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आयुष्मान भारत योजना
– फोटो : AMAR UJALA

विस्तार


नेशनल ब्यूरो ऑफ इकॉनमिक रिसर्च के शोध पत्र “मेडिकल स्पेंडिंग ऑफ द यूएस ऑन एल्डरली” के मुताबिक, 70 से 90 वर्ष की आयु के बीच चिकित्सा व्यय दोगुने से अधिक हो जाता है। इस आयु वर्ग में जटिल स्वास्थ्य समस्याएं इस बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदारी होती हैं। इन लोगों के लिए एबी पीएम-जेएवाई लंबे स्वस्थ जीवन की गारंटी बन सकती है।

दुनिया में जीवन प्रत्याशा में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है। अच्छी खबर यह है कि भारत अपनी बढ़ती बुजुर्ग आबादी के मुद्दे से निपटने के लिए अपने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार कर रहा है। आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री आरोग्य योजना (एबी पीएम-जेएवाई) का 70 वर्ष और उससे अधिक आयु वालों के लिए विस्तार, बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य सेवा को किफायती और सुलभ बनाने वाला है। यह पहल 5 लाख रुपये तक का मुफ्त उपचार के साथ बुजुर्गों को निश्चिंतता देगी।

एम्स, दिल्ली में वृद्धावस्था चिकित्सा में कार्य करते हुए एक दशक से ज्यादा हो चुका है। यह देश में चिकित्सा विज्ञान में अपेक्षाकृत नया विषय है। इसकी शुरुआत 1978 में मद्रास मेडिकल कॉलेज में हुई थी। अब राष्ट्रीय वृद्ध स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम के तहत डॉक्टरों को कई कॉलेजों में जेरियाट्रिक विशेषज्ञता का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बुजुर्गों की देखभाल कीमांग दोगुनी होने जा रही है। इसके सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य पर प्रभाव दूरगामी परिणाम होंगे।

पेसमेकर जैसे उपकरण भी शामिल

योजना बुजुर्ग आबादी में होने वाले पेसमेकर जैसे प्रत्यारोपण उपकरण, आर्थोपेडिक उपकरण और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं आदि सभी रोगों को कवर करती है। एम्स में लगभग डेढ़ दशकों के अनुभव पर कह सकता हूं कि 2010 में आने वाले बुजुर्ग मरीजों में वृद्धावस्था को लेकर रुख निराशावादी था। लेकिन अब 80 से 85 वर्ष की आयु वर्ग वाले भी स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं। अत्यधिक वृद्धावस्था की तरफ बढ़ रहे इन मरीजों में सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन एबी पीएम-जेएवाई के तहत दिए जाने वाले बीमा कवर के साथ और बढ़ने वाला है।

वित्तीय बोझ से सामाजिक अलगाव

वृद्धों को नर्सिंग देखभाल और दीर्घकालिक उपचार की जरूरत होती है। लंबी उम्र के लिए जरूरी सही इलाज और देखभाल महंगी होने से परिजनों की उपेक्षा बुजुर्गों को सामाजिक अलगाव की ओर ले जाती है। ऐसे में महंगा इलाज कराने में असमर्थ बुजुर्ग रोगियों के लिए योजना आशा की किरण बनेगी।

ज्यादा रोग…अधिक दवाइयां…महंगा इलाज

  • मौजूदा सुपर स्पेशलिस्ट आधारित मॉडल में कई रोगों से ग्रस्त होने पर कई विशेषज्ञों के पास जाना पड़ता है। नतीजे में कई चिकित्सीय विशेषज्ञों के नुस्खे हो जाते हैं, जिसे पॉलीफार्मेसी (पांच से अधिक दवाएं) कहा जाता है।
  • हृदय संबंधी समस्याएं, हृदयाघात, स्ट्रोक, कैंसर व आघात संबंधी चोट व फ्रैक्चर जैसे रोगों के लिए महंगे उपचार की आवश्यकता होती है। जबकि आम बुजुर्गों के लिए किफायती एकीकृत वृद्धावस्था देखभाल (जेरियाट्रिक केयर) होना चाहिए।

बेसहारा बुजुर्गों को जोड़ें

इस योजना को उन लोगों को शामिल करने की कोशिश भी की जानी चाहिए, जो किसी आश्रय स्थल में रह रहे है। देश में वृद्धाश्रम जैसे लंबी अवधि के आश्रय स्थल व्यवस्थित नहीं है और परिवारों द्वारा त्यागे गए इन बुजुर्गों के पास योजनाओं का लाभ लेने के लिए जरूरी दस्तावेजों का अभाव भी बड़ी समस्या है। इसलिए इन आश्रय स्थलों को व इनके निवासी बुजुर्गों को भी एबी पीएम-जेएवाई में शामिल किया जाए।

(डॉ. चटर्जी : अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक, नेशनल सेंटर फॉर एजिंग, अतिरिक्त प्रोफेसर, जेरियाट्रिक मेडिसिन, एम्स, नई दिल्ली)

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