आरिफ और अरलेकर दोनों पब्लिक के आदमी हैं. दोनों में ही एक बड़ी समानता है. दोनों पब्लिक के बीच रहने वाले नेता रहे हैं. राज्यपाल अरलेकर साहब को मैंने एक कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया, मैंने जान बूझकर आमंत्रण पत्र अंग्रेजी नहीं शुद्ध-शुद्ध हिन्दी में लिखा. अमूमन लोग अपनी अंग्रेजी से बड़े लोगों को प्रभावित करने का मौका ढूंढते हैं लेकिन मुझे पता था कि वो हिन्दी भाषा से बेहद प्यार करते हैं. उनको ये अच्छा लगा. लेकिन उनकी तरफ से मुझे एक हिदायत दी गई कि उन्हें कार्यक्रम में महामहिम शब्द से संबोधित नहीं किया जाय क्योंकि वो किसी अलंकरण के पक्षधर नहीं थे. उन्होने हमारे कार्यक्रम में आम छात्रों और पटना शहर के लोगों से खुलकर बात की और घर पर आने के लिए सबको आमंत्रित भी किया.
जब राजेंद्र विश्वनाथ अरलेकर पटना आए तो उससे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बात की और उन्हें बताया था कि वो भी नीतीश की तरह शराब के विरोधी रहे. आर्लेकर की पृष्टभूमि संघ की रही है इसलिए बीजेपी को उनके अनुभव का जरूर फायदा मिला होगा। आरिफ़ मोहम्मद खान भी बीजेपी के पसंदीदा व्यक्ति हैं लेकिन इनकी भूमिका थोड़ी व्यापक होगी.
आरिफ मोहम्मद खान मैसेजिंग में माहिर हैं
एक राजनेता के तौर पर आरिफ मोहम्मद खान 360 डिग्री की दूरी तय कर चुके हैं. उनकी छवि एक विद्रोही और यथास्थिति को चुनौती देने वाले व्यक्ति की रही हैं. उनका शाहबानो मामले पर राजीव गांधी के साथ ऐतिहासिक विरोध को भला कौन भूल सकता है जब उन्होने मुस्लिम पर्सनल लॉं का विरोध करते हुये राजीव गांधी के कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. बाद में शहबानों का केस भारत के न्यायिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ, इतना ही नहीं इसने भारतीय जनता पार्टी को बड़ा राजनीतिक हथियार भी मुहैया कराया.
क्या होगा आरिफ साहब का एजेंडा?
सभी जानते हैं राम मंदिर आंदोलन के बाद आरजेडी का बिहार की राजनीति में उभार हुआ. मुस्लिम वोट बैंक जो कभी कांग्रेस की जागीर हुआ करता था, खिसककर लालू यादव के पाले में चला गया. आज मुस्लिम मतदाता राजद की जंजीर में बंधा हुआ है. आज मुस्लिम समाज का वोट देने का नज़रिया सिर्फ मोदी विरोध है. उम्मीदवारों की पृष्टभूमि या या उसका पिछला प्रदर्शन नहीं.
आरिफ मुसलमानों से संवाद कायम करने में कितने कामयाब होंगे, इसका कयास अभी से नहीं लगाया जा सकता है पर ये तय है इससे कदम के जरिये एनडीए लालू परिवार को आईना दिखाने की कोशिश जरूर करेंगे कि देखिये वो 26 वर्ष के बाद किसी मुसलमान को बिहार के राज्यपाल के रूप में स्थापित कर रहे हैं.
नीतीश को भी नए राज्यपाल से रहेगा मदद की उम्मीद
काफी समय से बिहार में बहस चल रही है कि क्या मुस्लिम मतदाता जेडीयू को मतदान करेगा? यही सवाल उन्होने अपने मंत्रियों से भी पूछा था कि वो मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में क्यों नहीं कर पा रहे हैं? मुस्लिम समाज को सरकार की नीतियों के बारे में क्यों नहीं बताते हैं?
अपने 17 वर्ष के कार्यकाल में नीतीश ने मुसलमान समाज के उत्थान के लिए बहुत कार्य किया लेकिन जब मतदान की बात आती है तो मुस्लिम समाज बड़े पैमाने में लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को क्यों वोट डालता है? बहरहाल, जिस राज्य की आबादी 14 करोड़ हो और जहां 15 प्रतिशत से ज़्यादा मतदाता मुस्लिम हो, वहां आरिफ मोहम्मद खान जैसे सक्रिय कम्युनिकेटर का आगमन राजनीतिक हल्के में अवश्य ही कई सवाल खड़ा करेगा.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्रज मोहन सिंहएडिटर, इनपुट, न्यूज 18 बिहार-झारखंड
पत्रकारिता में 22 वर्ष का अनुभव. राष्ट्रीय राजधानी, पंजाब , हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में रिपोर्टिंग की.एनडीटीवी, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और पीटीसी न्यूज में संपादकीय पदों पर रहे. न्यूज़ 18 से पहले इटीवी भारत में रीजनल एडिटर थे. कृषि, ग्रामीण विकास और पब्लिक पॉलिसी में दिलचस्पी.
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