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बेंगलुरु44 मिनट पहले

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स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SPADEX) की डॉकिंग पहले 7 जनवरी फिर 9 जनवरी को टाली गई थी।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने रविवार को स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SPADEX) का सफल ट्रायल किया। ISRO ने 2 स्पेस सैटेलाइट के बीच दूरी पहले 15 मीटर, फिर 3 मीटर तक रखी। इसके बाद दोनों सैटेलाइट को वापस सुरक्षित दूरी पर ले जाया गया।

ISRO ने बताया, डॉकिंग ट्रायल का डेटा एनालिसिस किया जा रहा है। इसके बाद आगे की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। दरअसल स्पेडेक्स मिशन की डॉकिग दो बार टल चुकी है। पहले 7 जनवरी फिर 9 जनवरी को डॉकिंग किया जाना था।

ISRO ने 30 दिसंबर को श्रीहरिकोटा से रात 10 बजे SpaDeX यानी स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट मिशन लॉन्च किया था। इसके तहत PSLV-C60 रॉकेट से दो स्पेसक्राफ्ट को पृथ्वी से 470 किमी ऊपर डिप्लॉय किए गए थे।

यदि मिशन आगे सफल रहता है तो रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। मिशन की कामयाबी पर ही भारत का चंद्रयान-4 मिशन निर्भर है, जिसमें चंद्रमा की मिट्टी के सैंपल पृथ्वी पर लाए जाएंगे। चंद्रयान-4 मिशन को 2028 में लॉन्च किया जा सकता है।

SPADEX डॉकिंग ट्रायल की 2 तस्वीरें…

यह तस्वीर सैटेलाइट में लगे कैमरे से ली गई है। जब दोनों सैटेलाइट एक-दूसरे से सिर्फ 15 मीटर दूर थे।

पहले 15 मीटर फिर 3 मीटर तक नजदीक आने के बाद सैटेलाइट को वापस सेफ डिस्टेंस पर ले जाया गया।

स्पेडेक्स मिशन ऑब्जेक्टिव: डॉकिंग और अनडॉकिंग टेक्नोलॉजी दुनिया को दिखाना

  • पृथ्वी की निचली कक्षा में दो छोटे स्पेसक्राफ्ट की डॉकिंग और अनडॉकिंग की टेक्नोलॉजी दिखाना।
  • डॉक किए गए दो स्पेसक्राफ्ट्स के बीच इलेक्ट्रिक पावर ट्रांसफर करने की टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन करना।
  • स्पेस डॉकिंग का मतलब है स्पेस में दो अंतरिक्ष यानों को जोड़ना या कनेक्ट करना।

ISRO ने डॉकिंग का एनिमेटेड वीडियो शेयर किया था।

स्पेडेक्स मिशन प्रोसेस: जानिए कैसे नजदीक आए दोनों सैटेलाइट

30 दिसंबर को PSLV-C60 रॉकेट से 470 किमी की ऊंचाई पर दो छोटे स्पेसक्राफ्ट टारगेट और चेजर को अलग-अलग कक्षाओं में लॉन्च किया गया।

डिप्लॉयमेंट के बाद, दोनों स्पेसक्राफ्ट्स करीब 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से अंतरिक्ष में गए। ये रफ्तार बुलेट की स्पीड से 10 गुना ज्यादा थी।

दोनों स्पेसक्राफ्ट्स के बीच सीधा कम्युनिकेशन लिंक नहीं किया गया। इन्हें जमीन से गाइड किया गया। दोनों स्पेसक्रॉफ्ट को एक-दूसरे के करीब लाया गया।

5 किमी से 0.25 किमी के बीच की दूरी तय करते समय लेजर रेंज फाइंडर का उपयोग किया गया। 300 मीटर से 1 मीटर की रेंज के लिए डॉकिंग कैमरे का इस्तेमाल होगा। वहीं 1 मीटर से 0 मीटर तक की दूरी पर विजुअल कैमरा उपयोग में आएगा।

सक्सेसफुल डॉकिंग के बाद, दोनों स्पेसक्राफ्ट के बीच इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर को दिखाया जाएगा। फिर स्पेसक्राफ्ट्स की अनडॉकिंग होगी और ये दोनों अपने-अपने पेलोड के ऑपरेशन को शुरू करेंगे। करीब दो साल तक ये इससे वैल्युएबल डेटा मिलता रहेगा।

स्पेसक्राफ्ट A में कैमरा और स्पेसक्राफ्ट B में दो पेलोड डॉकिंग एक्सपेरिमेंट्स के बाद स्टैंडअलोन मिशन फेज के लिए, स्पेसक्राफ्ट A में हाई रेजोल्यूशन कैमरा (HRC) है। स्पेसक्राफ्ट B में दो पेलोड- मिनिएचर मल्टीस्पेक्ट्रल (MMX) पेलोड और रेडिएशन मॉनिटर (RadMon) है। ये पेलोड हाई रेजोल्यूशन इमेजेज, नेचुरल रिसोर्स मॉनिटरिंग, ​​वेजिटेशन स्टडीज और ऑनऑर्बिट रेडिएशन एनवॉयर्नमेंट मेजरमेंट प्रोवाइड करेंगे जिनके कई एप्लीकेशन्स हैं।

स्पैडेक्स के दोनों सैटेलाइट अनंत टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (ATL) ने ISRO के इंजीनियर्स के मार्गदर्शन में ही बनाए हैं। यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के निदेशक एम शंकरन ने बताया था कि अब तक इंडस्ट्री में कभी बड़े सैटेलाइट को अकेले नहीं बनाया गया था। यह पहली बार है कि दो सैटेलाइट इंटीग्रेट किया गया है। उम्मीद है कि हम आने वाले दिनों में और भी ऐसे सैटेलाइट की लॉन्चिंग करे, जो इंडस्ट्री में ही बने हो।

मिशन क्यों जरूरी: चंद्रयान-4 जैसे मिशन्स की सफलता इसी पर निर्भर

  • टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल चंद्रयान-4 मिशन में होगा जिसमें चंद्रमा से सैंपल वापस पृथ्वी पर लाए जाएंगे।
  • स्पेस स्टेशन बनाने और उसके बाद वहां जाने-आने के लिए भी डॉकिंग टेक्नोलॉजी की जरूरत पड़ेगी।
  • गगनयान मिशन के लिए भी ये टेक्नोलॉजी जरूरी है जिसमें मानव को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।
  • सैटेलाइट सर्विसिंग, इंटरप्लेनेटरी मिशन और इंसानों को चंद्रमा पर भेजने के लिए ये टेक्नोलॉजी जरूरी है।

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