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नई दिल्ली11 मिनट पहले

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ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर अपने संपादकीय लेख में लिखते हैं कि सोमनाथ से लेकर संभल और उससे आगे का ऐतिहासिक सत्य जानने की यह लड़ाई धार्मिक वर्चस्व के बारे में नहीं है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने हालिया मंदिर-मस्जिद विवादों पर RSS प्रमुख मोहन भागवत से अलग राय रखी है। पत्रिका ने अपने ताजा अंक में इसे ऐतिहासिक सच जानने और सभ्यता के लिए न्याय की लड़ाई कहा है।

मोहन भागवत ने संभल में मंदिर-मस्जिद विवाद के बीच 19 दिसंबर को पुणे में कहा था कि राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वे नई जगहों पर इस तरह के मुद्दे उठाकर हिंदुओं के नेता बन सकते हैं। हर दिन एक नया मामला उठाया जा रहा है। इसकी इजाजत कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता। भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम एक साथ रह सकते हैं।

RSS के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने हालिया मंदिर-मस्जिद विवादों पर RSS प्रमुख मोहन भागवत से अलग राय रखी है।

धार्मिक वर्चस्व नहीं सभ्यतागत न्याय की तलाश की लड़ाई ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर अपने संपादकीय लेख में लिखते हैं कि सोमनाथ से लेकर संभल और उससे आगे का ऐतिहासिक सत्य जानने की यह लड़ाई धार्मिक वर्चस्व के बारे में नहीं है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान की पुष्टि करने और सभ्यतागत न्याय की तलाश करने के लिए है।

उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर की जामा मस्जिद में श्री हरिहर मंदिर के सर्वे से शुरू हुआ विवाद लोगों और समुदायों को दिए गए संवैधानिक अधिकारों पर एक नई बहस को जन्म दे रहा है। धर्मनिरपेक्षता की झूठी बहस के बजाय समाज के सभी वर्गों को शामिल करते हुए सत्य इतिहास पर आधारित सभ्यतागत न्याय की खोज करने की जरूरत है।

कांग्रेस के षड्यंत्र ने मुगल सम्राट बाबर और औरंगजेब जैसे कट्टर शासकों की बड़ी छवि पेश करके भारतीय मुसलमानों को यह गलत धारणा दी कि वे अंग्रेजों से पहले यहाँ के शासक थे। भारत के मुसलमानों को यह समझना चाहिए कि वे बर्बर इस्लामी आक्रमणों के प्रतीक हैं। भारतीय मुसलमानों के पूर्वज हिंदुओं के विभिन्न संप्रदायों से हैं इसलिए उन्हें अपनी विचारधारा बदलनी चाहिए।

भारतीय मुसलमान अतीत के आक्रमणकारियों से अलग भारत में धार्मिक पहचान की कहानी जाति से बहुत अलग नहीं है। कांग्रेस ने जाति को टालकर लोगों को सामाजिक न्याय दिलाने में देरी की। इसके अलावा चुनावी लाभ के लिए जातियों का शोषण किया। जबकि अंबेडकर जाति-आधारित भेदभाव के मूल कारण तक गए और इसे दूर करने के लिए संवैधानिक में व्यवस्था की।

इस्लामिक आधार पर देश विभाजन के बाद कांग्रेस और कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने आक्रमणकारियों के पाप छुपाने की कोशिश की। उसने इतिहास की सच्चाई बताकर और सामंजस्यपूर्ण भविष्य के लिए वर्तमान को फिर से स्थापित करके सभ्यतागत न्याय की कोशिश नहीं की।

अब हमें धार्मिक कटुता को खत्म करने के लिए इस तरह के नजरिए की जरूरत है। इतिहास की सच्चाई स्वीकारने और भारतीय मुसलमानों को अतीत के आक्रमणकारियों से अलग देखने से शांति और सद्भाव की उम्मीद है।

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