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नई दिल्ली5 घंटे पहले

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अगर लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ होते हैं तो लोगों को दो अलग-अलग ईवीएम में वोट डालना होगा। (फाइल फोटो)

देश में बीते 75 साल के दौरान लोकसभा और विधानसभाओं के 400 से भी ज्यादा चुनाव करवाए जा चुके हैं। ये चुनाव कमोबेश स्वतंत्र और निष्पक्ष हुए हैं और किसी भी, खासकर बाहरी एजेंसी को देश के निर्वाचन आयोग पर उंगली उठाने का कोई मौका नहीं दिया गया।

हालांकि इसके बावजूद ऐसे कई तथ्य हैं, जो देश में अलग-अलग चुनाव करवाने को लेकर सवाल उठाते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या देश में सभी चुनाव एकसाथ नहीं हो सकते? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए पिछले साल सितंबर 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी की रिपोर्ट को हाल ही में कैबिनेट द्वारा स्वीकार कर इस संबंध में दो बिल लोकसभा में पेश किए गए।

पहला है संविधान (129वां संशोधन) बिल। दूसरा है केंद्र शासित कानून (संशोधन) बिल 2024, जो पुुडूचेरी, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव करवाने से संबंधित है। इन बिलों पर विस्तृत चर्चा करने और सर्वसम्मति बनाने के लिए उन्हें अब संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेज दिया गया है। अगर तमाम औपचारिकताएं पूरी भी हो जाती हैं, तब भी यह व्यवस्था 2034 से पहले अमल में नहीं आ पाएगी।

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 17 दिसंबर को लोकसभा में वन नेशन, वन इलेक्शन संविधान संशोधन बिल पेश किया।

शुरुआती आर्थिक चुनौतियां भारी होंगी

1. सिर्फ EVM खरीद पर ₹1.5 लाख करोड़ लगेंगे

निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, 2034 में अगर ‘एक देश एक चुनाव’ की नीति लागू होती है तो सिर्फ ईवीएम की खरीदी के लिए ही 1.5 लाख करोड़ रुपए खर्च होंगे। यह राशि कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा केवल इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में अनुमानतः एक लाख करोड़ रुपए खर्च हुए थे।

2. 2034 के चुनाव में दोगुनी करनी होगी सिक्योरिटी फोर्स

रामनाथ कोविंद कमेटी ने बताया कि एकसाथ चुनाव कराने के लिए सेंट्रल सिक्योरिटी फोर्सेज में 50% बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। यानी करीब 7 लाख कर्मियों की जरूरत होगी। 2024 में सिक्योरिटी फोर्स के करीब 3.40 लाख कर्मचारियों और अधिकारियों की चुनावों में ड्यूटी लगी थी।

साथ-साथ और अलग-अलग चुनाव होने पर वोटिंग पैटर्न

थिंक टैंक आईडीएफसी इंस्टीट्यूट की एक स्टडी में कुछ रोचक तथ्य सामने आए हैं:

  1. अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते हैं तो 77% वोटर्स दोनों जगह एक ही पार्टी को वोट करते हैं।
  2. दोनों चुनावों में 6 माह का अंतर होने पर 61% रह जाती है एक ही पार्टी को चोट देने की संभावना।
  3. दोनों चुनावों में 6 महीने से ज्यादा का अंतर होने पर एक ही पार्टी को चोट करने की संभावना 61% से भी कम हो जाती है।

एकसाथ चुनाव करवाने के 4 बड़े फायदे

रामनाथ कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट में एकसाथ चुनाव करवाए जाने के पक्ष में ये तर्क दिए हैं…

1. शासन में निरंतरता आएगी देश के विभिन्न भागों में चुनावों के चल रहे चक्रों के कारण राजनीतिक दल, उनके नेता और सरकारों का ध्यान चुनावों पर ही रहता है। एक साथ चुनाव करवाने से सरकारों का फोकस विकासात्मक गतिविधियों और जनकल्याणकारी नीतियों के क्रियान्वयन पर केंद्रित होगा।

3. अधिकारी काम पर ध्यान दे पाएंगे चुनाव की वजहों से पुलिस सहित अनेक विभागों के पर्याप्त संख्या में कर्मियों की तैनाती करनी पड़ती है। एकसाथ चुनाव कराए जाने से बार बार तैनाती की जरूरत कम हो जाएगी, जिससे सरकारी अधिकारी अपने मूल दायित्यों पर फोकस कर पाएंगे।

2. पॉलिसी पैरालिसिस रुकेगा चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता के क्रियान्वयन से नियमित प्रशासनिक गतिविधियां और विकास कार्य बाधित हो जाते हैं। एक साथ चुनाव कराने से आदर्श आचार संहिता के लंबे समय तक लागू रहने की अवधि कम होगी, जिससे पॉलिसी पैरालिसिस कम होगा। 4. वित्तीय बोझ में कमी आएगी एकसाथ चुनाव कराने से वित्तीय खचों में काफी कमी आ सकती है। जब भी चुनाव होते हैं, मैनपॉवर, उपकरणों और सुरक्षा उपायों के प्रबंधन पर भारी खर्च होता है। इसके अलावा राजनीतिक दलों को भी काफी खर्च करना पड़ता है।

ये आंकड़े करते हैं एकसाथ चुनावों का समर्थन • 2019-2024 के दौरान इन पांच सालों में भारत में 676 दिन आदर्श आचार संहिता लागू रही। यानी प्रति साल लगभग 113 दिन। • अकेले 2024 के लोकसभा चुनावों में ही एक अनुमान के मुताबिक करीब 1,00,000 करोड़ रुपए खर्च हुए।

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