Barseem Ki Kheti: बरसीम की खेती किसानों के लिए वरदान है, जिससे कम मेहनत में ज्यादा लाभ मिलता है. प्रो. अशोक कुमार सिंह के अनुसार, यह पशुओं के लिए पौष्टिक चारा है और दूध उत्पादन बढ़ाता है.
बरसीम का महत्व और फायदे
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया के मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार सिंह ने बताया कि बरसीम पशुओं के लिए सबसे पौष्टिक और पसंदीदा चारा है. यह न केवल दूध उत्पादन बढ़ाता है, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी सुधारता है. इसके अलावा जिस मिट्टी में इसकी खेती होती है, उसकी उर्वरता भी बढ़ जाती है. बरसीम में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है, जिससे पशुओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और दूध की मात्रा व गुणवत्ता दोनों बेहतर होती हैं. प्रो. सिंह ने कहा कि अगले महीने के अंत का समय बरसीम की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त है, इसलिए किसानों को अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए.
बरसीम की खेती दो तरह से की जाती है. पहला चारा उत्पादन और दूसरा बीज उत्पादन. अगर आप चारे के लिए खेती करना चाहते हैं, तो सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर उसे समतल बनाएं. एक बीघा जमीन के लिए 8 किलो बीज पर्याप्त होता है. बुवाई से पहले बीज को तैयार करना जरूरी है. इसके लिए एक रात पहले 500 मिली गुनगुने पानी में 100 ग्राम गुड़ घोलें, फिर ठंडा होने पर उसमें 200 ग्राम राइजोबियम पाउडर मिलाएं. अब इस घोल से बीज को लेपित कर 2 घंटे छाया में सुखा लें. ऐसा करने से फसल में समस्याएं कम आती हैं.
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उर्वरक और सिंचाई की विधि
बरसीम की खेती के लिए तैयार खेत में डीएपी, सिंगल सुपर फास्फेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश जैसे उर्वरकों का इस्तेमाल किया जा सकता है. बीज का छिड़काव करने के बाद खेत में हल्की सिंचाई करें. ध्यान रहे कि बुवाई के 24 घंटे बाद खेत में पानी जमा न हो. पहली कटाई के लिए फसल 20 दिन में तैयार हो जाती है. इसके बाद हर 15 से 20 दिन के अंतराल पर कटाई करते रहें. एक बार बोई गई फसल से 6 से 8 बार तक कटाई की जा सकती है. बरसीम में नाइट्रोजन फिक्सिंग क्षमता होती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और अगली फसल के लिए भी खेत उपजाऊ बना रहता है.
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