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नई दिल्ली: इन दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव अपने बयानों को लेकर चर्चा में हैं. उन्होंने रविवार को विश्व हिन्दू परिषद के एक कार्यक्रम में भाग लिया था और वहां विवादित बयान दिया था. उन्होंने यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) के मुद्दे पर कहा, “हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा.” इस बयान के बाद देश में नया विवाद खड़ा हो गया. विवाद से अब संसद भी अछूता नहीं रहा. संसद में विपक्षी दल जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या महाभियोग से जज को हटाया जा सकता है. इस खबर में हम इससे जुड़े तमाम सवालों के जवाब तो टटोलने की कोशिश करेंगे.

कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने बुधवार को कहा कि संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र में ही इसके लिए नोटिस दिया जाएगा. अब तक राज्यसभा के 30 से अधिक सदस्यों के हस्ताक्षर लिए जा चुके हैं. प्रस्ताव से जुड़ा नोटिस 100 लोकसभा सदस्यों या 50 राज्यसभा सदस्यों द्वारा पेश किया जाना चाहिए. लेकिन महाभियोग का रास्ता इतना भी आसान नहीं है. और अगर इतिहास के पन्ने पलटें तो इतिहास भी इस बात का गवाह है कि आज तक किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है.

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इतिहास में किसी भी जज के खिलाफ नहीं
जजों के खिलाफ महाभियोग मामले में विपक्ष का साथ इतिहास भी नहीं देता है. स्वतंत्र भारत के इतिहास में आज तक एक भी जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी है. नब्बे की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर महाभियोग लाया गया था लेकिन यह लोकसभा में पास नहीं हो सका. इसके बाद कोलकाता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ पैसों को लेकर ये प्रस्ताव आया, लेकिन उन्होंने पहले ही इस्तीफा दे दिया. फिर साल 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया. उनपर विपक्षी दलों ने दुर्व्यवहार का आरोप लगाया. लेकिन तत्कालीन राज्यसभा सभापति ने उसे खारिज कर दिया.

क्या महाभियोग से जज को हटाया जा सकता है?
बताते चलें कि हाई कोर्ट जज के खिलाफ महाभियोग लाना मुमकिन है. संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 217 के तहत, जजों को पद से हटाने की प्रकिया बताई गई है. हालंकि यह प्रोसेस काफी मुश्किल है लेकिन यह फिर भी संभव है. अगर जज पर गलत व्यवहार या क्षमता की कमी जैसे आरोप लगें तो महाभियोग जैसा कदम उठाया जा सकता है. हाई कोर्ट के किसी भी जज को हटाने के लिए प्रस्ताव को संसद के हर सदन यानी लोकसभा और राज्यसभा से विशेष बहुमत से पास होना चाहिए. विशेष बहुमत वास्तव में उस सदन की कुल सदस्यता का बहुमत और उस सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले कम से कम दो-तिहाई सदस्यों का बहुमत होता है.

जस्टिस यादव पर क्यों मचा है बवाल?
अब आते हैं असल बात पर कि आखिर जस्टिस शेखर यादव को लेकर इतना बवाल मचा क्यों है. विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में जस्टिस शेखर यादव का कहना था कि एक से ज़्यादा पत्नी रखने, तीन तलाक़ और हलाला के लिए कोई बहाना नहीं है और अब ये प्रथाएं नहीं चलेंगी.जस्टिस यादव की इस भाषण से जुड़े वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए. इसके बाद उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने अपने बयान में कहा, “जिस नारी को हमारे यहां देवी का दर्जा दिया जाता है, आप उसका निरादर नहीं कर सकते हैं. आप यह नहीं कह सकते हैं कि हमारे यहां तो चार पत्नियां रखने का अधिकार है, हमारे यहां तो हलाला का अधिकार है, हमारे यहां तो तीन तलाक़ बोलने का अधिकार है. ये सब नहीं चलने वाला है.”

Tags: Allahbad high court

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