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-मुर्गी के दाने और दवाई के बॉक्स के बीच छिपा रखी थी चंडीगढ़ की शराब
-पंजाब से अंबाला-करनाल के रास्ते तीन दिन में मुजफ्फरनगर होते हुए लखनऊ पहुंचा था तस्कर
-शराब माफिया के नेटवर्क को तोडऩे में आबकारी अधिकारी की रणनीति कर रही कमाल
-आबकारी विभाग की कार्रवाई ने पटना और बिहार के शौकीनों को फिर रखा प्यासा

उदय भूमि
लखनऊ। अवैध रूप से आसानी से शराब तस्करी के लिए शराब माफियाओं ने अब नया वीआईपी तरीका इजाद किया है। देखा जाए तो शराब तस्करी के लिए शराब माफिया हर बार नए तरीकों का इजाद करते हुए नजर आते है। मगर क्या करें उनके सभी तरीके आबकारी विभाग के सामने धरे के धरे रह जाते है। शराब माफिया के लिए इन दिनों लखनऊ खतरों का शहर बन गया है। शराब माफिया भले ही अन्य जिलों के पुलिस व आबकारी विभाग की टीम को चकमा देने में सफलता हासिल कर ली हो, मगर लखनऊ आबकारी विभाग की टीम को चकमा देना इतना आसान नहीं है। शराब माफिया ने इस बार पटना और बिहार में शराब तस्करी के लिए मुर्गी के दानों तक को नहीं छोड़ा है। मुर्गी दाने और दवाई सप्लाई के नाम पर शराब माफिया पटना और बिहार में शराब तस्करी कर रहे थे। मगर उनकी शराब पटना और बिहार पहुंचने से पहले ही लखनऊ में पकड़ी गई। अवैध शराब के खिलाफ प्रदेश के सभी जिलों में आबकारी विभाग की टीमें कार्रवाई कर रही है। मगर लखनऊ आबकारी विभाग की टीम ने एक बार फिर अपनी कार्रवाई से अन्य जिलों में चल रही अवैध शराब के खिलाफ कार्रवाई की पोल खोल कर रख दी है। शराब माफिया पंजाब से चंडीगढ़ की शराब भरकर अंबाला-करनाल के रास्ते होते हुए उत्तर प्रदेश की सीमा में बहुत आसानी से घुस गए। हरियाणा की टीम को चकमा देने के साथ-साथ उन्होंने मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, बरेली, शाहजहांपुर, लखीमपुर और सीतापुर आबकारी विभाग की नाक के नीचे से शराब से भरा ट्रक लेकर लखनऊ पहुंच गए।

इस बीच न तो किसी ने उन्हें पकड़ा और न ही उनके वाहन को चेक किया। शराब माफिया ने शराब तस्करी के लिए इस बार जल्दबाजी भी नहीं दिखाई। धीरे-धीरे तीन दिन में पंजाब से लखनऊ का सफर तय किया। इस बीच शराब माफिया का मुखबिर तंत्र भी हर जिले में उनके आगे चलकर उनका रास्ता तय करता हुआ दिखाई दिया। जिस शराब को मुजफ्फरनगर की टीम को पकड़ना चाहिए तो उसे लखनऊ की टीम ने पकड़ लिया। लखनऊ जिले की कमान संभालने के बाद से ही आबकारी अधिकारी राकेश कुमार सिंह ने अपनी चाणक्य नीति से एक बार फिर से शराब माफिया को तिलिस्म तोड़ दिया है। पिछले कुछ माह में शराब माफिया ने कई बार लखनऊ के रास्ते बिहार में शराब सप्लाई करने की सोची है, मगर उनका माल लखनऊ से कभी भी आगे नहीं बढ़ पाया है।

किसी भी जिले में जिला आबकारी का पद संभालना इतना आसान नहीं है, मगर आबकारी अधिकारी राकेश कुमार सिंह जिस जिले में रहें वहां अपने कामों से वाहवाही लूटने का काम किया है। क्योंकि शराब माफिया के नेटवर्क को तोडऩे के लिए उनकी कार्रवाई का अंदाज ही सबसे अलग रहता है। इसलिए जब भी शासन की बैठक होती है तो जिला आबकारी अधिकारी की तारीफ जरूर होती है। शराब माफिया का नेटवर्क तोड़ना हर किसी के लिए इतना आसान नहीं है, इसके लिए अधिकारियों को शराब माफिया की सोच से दस कदम आगे बढ़कर मात देनी होती है। यहीं सोच आजकल लखनऊ आबकारी अधिकारी अपनी कुशल कार्यशैली से साबित करते नजर आ रहे है। जिला आबकारी अधिकारी राकेश कुमार सिंह ने बताया जिले में अवैध शराब के निर्माण, बिक्री और परिवहन के खिलाफ लगातार कार्रवाई की जा रही है। बुधवार तड़के मुखबिर से सूचना मिली कि हरियाणा नंबर ट्रक जो जीरकपुर पंजाब में अवैध शराब से लोड होकर लखनऊ के रास्ते पटना, बिहार को ले जाई जा रही है।

