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उत्तर प्रदेश में मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा एक्ट की वैधता को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें एक्ट को रद्द करते हुए कहा गया था कि यूपी का मदरसा एक्ट धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन है।
खबर में जानेंगे कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा है, मदरसा कानून क्या है, हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक क्यों बताया था और अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मदरसे की पढ़ाई में क्या बदलाव आएगा…
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में 5 बड़ी बातें कहीं
- संविधान का आर्टिकल 21 A और राइट टू एजुकेशन एक्ट 2009, मदरसे खोलने के अल्पसंख्यकों के अधिकार के लिए कोई रुकावट नहीं है। इसलिए मदरसा एक्ट असंवैधानिक नहीं है।
- अधिनियम को खारिज करना बच्चे को नहाने के पानी के साथ बाहर फेंकने के जैसा है।
- मदरसा एक्ट, समवर्ती सूची की एंट्री 25 के तहत राज्य सरकार की विधायी क्षमता के तहत आता है।
- मदरसे धर्मनिरपेक्ष शिक्षा देंगे यह सुनिश्चित करने के लिए मदरसा बोर्ड राज्य सरकार की मंजूरी से नियम बना सकता है।
- मदरसा एक्ट के तहत फाजिल और कामिल की हायर एजुकेशन की डिग्रियां असंवैधानिक हैं क्योंकि ये UGC एक्ट के उलट हैं।
मदरसा बोर्ड कामिल नाम से ग्रेजुएशन और फाजिल नाम से पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री देता है। यह डिग्रियां अब सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दे दी हैं।
सरकार का नियंत्रण लाने के लिए लाया गया मदरसा एक्ट
साल 2004 में मदरसों की पढ़ाई को बेहतर बनाने के लिए मदरसा एजुकेशन एक्ट लाया गया था। इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश में मदरसों के कामकाज को नियंत्रित करना है। एक्ट के तहत उत्तर प्रदेश में मदरसे खोलने, उनको मान्यता देने और मदरसों के प्रशासन के लिये एक फ्रेमवर्क बनाया गया।
एक्ट के तहत, यूपी में मदरसों की गतिविधियों की देखरेख और निगरानी के लिए उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड की स्थापना की गई। बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया तय किए गए थे। बोर्ड मदरसों के लिए सिलेबस तैयार करने, टीचिंग मटेरियल और टीचर्स को ट्रेनिंग देने का काम करता था।
मदरसा एक्ट के खिलाफ कोर्ट में याचिका, 5 प्रमुख समस्याएं बताई गईं
मदरसा एक्ट के खिलाफ सबसे पहले 2012 में दारुल उलूम वासिया मदरसा के मैनेजर सिराजुल हक ने याचिका दाखिल की थी। फिर 2014 में माइनॉरिटी वेलफेयर लखनऊ के सेक्रेटरी अब्दुल अजीज और 2019 में लखनऊ के मोहम्मद जावेद ने याचिका दायर की थी। इसके बाद 2020 में रैजुल मुस्तफा ने दो याचिकाएं दाखिल की थीं। 2023 में अंशुमान सिंह राठौर ने याचिका दायर की। वहीं राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (NCPCR) का तर्क था कि भले ही किसी को धार्मिक शिक्षा लेने का अधिकार है लेकिन इसे मुख्यधारा की पढ़ाई के विकल्प के तौर पर नहीं स्वीकार किया जा सकता। इन सभी मामलों का नेचर एक था। इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी याचिकाओं को मर्ज कर दिया।
इन याचिकाओं में इन 5 पॉइंट्स को लेकर एक्ट का विरोध किया गया-
- मदरसा एक्ट, धार्मिक आधार पर अलग तरह की शिक्षा को बढ़ावा देता है, इसलिए यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत और मौलिक अधिकारों के खिलाफ है।
- शिक्षा के अधिकार से जुड़े संविधान के आर्टिकल 21A के तहत 14 साल की उम्र तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने में मदरसे विफल हैं।
- शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 से मदरसों को बाहर रखने के चलते बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती।
- मदरसों में आधुनिक विषयों की पढ़ाई से ज्यादा इस्लाम की धार्मिक शिक्षा दी जा रही है।
- यह एक्ट विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की धारा 22 के उलट है, जिसमें हायर स्टडीज की डिग्री देने के नियम हैं।
यूपी सरकार की अवैध मदरसों की जांच से मामले ने तूल पकड़ा
