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Ghazipur: गाजीपुर की सविता सिंह का बचपन चुनौतियों से भरा था. पोलियो के कारण वे चल-फिर नहीं सकती थीं, लेकिन शिक्षा का सपना उनकी आंखों में जिंदा था. उनके घर के चरवाहे उन्हें साइकिल पर बैठाकर प्राइमरी स्कूल छोड़ने जाते थे. स्कूल का सफर आसान नहीं था. क्लास के बच्चे किताबें, पेंसिल छीन लेते, टिफिन तक खींच लेते.

इन सब से तंग आकर सविता अपनी मां से कहतीं, “मैं स्कूल नहीं जाऊंगी” लेकिन उनकी मां और उनके पिता ने उन्हें हिम्मत दी और शिक्षा का महत्व समझाया. सविता ने ठान लिया कि वह पढ़ाई को अपनी ताकत बनाएंगी और आत्मनिर्भर बनकर दिखाएंगी.

पिता के सपनों को किया साकार
सविता का सपना केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं था, वह आत्मनिर्भर बनना चाहती थीं.  1986 में उन्होंने सरकारी नौकरी हासिल कर राजस्व विभाग में लेखा अधिकारी का पद पाया. उनके लिए नौकरी पाना केवल एक उपलब्धि नहीं थी, यह उनके पिता के सपनों को साकार करने जैसा था. उन्होंने यह साबित कर दिया कि शारीरिक अक्षमता, आत्मविश्वास और मेहनत के आगे कोई मायने नहीं रखती. सविता का सफर उन लोगों के लिए प्रेरणा बन गया, जो किसी भी शारीरिक या मानसिक चुनौती से हार मान लेते हैं.

‘समर्पण’ संस्था: 200 बच्चों की ‘मां’ बनीं सविता
2004-05 में सविता सिंह ने ‘समर्पण’ नाम से एक संस्था की स्थापना की. इस संस्था का उद्देश्य दिव्यांग बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना था. खास बात ये है कि इस संस्था में सभी महिला सदस्य हैं. उन्होंने गाजीपुर के शास्त्रीनगर में ‘राजेश्वरी मूक-बधिर स्कूल’ की नींव रखी, जहां आज 200 बच्चे कौशल विकास की ट्रेनिंग ले रहे हैं.

इन बच्चों के लिए सविता केवल एक अध्यापक नहीं, बल्कि ‘मां’ हैं. हर बच्चा उन्हें ‘मां’ कहकर बुलाता है और उनके लिए यह सिर्फ शब्द नही है बल्कि प्यार और विश्वास का प्रतीक है.

संघर्ष की कहानी बनी मिसाल
सविता सिंह की मेहनत और संघर्ष को कई बड़े मंचों पर सराहा गया. उन्हें 2011 में उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘स्टेट अवार्ड’ से सम्मानित किया. 2014 में वाराणसी के कमिश्नर ने उनके कार्यों को सम्मानित किया. 2015 में उन्हें मशहूर संगीतकार ए.आर. रहमान के हाथों ‘केविन केयर एबिलिटी अवार्ड’ मिला. 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उनके कार्यों को सराहा. ये पुरस्कार केवल ट्रॉफी नहीं हैं, बल्कि उनकी मेहनत, समर्पण और समाज में उनके योगदान की गवाही देते हैं.

सविता सिंह की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो किसी भी शारीरिक या मानसिक बाधा को अपनी कमजोरी मान बैठते हैं. उन्होंने न सिर्फ खुद को साबित किया, बल्कि सैकड़ों बच्चों की जिंदगी में उम्मीद और विश्वास की रोशनी जगाई.

Tags: Ghazipur news, Inspiring story, Local18, News18 uttar pradesh

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