सूचना पर तत्काल कार्रवाई करते हुए आबकारी निरीक्षक अभिषेक सिंह, लक्ष्मी शंकर बाजपेई, अखिल गुप्ता की टीम गठित की गई। सुबह लगभग 5.15 बजे इंदौरा बाग चौराहे के पास आबकारी विभाग की टीम ने चेकिंग तेज कर दी। जैसे ही चौराहे के पास चंडीगढ़ मार्का शराब से भरा ट्रक पहुंचा तो टीम ने रुकने का इशारा किया। टीम को देख ट्रक चालक हरी राम पुत्र राम किशुन निवासी ग्राम दरिया चंडीगढ़ ने भी गाड़ी को साइड लगा दिया और टीम के हाथ में मुर्गी दाने की बोरियां तथा दवाई के गत्ते की बिल्टी थमा दिया, जो कि पटना बिहार में लेकर जा रहा था। उसे भी लगा कि जैसे प्रदेश के अन्य अधिकारियों को कागज दिखाकर आसानी से निकल गया था, यहां भी पेपर दिखाकर आगे बढ़ जाएगा। मगर टीम ने पेपर हाथ में लेने के बाद गाड़ी की तलाशी शुरु कर दी। शराब माफिया ने शराब से भरी पेटियों को मुर्गी के दानों की बोरियों के बीच में छिपाकर रखा हुआ था। जब टीम ने तलाशी ली तो रॉयल चैलेंज व्हिस्की के 344 बोतल (प्रत्येक 2 लीटर) और रॉयल बैरल सलेक्ट व्हिस्की के 300 बोतल (प्रत्येक 750 एमएल) बरामद की गई। कुल 913 लीटर अवैध शराब बरामद किया गया। जिसकी कीमत करीब 10 लाख रुपये से भी अधिक है। वहीं गाड़ी से दवाई के 250 गत्ते और मुर्गी दाने की 280 बोरियां भी बरामद की गई।

पूछताछ में तस्कर ने बताया कि वह उक्त गाड़ी को 10 नवंबर को जिरकपुर (पंजाब) से अंबाला-करनाल के रास्ते 11 नवंबर की रात को बिडौली टोल प्लाजा शामली पार किया। वहां एक दिन आराम करने के बाद फिर अगले दिन 12 नवंबर को गाड़ी चलाकर मुजफ्फरनगर पहुंचा और वहां दिन भर खड़ा रहा। शाम होने के बाद वह वहां से निकल कर बिजनौर, मुरादाबाद, बरेली, शाहजहांपुर, लखीमपुर और सीतापुर के रास्ते होते हुए जैसे बुधवार (13 नवंबर) की सुबह लगभग 5.15 बजे जैसे ही लखनऊ के इंदौरा बाग चौराहे के पास पहुंचा तो टीम ने दबोच लिया। बरामद शराब को जब्त करते हुए पकड़े गए तस्कर के खिलाफ आबकारी अधिनियम के तहत कार्रवाई करते हुए जेल भेज दिया गया। वहीं तस्कर से पूछताछ में अवैध शराब के कारोबार में शामिल अन्य व्यक्ति और मोबाइल नंबर मिले है।

जिसकी जांच की जा रही है। पकड़ा गया तस्कर पंजाब से शराब भरकर अंबाला-करनाल के रास्ते उत्तर प्रदेश की सीमा होते हुए पटना बिहार लेकर जा रहा था। जिला आबकारी अधिकारी का कहना है कि शराब माफिया शराब तस्करी के लिए लाख जतन करने, उनकी दाल लखनऊ में बिल्कुल भी गलने वाली नहीं है। लखनऊ में अवैध शराब का कोई भी धंधा बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं होगा। भले ही शराब माफिया तस्करी के लिए नए-नए तरीके इजाद कर लें, उनके सभी तरीकों को ध्वस्त करने के लिए आबकारी विभाग हमेशा तत्पर है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि जिले में अवैध शराब का कोई भी कारोबार हो, उसे बिल्कुल भी सह नहीं दी जाएगी। शराब माफिया की भलाई इसी में है कि वह अवैध शराब का धंधा या तो छोड़ दें या फिर लखनऊ की सीमा से बिल्कुल दूर रहें। अवैध शराब के खिलाफ आबकारी विभाग की कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी।

मुजफ्फरनगर, बिजनौर समेत सात जिलों की टीम को शराब माफिया ने दिया चकमा
शराब माफिया बिहार में शराब तस्करी के लिए बहुत ही आतुर रहते है। क्योंकि उन्हें पता है बिहार में एक बार शराब सप्लाई होने पर जितने की शराब है, उससे कई अधिक उन्हें फायदा होता है। बिहार में शराब प्रतिबंध है। जिसका फायदा शराब माफिया को मिलता है। इसलिए अगर कहीं सबसे अधिक शराब की डिमांड रहती है तो वह बिहार में ही होती है। शराब माफिया ने इस बार अपनी चतुराई से एक नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के सात जिलों की टीम को चकमा दे दिया। पंजाब से शराब भरकर अंबाला-करनाल के रास्ते होते हुए उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और बिजनौर, मुरादाबाद, बरेली, शाहजहांपुर, लखीमपुर और सीतापुर आबकारी विभाग की टीम और पुलिस को बड़े ही आसानी से चकमा दे दिया। जबकि अवैध शराब की तलाश में आबकारी विभाग की टीमें दिन रात चेकिंग और दबिश देती रहती है। मगर इस बार उनकी नाक के नीचे से होते हुए शराब लखनऊ तक पहुंच गई। अगर लखनऊ आबकारी विभाग की टीम भी थोड़ी बहुत सुस्त पड़ जाती तो वह शराब लखनऊ से बिहार पहुंचाने में शराब माफिया को बिल्कुल भी समय नहीं लगता। शराब तस्करी के लिए ड्राइवर को भी इसमें अच्छी खासी कमाई होती है। इसलिए ड्राइवर भी शराब तस्करी के लिए अपना दिमाग लगाते रहते है। शराब तस्करी के लिए उन्हें भी एक चक्कर के पचास हजार रुपये और इसके अतिरिक्त आने-जाने का पूरा खर्चा मिलता है।

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