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– फोटो : अमर उजाला
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सोनिया तीन वर्ष की थीं, जब उनके माता-पिता और चाचा 1984 में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों में मारे गए थे। उन्होंने शनिवार को दिल्ली में दंगों की 40वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित प्रेसवार्ता में कहा कि उनकी बहन, जो उस समय 13 वर्ष की थी, उन्होंने बाद में उसे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई हिंसा और सिख समुदाय के लोगों की हत्याओं के बारे में बताया था।
सोनिया ने कहा कि वह तीन साल की थी, उनकी बहन ने उन्हें घटना के बारे में बताया कि कैसे पिता और चाचाओं की हत्या कर दी गई। आंखों में आंसू भरे उन्होंने बताया कि कैसे उनकी बहन ने उनके माता-पिता की अनुपस्थिति में उनकी देखभाल की। सोनिया अब एक एनजीओ के साथ काम करती हैं। उनके दो बच्चे हैं। 31 अक्तूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उनके घर पर उनके दो अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने हत्या कर दी थी। अन्य दंगा पीड़िता दर्शन कौर बताती हैं कि भीड़ उनके घर पर टूट पड़ी थी और बार-बार की गई विनती के बावजूद वह असहाय होकर देखती रहीं कि उसके परिजनों पर हमला हो रहा है।
भीड़ ने घर पर रसायनों से भरी बोतलें फेंकीं, पति को छीन लिया : दंगों के समय एक नवजात बेटे और दो अन्य बच्चों को दूध पिला रहीं दर्शन कौर ने उस दिन को याद किया जब उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। भीड़ उनके घर पर टूट पड़ी थी और बार-बार की गई विनती के बावजूद वह असहाय होकर देखती रहीं कि परिजनों पर हमला हो रहा है। उन्होंने कहा कि उनके पास न कोई टेलीविजन था, न ही इससे जुड़ी चेतावनी मिली थी। दर्शन कौर ने कहा कि अगले दिन यानी 1 नवंबर 1984 को जब उन्हें इंदिरा गांधी की मौत के बारे में पता चला, तो अराजकता फैल गई। उनके घर पर भीड़ आई और घर पर रसायनों से भरी बोतलें फेंकीं और पति को मुझसे छीन लिया। फिलहाल चालीस साल बीत चुके हैं और वह अभी भी अपने प्रियजनों के लिए शोक मना रहे हैं। उन्होंने कहा कि न्याय अब भी अप्राप्य है। उस दिन का दर्द एक त्रासदी की याद दिलाता है, जिसने परिवारों और समुदायों पर अमिट निशान छोड़े हैं।
डॉक्यूमेंट्री में दंगों में बचे हुए लोगों को दिखाया
प्रेसवार्ता के दौरान वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का ने कहा कि वह और उनकी टीम दंगों की 40वीं वर्षगांठ पर ‘1984 नरसंहार न्याय की अंतहीन खोज’ शीर्षक से 20 डॉक्यूमेंट्री की एक शृंखला जारी कर रही है। उन्होंने कहा कि डॉक्यूमेंट्री में दंगों में बचे हुए लोगों को दिखाया गया है, जो उस समय के अपने अनुभव बताते हैं। शनिवार को 12 वीडियो जारी किए गए। बाकी वीडियो 9 नवंबर को चंडीगढ़ में जारी किए जाएंगे। फुल्का ने कहा कि 1984 की घटना ने न केवल अनगिनत नागरिकों की हत्या की, बल्कि न्याय की भी हत्या की थी।
पूरी न्याय व्यवस्था हो गई थी ध्वस्त एचएस फुल्का ने आरोप लगाया कि उस समय पूरी न्याय व्यवस्था ध्वस्त हो गई थी। आंखों पर पट्टी बांधे महिला न्यायाधीश उन न्यायाधीशों की अंधता को प्रतिबिंबित करती है, जो अपने आसपास हो रहे अत्याचारों को देखने में विफल रहे। उन्होंने कहा कि 2017 तक सुप्रीम कोर्ट ने इस नरसंहार के अपराधियों को दंडित करने में सक्रिय रुचि नहीं ली थी। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने मामलों को फिर से खोलने के लिए एक नई विशेष जांच टीम का गठन किया, जो पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करने की लंबे समय से लंबित प्रतिबद्धता का संकेत देता है।
दंगों के सिलसिले में 587 एफआईआर की गई थीं दर्ज : रिपोर्ट
नानावटी आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में हुए दंगों के सिलसिले में 587 एफआईआर दर्ज की गईं, जिनमें दो हजार 733 लोग की मौत हुई। कुल मामलों में से पुलिस ने लगभग 240 मामलों को अज्ञात बताकर बंद कर दिया और लगभग 250 मामलों में लोगों को बरी कर दिया गया। इसके अलावा मई 2023 में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 1 नवंबर 1984 को तीन लोगों की हत्या में कथित भूमिका के लिए कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। 27 मामलों में लगभग 400 लोगों को दोषी ठहराया गया। उनमें से लगभग 50 लोगों को हत्या के लिए दोषी ठहराया गया, जिसमें पूर्व कांग्रेस नेता सज्जन कुमार भी शामिल थे।
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