यूपी सरकार को सामाजिक संगठनों और सुरक्षा एजेंसियों से इनपुट मिले थे कि अवैध तरीके से मदरसों का संचालन किया जा रहा है। इस आधार पर उत्तर प्रदेश परिषद और अल्पसंख्यक मंत्री ने सर्वे कराने का फैसला लिया था। इसके बाद हर जिले में 5 सदस्यीय टीम बनाई गई। इसमें जिला अल्पसंख्यक अधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक शामिल थे।
10 सितंबर 2022 से 15 नवंबर 2022 तक मदरसों का सर्वे कराया गया था। इस टाइम लिमिट को बाद में 30 नवंबर तक बढ़ाया गया। इस सर्वे में प्रदेश में करीब 8441 मदरसे ऐसे मिले थे, जिनकी मान्यता नहीं थी। अक्टूबर 2023 में यूपी सरकार ने मदरसों की जांच के लिए SIT का गठन किया था। SIT मदरसों को हो रही विदेशी फंडिंग की जांच कर रही है। उत्तर प्रदेश में फिलहाल 25 हजार मदरसे हैं। इनमें से लगभग 16,500 मदरसों को राज्य मदरसा शिक्षा परिषद् से मान्यता मिली हुई है। इनमें से 560 मदरसे ऐसे भी हैं, जिन्हें सरकारी अनुदान मिलता है।
हाईकोर्ट ने मदरसा एक्ट को असंवैधानिक करार दिया
22 मार्च 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मदरसा एजुकेशन एक्ट को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया था। कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा था कि यह एक्ट धर्मनिरपेक्षता, भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 ,15 (समानता का अधिकार) और 21-A (शिक्षा का अधिकार) के खिलाफ है।
हाई कोर्ट ने कहा कि मदरसा बोर्ड ने बच्चों की शिक्षा को लेकर भेदभाव किया है। हाई कोर्ट ने कहा कि जब सभी धर्मों के बच्चों को हर सब्जेक्ट में मॉडर्न एजुकेशन मिल रही है, तो विशेष धर्म के बच्चों को मदरसे की शिक्षा तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को मान्यता प्राप्त स्कूलों में ट्रांसफर करने के लिए योजना बनाने के निर्देश भी दिए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ मदरसा अजीजिया इजाजुतूल उलूम के मैनेजर अंजुम कादरी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 5 अप्रैल, 2024 को सुप्रीम कोर्ट में पहली बार सुनवाई हुई। कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी।
कोर्ट ने कहा था, ‘हाईकोर्ट प्रथम दृष्टया सही नहीं है। ये कहना गलत होगा कि यह मदरसा एक्ट धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है। मदरसों के छात्रों को दूसरे स्कूल में ट्रांसफर करने का निर्देश देना ठीक नहीं है। देश में धार्मिक शिक्षा कभी भी अभिशाप नहीं रही है। बौद्ध भिक्षुओं को कैसे प्रशिक्षित किया जाता है?’
यूपी सरकार ने भी हाईकोर्ट में मदरसा एक्ट का बचाव किया था। तब कोर्ट ने कहा था- धर्मनिरपेक्षता का मतलब है, ‘जियो और जीने दो। अगर सरकार कहती है कि उन्हें कुछ धर्मनिरपेक्ष शिक्षा भी दी जाए तो यह देश की भावना है।’
22 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मदरसा एक्ट संवैधानिक, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की 2 गलतियां बताईं
5 नवंबर 2004 को CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट के फैसले में 2 गलतियां बताईं…
- ‘हाईकोर्ट ने यह मानकर गलती की कि मदरसों की पढ़ाई, शिक्षा के अधिकार से जुड़े आर्टिकल-21 का उल्लंघन करती है। क्योंकि राइट टू एजुकेशन, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं होता है।’
- ‘यह मानना भी गलत है कि धार्मिक शिक्षा देने के लिए मदरसा खोलने का अधिकार आर्टिकल 30 के तहत संरक्षित है। क्योंकि मदरसे भले ही धार्मिक शिक्षा देते हों, वह मूल रूप से शिक्षा ही है, इसलिए मदरसा एक्ट, समवर्ती सूची के तहत राज्य सरकार को मिली विधायी क्षमता से बाहर नहीं जा सकता।’
अब मदरसे कामिल और फाजिल की डिग्री भी नहीं दे सकेंगे। कोर्ट के फैसले के मुताबिक, मदरसे 12वीं तक का सर्टिफिकेट दे सकते हैं, लेकिन आगे की तालीम यानी पोस्ट ग्रेजुएशन और ग्रेजुएशन की डिग्री देने की मान्यता मदरसों के पास नहीं होगी। मतलब यह है कि बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त मदरसे अब छात्रों को कामिल और फाजिल की डिग्री नहीं दे सकेंगे।
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