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नई दिल्ली2 मिनट पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने पारिवारिक विवाद के मामले में आदेश दिया कि पति अपनी पत्नी और बच्चों को 5 करोड़ रुपए का गुजारा-भत्ता दे। कोर्ट ने आदेश दिया कि पति फाइनल सेटलमेंट के तौर पर यह रकम पत्नी को दे।

कोर्ट ने आदेश के दौरान यह साफ कर दिया कि गुजारा-भत्ता देने का मकसद यह नहीं है कि पति को दंडित किया जाए। हम यह चाहते हैं कि पत्नी और बच्चे सम्मानित तरीके से जीवन गुजार सकें।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी की बेंच ने कहा कि सेटलमेंट में से एक करोड़ की रकम उनके बेटे के गुजारे-भत्ते और उसकी आर्थिक सुरक्षा के लिए तय की जाए।

SC ने 8 पॉइंट पर विचार कर सुनाया फैसला

  1. पति-पत्नी की समाजिक और आर्थिक हैसियत
  2. पत्नी-बच्चों की उचित जरूरतें
  3. दोनों पक्षों की क्वालिफिकेशन और इम्पलॉयमेंट
  4. इनकम और प्रॉपर्टी
  5. पत्नी का ससुराल में रहते हुए स्टैंडर्ड ऑफ लाइफ
  6. अगर परिवार की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ी है
  7. नौकरी ना करने वाली पत्नी के लिए कानूनी लड़ाई की उचित रकम
  8. पति की आर्थिक हैसियत, उसकी कमाई और गुजारे-भत्ते की जिम्मेदारियां

2 दशक तक अलग रहे, कोर्ट बोला- शादी निभाना अब संभव नहीं इस केस में पति-पत्नी शादी के 6 साल बाद करीब 2 दशक तक अलग रहे। पति ने पत्नी पर आरोप लगाया था कि वे परिवार के साथ सही व्यवहार नहीं करती हैं। पत्नी का आरोप था कि पति का व्यवहार उनके लिए ठीक नहीं है। ऐसे में अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों का शादी का नैतिक दायित्व निभाना संभव नहीं है। दोबारा शादी का संबंध निभा नहीं सकते और यह शादी टूट चुकी है।

कोर्ट ने कहा- पत्नी बेरोजगार, पति 12 लाख महीना कमाता है कोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त कहा कि पत्नी बेरोजगार है। वे घर का कामकाज करती है। उधर, पति फॉरेन बैंक में मैनेजेरियल पोस्ट पर है और हर महीना करीब 10-12 लाख रुपया कमाता है। ऐसे में हम यह शादी खत्म करते वक्त 5 करोड़ की रकम पर्मानेंट सेटलमेंट के तौर पर तय करते हैं, यह उचित है।

SC ने एक केस में कहा- घरेलू प्रताड़ना की धारा पत्नी के लिए हथियार बनी सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक मतभेदों से पैदा हुए घरेलू विवादों में पति और उसके घर वालों को IPC धारा 498-A में फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता जताई। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 10 दिसंबर को ऐसा ही एक मामला खारिज करते हुए कहा कि धारा 498-A (घरेलू प्रताड़ना) पत्नी और उसके परिजनों के लिए हिसाब बराबर करने का हथियार बन गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तेलंगाना से जुड़े एक मामले में की। दरअसल, एक पति ने पत्नी से तलाक मांगा था। इसके खिलाफ पत्नी ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू क्रूरता का केस दर्ज करा दिया। पति इसके खिलाफ तेलंगाना हाईकोर्ट गया, लेकिन कोर्ट ने उसके खिलाफ दर्ज केस रद्द करने से इनकार कर दिया। इसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।

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