या करने पर मजबूर हुआ है। हम यह नहीं मान सकते हैं कि आरोपी के मन में ऐसी इच्छा थी कि विक्टिम सुसाइड करे। इसे सबूतों के जरिए ही साबित किया जा सकता है।
SC ने एक केस में कहा- घरेलू प्रताड़ना की धारा पत्नी के लिए हथियार बनी सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक मतभेदों से पैदा हुए घरेलू विवादों में पति और उसके घर वालों को IPC धारा 498-A में फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता जताई। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 10 दिसंबर को ऐसा ही एक मामला खारिज करते हुए कहा कि धारा 498-A (घरेलू प्रताड़ना) पत्नी और उसके परिजनों के लिए हिसाब बराबर करने का हथियार बन गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तेलंगाना से जुड़े एक मामले में की। दरअसल, एक पति ने पत्नी से तलाक मांगा था। इसके खिलाफ पत्नी ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू क्रूरता का केस दर्ज करा दिया। पति इसके खिलाफ तेलंगाना हाईकोर्ट गया, लेकिन कोर्ट ने उसके खिलाफ दर्ज केस रद्द करने से इनकार कर दिया। इसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।
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