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Who is Congress MP Kodikunnil Suresh: 18वीं लोकसभा के दो वरिष्ठतम सांसदों में से एक, कोडिकुन्निल सुरेश के नामांकन दाखिल करते ही यह तय हो गया कि इस बार लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर) पद के लिए चुनाव होगा. सत्तारूढ़ एनडीए सरकार ने स्पीकर पद के लिए ओम बिड़ला को फिर से चुना है. वहीं, कांग्रेस के के. सुरेश ने इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल किया. के. सुरेश ने इस पद के लिए तब नामांकन दाखिल किया जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में आम सहमति वार्ता विफल हो गई. इससे पहले, सात बार के सांसद भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर बनाये जाने और आठ बार के सांसद के. सुरेश को नजरअंदाज किए जाने पर विवाद हुआ था, जबकि इस पद पर सबसे वरिष्ठ सांसद के रहने की परंपरा थी.

कौन हैं कोडिकुन्निल सुरेश?
जून 1962 में जन्मे के. सुरेश पहली बार 27 साल की उम्र में सांसद चुने गए थे. 1989 में उन्होंने पहली जीत अदूर से जीत हासिल की. 1991, 1996 और 1999 में भी वह अदूर से जीतकर संसद पहुंचे. 1998 और 2004 में वह चुनाव हार गए. 2009 में के. सुरेश ने अपना निर्वाचन क्षेत्र बदला और मवेलीकारा से सांसद चुने गए. इसके बाद वह लगातार सभी चुनावों में इस सीट जीतते रहे. सुरेश ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली दूसरी यूपीए सरकार में केंद्रीय श्रम और रोजगार राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया. वह अब कांग्रेस कार्य समिति की बैठकों में विशेष आमंत्रित सदस्य हैं.

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एससी होने पर उठा सवाल, SC से जीते केस
2010 में सुरेश को हाई कोर्ट ने सांसद के पद से अयोग्य घोषित कर दिया था क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी, सीपीआई के आरएस अनिल ने तर्क दिया था कि वह एससी समुदाय से नहीं हैं. तब सुरेश ने केरल में आरक्षित सीट मवेलीकारा से जीत हासिल की थी. अनिल ने हाई कोर्ट में तर्क दिया कि सुरेश ओबीसी चेरामर ईसाई समुदाय से हैं, न कि चेरामर हिंदू समुदाय से, जिसे अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था. हालांकि, सुरेश ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और केस जीतकर अपनी सीट बरकरार रखी. 

केरल कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष
2024 के लोकसभा चुनाव में सुरेश ने सीपीएम के अरुण कुमार सीए को 10868 वोटों से हराया था. इस जीत के बाद उन्हें कांग्रेस की ओर से लोकसभा में सचेतक की जिम्मेदारी सौंपी गई है. सुरेश केरल कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष भी हैं और वह संगठन में बड़े पदों पर काम कर चुके हैं. सुरेश को कई बार कानूनी कार्रवाइयों का सामना पड़ा है. उन पर दंगा करने, गैरकानूनी सभा करने और एक लोक सेवक को अपना कर्तव्य निभाने में बाधा डालने के लिए मामला दर्ज किया जा चुका है. इस तरह के उनके खिलाफ छह मामले दर्ज किये जा चुके हैं.

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ओम बिड़ला ने दाखिल किया नामांकन
सुरेश के नामांकन से पहले घटनाक्रम काफी नाटकीय रहा. वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री राजनाथ सिंह संसद के निचले सदन के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के लिए आम सहमति बनाने के लिए सरकार की ओर से विपक्षी नेताओं के पास पहुंचे थे. लेकिन, के. वेणुगोपाल और डीएमके के टी.आर. बालू स्पीकर पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार का समर्थन करने से इनकार करते हुए राजनाथ सिंह के कार्यालय से बाहर निकल गए. इस बीच, कोटा के सांसद ओम बिड़ला ने एनडीए के सर्वसम्मति उम्मीदवार के रूप में लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल किया. यह पद उनके पास पिछले सदन में भी था. 

विपक्ष पर साधा निशाना
जदयू नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ​​​​ललन सिंह ने कहा कि बिड़ला का नाम सभी एनडीए दलों द्वारा सर्वसम्मति से तय किया गया था और वरिष्ठ भाजपा नेता राजनाथ सिंह भी उनके समर्थन के लिए विपक्ष के पास पहुंचे. विपक्ष पर निशाना साधते हुए ललन सिंह ने कहा कि वे उपसभापति पद पर तुरंत फैसला चाहते हैं, जबकि राजनाथ सिंह ने अनुरोध किया था कि चयन का समय आने पर सभी को एक साथ बैठकर इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए. कैबिनेट मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि सर्वसम्मत उम्मीदवार होना बेहतर होता और उन्होंने शर्तें रखने के लिए विपक्ष की आलोचना की. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को शर्तों पर नहीं चलाया जा सकता. पीयूष गोयल ने कहा, “अगर उपाध्यक्ष का पद विपक्ष को दिया गया तो सरकार की पसंद का समर्थन करूंगा.”

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डिप्टी स्पीकर पद न मिलने पर बिगड़ी बात
इससे पहले दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि यदि परंपरा का पालन किया जाता है और उपाध्यक्ष का पद विपक्षी गुट को दिया जाता है तो विपक्ष लोकसभा अध्यक्ष की पसंद पर सरकार का समर्थन करेगा. उन्होंने यह भी कहा कि उपसभापति पद के लिए विपक्ष की मांग पर राजनाथ सिंह ने अभी तक उनसे संपर्क नहीं किया है. राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रचनात्मक सहयोग चाहते हैं, लेकिन उन्होंने वादे के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की मांग का जवाब नहीं दिया, जो अपमान के समान है. उन्होंने कहा, ”पूरे विपक्ष ने कहा है कि वे स्पीकर के पद पर सरकार का समर्थन करेंगे, लेकिन परंपरा यह है कि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाता है.”

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