बस्तर के नक्सल पीड़ितों ने बताया कि उनके पिता और दादा समेत परिवारों नक्सलियों ने बेरहमी से मार डाला।
‘मैं रोता रहा, हाथ-पैर जोड़कर पिता को छोड़ने के लिए कहता रहा, लेकिन नक्सलियों ने एक न सुनी। चंद मिनट के अंदर परिवार के सामने पिता के हाथ-पैर बांधकर पहले कान काटा, फिर जीभ काट ली। कुल्हाड़ी से वारकर सिर धड़ से अलग कर दिया। कटे हुए कान और जीभ को अपने साथ
‘मेरे पिता को बांधकर पेड़ पर उल्टा लटका दिया। नीचे आग लगाई, शरीर को चाकू से गोद दिया। सड़क बनवा रहा है..पुलिस का मुखबिर है कहकर पहले पिता और दादा को परिवार के सामने तड़पा-तड़पा कर मार डाला।’ ये दर्द नक्सल हिंसा पीड़ित और बस्तर ओलिंपिक के खिलाड़ियों का है। विस्तार से पढ़िए नक्सल पीड़ितों की कहानी इन्हीं की जुबानी…
नक्सल हिंसा पीड़ितों ने बताया कि कई को अपना परिवार छोड़ना पड़ा, तो किसी को परिवार समेत पूरा गांव छोड़ना पड़ा।
आदिवासी युवा बस्तर ओलिंपिक में हुए हैं शामिल
आंखों में आंसू, दिल में दर्द और फौलाद सा हौसला लेकर आज ये आदिवासी युवा बस्तर ओलिंपिक में शामिल हुए हैं। अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा रहे हैं। ये सभी नक्सल हिंसा पीड़ित युवा बस्तर के बीजापुर, सुकमा, नारायणपुर समेत अलग-अलग जिलों के हैं। जो रस्साकसी, खो-खो, कबड्डी, तीरंदाजी समेत अन्य खेलों में हिस्सा लिए हैं।
- 1. बीजापुर के विनोद वाचम की कहानी
विनोद वाचम ने बताया कि मैं बीजापुर जिले का रहने वाला हूं। नक्सलियों की क्रूरता का शिकार हुआ हूं। साल 2007 में नक्सली गांव पहुंचे थे। पिता को घर से उठा लिया था। मेरे पिता की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। उन पर आरोप लगाया था कि वे पुलिस के मुखबिर हैं, हालांकि ऐसा कुछ नहीं था। परिवार वालों के सामने पहले पिता को बेदम पीटा।
वाचम ने बताया कि पिता के हाथ-पैर को बांध दिए। मैं और मेरे परिवार के सदस्य नक्सलियों से विनती करते रहे कि पिता को छोड़ दो। उन्हें कुछ मत करो, लेकिन नक्सलियों ने हमारी नहीं सुनी। फिर कुछ ही देर में चाकू से पहले कान काट दिया। फिर जब पिता चीख-चीखकर रोने लगे तो माओवादियों ने उनकी जीभ भी चाकू से काट दी।
नक्सली गांव से भगाने के लिए फरमान जारी कर रहे
वाचम ने बताया कि पिता खून से सने तड़पते रहे। हम भी कुछ नहीं कर पाए। कुछ देर के बाद नक्सलियों ने पिता के गले पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया। सिर धड़ से अलग हो गया, उनकी मौत हो गई। जीभ और कान को अपने साथ लेकर चले गए। मैं अब बीजापुर में रहता हूं। मां और भाई गांव में रहते हैं। अब ऐसी खबर आ रही है कि नक्सली उनको भी गांव से भगाने के लिए फरमान जारी कर रहे हैं।
- 2. राजू पुनेम की कहानी
राजू पुनेम ने बताया कि मैं बीजापुर जिले का रहने वाला हूं। साल 2020 को नक्सली गांव पहुंचे थे। मेरे पिता को मेरे सामने ही पकड़ कर अपने साथ लेकर चले गए थे। उन्हें जनअदालत में लाया गया था। यहां एक पेड़ के सहारे रस्सी से बांधकर उल्टा लटकाया। नीचे आग लगाई और फिर पूरे शरीर को चाकू से गोद दिया।
मैं और मेरे परिवार के सदस्य पिता को बचाने जा रहे थे, लेकिन नक्सली हमें करीब आने नहीं दे रहे थे। हमें भी मार-मारकर वहां से भगाया जा रहा था। नक्सलियों ने आरोप लगाया था कि हम पुलिस के मुखबिर हैं। सड़क बनवा रहे हैं। पुलिस का साथ दे रहे हैं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था।
वहीं अब नक्सली फिर से 2 महीना पहले गांव पहुंचे। रात में दादा जी की तबियत ठीक नहीं थी। वे टेबलेट लेकर घर के बाहर सो रहे थे। नक्सलियों ने उन्हें टंगिया से काट डाला। वे मुझे भी मारने वाले थे। लेकिन मैं भाग गया। मेरी मां, भाई-बहन सब गांव छोड़ दिए हैं। दादी गांव में रहती है। उन्हीं की चिंता सताती है।
- 3. नागेश वाचम की कहानी
नागेश वाचम ने बताया कि मैं बीजापुर जिले का रहने वाला हूं। साल 2012 की उस घटना को कभी नहीं भूल सकता जब नक्सलियों ने पिता और भाई को बेरहमी से मार डाला। जनअदालत लगाकर सैकड़ों ग्रामीणों के सामने पिता और भाई की आंखों पर पट्टी बांधी। फिर दोनों हाथ-पैर बांधे, जिसके बाद चाकू से पूरे शरीर को गोद दिया।
नागेश ने बताया कि हमारे आंखों के सामने ही दोनों की तड़प-तड़पकर मौत हो गई। तब मैं पांचवीं क्लास में था। मेरा भाई मुझसे बड़ा था। हालांकि, उस समय वो भी पढ़ाई करता था। नक्सलियों की क्रूरता की चोट इस कदर लगी कि आज भी उस दिन को नहीं भूल पाता हूं। आज भी मन में नक्सलियों के खिलाफ गुस्सा भरा है। मैं बस्तर ओलिंपिक में तीरंदाजी के लिए आया हूं।
2900 खिलाड़ियों ने लिया हिस्सा
बस्तर में संभाग स्तरीय बस्तर ओलिंपिक प्रतियोगिता का आयोजन शुक्रवार 13 दिसंबर से शुरू हो गया है। जगदलपुर के इंदिरा प्रियदर्शनीय स्टेडियम में बैडमिंटन, कबड्डी, वॉलीबॉल समेत अन्य गेम्स हुए। आज 15 दिसंबर को समापन है, जिसमें गृहमंत्री अमित शाह भी शामिल होंगे।
ये सभी नक्सल हिंसा पीड़ित युवा हैं, जो बस्तर ओलिंपिक में हिस्सा ले रहे हैं।
इस बस्तर ओलिंपिक में संभाग के सातों जिले के अलग-अलग खेलों के करीब 2900 से ज्यादा खिलाड़ी हिस्सा लेने पहुंचे हैं, जिसका सारा बंदोबस्त जिला प्रशासन की तरफ से किया गया है। प्रशासन की माने तो इस आयोजन में करीब 300 आत्मसमर्पित नक्सली भी हैं। इसके साथ ही नक्सल घटना में दिव्यांग हुए कुल 18 खिलाड़ी, नक्सल हिंसा पीड़ित भी अलग-अलग गेम्स में हिस्सा लिए हैं।
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