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जयराम रमेश ने शुक्रवार को कहा कि यह बिल संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है।
कांग्रेस ने एक देश,एक चुनाव विधेयक को लेकर शुक्रवार को कहा कि भाजपा इस बिल को कैसे पास कराएगी? क्योंकि संविधान संशोधन के लिए उसके पास सदन में दो तिहाई बहुमत (362 सांसद) नहीं हैं। बिल भले ही जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) के पास भेजा गया, लेकिन कांग्रेस इसका विरोध करती है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने PTI से बातचीत में कहा, ‘केंद्र सरकार बिल पेश करते समय 272 सांसद भी नहीं जुटा पाई थी। संविधान संशोधन के लिए उन्हें दो-तिहाई बहुमत कैसे मिलेगा। ये बिल संविधान की मूल संरचना, संघीय व्यवस्था और लोकतंत्र विरोधी है। हम एक देश,एक चुनाव बिल का विरोध करेंगे।’
दरअसल, शुक्रवार को राज्यसभा में इस बिल से जुड़े 12 सदस्यों को नामित करने के प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित किया। सभापति जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से राज्यसभा के सदस्यों को समिति में मनोनीत करने के लिए प्रस्ताव पेश करने को कहा था।
इसके बाद संसद की संयुक्त समिति को दोनों विधेयकों की सिफारिश करने वाला प्रस्ताव पारित किया गया। फिर बिल को 39 सदस्यीय जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) के पास भेजने का फैसला किया गया, जिसमें लोकसभा से 27 और राज्यसभा से 12 सांसद होंगे।
NDA के पास 292 सीटें, 362 का आंकड़ा जरूरी लोकसभा की 543 सीटों में एनडीए के पास अभी 292 सीटें हैं। दो तिहाई बहुमत के लिए 362 का आंकड़ा जरूरी है। वहीं, राज्यसभा की 245 सीटों में एनडीए के पास अभी 112 सीटें हैं, वहीं 6 मनोनीत सांसदों का भी उसे समर्थन है। जबकि विपक्ष के पास 85 सीटें हैं। दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सीटें जरूरी हैं।
एक देश-एक चुनाव बिल संसद में पेश हुआ केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन सिंह मेघवाल ने 17 दिसंबर को लोकसभा में एक देश-एक चुनाव बिल पेश किया था। विपक्षी सांसदों ने इसका विरोध किया। इसके बाद बिल पेश करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराई गई। कुछ सांसदों की आपत्ति के बाद वोट संशोधित करने के लिए पर्ची से दोबारा मतदान हुआ।
स्पीकर ओम बिड़ला ने बिल पेश करने को लेकर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराई। इसमें 369 सदस्यों ने वोट डाला। पक्ष में 220, विपक्ष में 149 वोट पड़े।
एक देश-एक चुनाव क्या है… भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। एक देश-एक चुनाव का मतलब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से है। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय वोट डालेंगे।
आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद दिसंबर, 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।
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लोकसभा में एक देश, एक चुनाव बिल पेश हो चुका है और बिल को जेपीसी के पास भेजा जा चुका है। भारत का पहला चुनाव 1951-52 में हुआ। उस वक्त लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे। 1957, 1962 और 1967 तक ये परंपरा जारी रही। अब 2029 में ये परंपरा फिर से शुरू हो सकती है। विपक्षी नेताओं ने इस सवाल उठाए हैं। पूरी खबर पढ़ें…
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