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गोंडा. उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के दीनदयाल शोध संस्थान ने जैविक और प्राकृतिक खेती पर रिसर्च शुरू की है. खेती के इस प्रकार से पर्यावरण को संरक्षित किया जा सकता है. लोकल 18 से बातचीत में दीनदयाल शोध संस्थान से जुड़े सस्य वैज्ञानिक डॉ. अंकित तिवारी बताते हैं कि जैविक और प्राकृतिक खेती में काफी अंतर होता है. दीनदयाल शोध संस्थान अपने रिसर्च के माध्यम से इस खेती को वापस लाने का प्रयास कर रहा है.

क्या है प्राकृतिक खेती

प्राकृतिक खेती प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर की जाती है. इसमें बाहरी इनपुट्स (जैसे गोबर खाद या वर्मी कंपोस्ट) का उपयोग नहीं होता है. इस खेती में प्रयोग किए जाने वाले घटक किसानों के पास उपलब्ध होते हैं इसीलिए इसको शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) भी कहा जाता है.

क्या है जैविक खेती

जैविक खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की जगह जैविक स्रोतों (जैसे गोबर, खाद, वर्मी कंपोस्ट) का उपयोग किया जाता है. यह खेती प्रमाणित प्रक्रियाओं के तहत की जाती है.

कौन सी खाद डालें

खेती के इस प्रकार में खाद और उर्वरक की बजाय जीवामृत, बीजामृत और मल्चिंग जैसी विधियों का उपयोग होता है. इसमें जैविक खाद, वर्मी कंपोस्ट, हरी खाद और जैविक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है.

कितने एकड़ में हो रहा शोध

डॉ. अंकित बताते हैं कि अभी एक-एक एकड़ में जैविक और प्राकृतिक खेती पर शोध किया जा रहा है. रिजल्ट आने के बाद आगे इसे बढ़ने का प्लान है. डॉ. अंकित बताते हैं कि इस खेती में मिट्टी को स्वयं ही उपजाऊ रहने देने पर जोर दिया जाता है. कोई बाहरी खाद नहीं डाली जाती. मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने के लिए जैविक स्रोतों से तैयार खादों का उपयोग किया जाता है.

कैसे लगाएं रोगों पर लगाम

इसमें प्राकृतिक तरीकों से जैसे नीम का अर्क या धनिया आदि का उपयोग करके कीटों को नियंत्रित किया जाता है. इसके अलावा रोग नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशक जैसे नीम तेल और जैविक फफूंद नाशक का इस्तेमाल करते हैं.

Tags: Gonda news, Local18

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