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नई दिल्ली.  जिन फैसलों को लेकर पर्थ टेस्ट के पहले दिन के पहले घंटे में कोच को हाशिए पर रखा गया आज वहीं फैसले जीत का कराण बने. पर सवाल बड़ा ये है कि जिस तरह न्यूजीलैंड से सीरीज में मिली हार से गौतम गंभीर को दुनिया का सबसे खराब कोच नहीं माना जा सकता ,उसी तरह पर्थ की जीत ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ भी नहीं बना सकती . पर पर्थ टेस्ट ने ये तय कर दिया कि कोच और उनके स्पोर्ट स्टाफ भी सम्मान पाने के हकदार हैं. पर्थ में टेस्ट की शुरुआत में गौतम गंभीर आक्रामक लाइन में थे. न्यूजीलैंड के खिलाफ हार के लिए वह दोषी नंबर 1 थे, और हर्षित राणा जैसे खिलाड़ियों को टीम में शामिल करने के लिए उन पर पक्षपात का आरोप लगाया गया था.ऐसा कहा गया कि गौतम ने कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) कनेक्शन के कारण हर्षित को प्राथमिकता दी.नीतीश कुमार रेड्डी को शामिल करने पर भी सवाल उठाए गए और पर्थ में मिली सफलता से गंभीर पर दबाव थोड़ा कम जरूर हुआ होगा.

सोशल मीडिया पर विश्वास किया जाए तो गंभीर एक बार फिर महान कोच हैं. हर्षित का चयन एक मास्टरस्ट्रोक था और रेड्डी का भी. केएल राहुल को शीर्ष पर खिलाना सभी का सर्वश्रेष्ठ फैसला था और भारतीय क्रिकेट सुरक्षित हाथों में है.सच तो यह है कि एक जीत गंभीर को महान कोच नहीं बनाती, ठीक वैसे ही जैसे एक श्रृंखला हार ने उन्हें सबसे खराब कोच नहीं बनाया. हमारे प्रशंसकों के बीच यही सुधार करने की जरूरत है. हम एक निश्चित सोच के साथ व्यवहार करते हैं,फिर या तो किसी को हम अर्श पर पहुंचाते या तुरंत ही फर्श पर ले आते है.

कोच की सोच

पर्थ टेस्ट में मिली जीत के बाद सच्चाई यह है कि हमें गंभीर को समय देने की जरूरत है. पर्थ एक सनसनीखेज जीत थी, लेकिन पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला में यह सिर्फ एक जीत है. एडिलेड में दिन-रात का टेस्ट भारतीय टीम से बहुत सारे सवाल पूछेगा, और हममें से बहुत से लोग दिसंबर 2020 में गुलाबी गेंद के खिलाफ 36 रनों की पारी को नहीं भूले हैं. भारत बहुत अधिक गुलाबी गेंद से टेस्ट नहीं खेलता है और यह 10 दिनों में इसकी आदत डालने के लिए काफी कड़ी चुनौती होगी। गंभीर की सोच का एक बार फिर परीक्षण किया जाएगा . एडिलेड में जो कुछ भी होगा, एक बात तय है कि पांच मैचों की इस सीरीज में भारतीय टीम और उनके कोच जीतने के लिए मैदान पर उतरेंगे. और यही सोच गंभीर के कार्यकाल का भविष्य तय करेगी.

गौतम के सामने गंभीर चुनौतियां

10 महीने के अंतराल में घर से बाहर 10 टेस्ट – पांच ऑस्ट्रेलिया में और पांच इंग्लैंड में – किसी भी कोच के लिए सबसे कठिन चुनौती है, और गंभीर ऐसे व्यक्ति हैं जो इसका डटकर सामना करेंगे. शायद इसीलिए वह इस पद के लिए सही विकल्प थे.पिछले दौरे पर, एडिलेड में रोशनी के नीचे भारतीय टीम के अंधेरे में डूबने के बाद, उस समय के कोच रवि शास्त्री की प्रेरक सोच और सकारात्मकता ने भारत की अविश्वसनीय वापसी में एक बड़ी भूमिका निभाई। गंभीर भले ही कैमरा और माइक के सामने उतने नेचुरल न हों,पर क्रिकेट को लेकर उनकी सोच नेचुरल और सकारात्मक है .गौतम को इस दौरे पर और कड़े फैसले लेने होंगे और अपना तेवर बरकार रखना होगा जो हम ऑस्ट्रेलिया में एक मुख्य कोच से देखना चाहते हैं.तभी सीरीज भी जीतेंगे और वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के लिए रास्ता भी खुल सकता है.

Tags: Border Gavaskar Trophy, Gautam gambhir, India vs Australia, KL Rahul, Rishabh Pant, Rohit sharma, Virat Kohli

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