Agrasen Ki Baoli Will Attract Tourists In Old Style, Know The Plan Of Asi – Amar Ujala Hindi News Live
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उग्रसेन की बावली – फोटो : अमर उजाला
विस्तार
कनॉट प्लेस स्थित ऐतिहासिक उग्रसेन की बावली का संरक्षण किया जाएगा। इसमें बदबूदार पानी की डिसिल्टिंग होगी। इससे यहां का पानी साफ किया जाएगा। पर्यटक साफ पानी में इसकी सीढ़ियों की सुंदरता को देख सकेंगे। यही नहीं, क्षतिग्रस्त हो चुकी सीढ़ियों व मेहराबों को भी संरक्षित करने की योजना है। वहीं, सुरक्षा को देखते हुए यहां लोहे की ग्रिल भी लगाई जाएंगी। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए लाइटिंग की व्यवस्था भी होगी। ऐसे में यह अपने पुराने अंदाज में देसी-विदेशी पर्यटकों को लुभाएगी।
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यह बावली भारतीय पुरातत्व संरक्षण (एएसआई) की ओर से संरक्षित स्मारक है। बदलते मौसम, बारिश, भूकंप व समय के साथ यह कई जगहों से क्षतिग्रस्त हो चुकी है। सीढ़ियों व मेहराबों में नए पत्थरों को लगाया जाएगा।
इस स्मारक की मुख्य विशेषता उत्तर में स्थित गहरे कुएं की ओर लंबी कतारबद्ध सीढ़ियां हैं। इन सीढ़ियों के दोनों ओर मोटी दीवार की मेहराब युक्त गलियारों की शृंखला है। अनगढ़ व गढ़े हुए पत्थर से निर्मित यह दिल्ली में बेहतरीन बावलियों में से एक है। इसकी स्थापत्य शैली 15वीं-16वीं सदी ईसवी में उत्तर कालीन तुगलक और लोदी काल से मेल खाती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस बावली का निर्माण मौसम के परिवर्तन के कारण जल की आपूर्ति में आई अनियमितता को नियंत्रण करने और जल के संग्रहण के लिए किया गया था।
जल्द शुरू होगा संरक्षण कार्य
दिल्ली में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) का चौथा चरण लागू था। इससे संरक्षण कार्य भी प्रभावित हुआ है। अब ग्रेप चार हटा है तो फिर से संरक्षण कार्य शुरू होंगे। इसमें शीश गुंबद, शीश महल, कुतुब मीनार सहित कई स्मारक शामिल हैं। उग्रसेन की बावली में संरक्षण कार्य के लिए निविदा जारी की जाएगी। इसमें लगने वाला लाल पत्थर और कारीगर राजस्थान से मंगवाए जाएंगे।
बावली के संरक्षण कार्य को लेकर योजना बना ली है। इसका कार्य जल्द शुरू होगा। इसके संरक्षण के लिए जो भी उचित जरूरतें हैं उसका ध्यान रखा है। -प्रवीण सिंह, दिल्ली सर्कल चीफ व सुपरिटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट, एएसआई
अग्रोहा के राजा ने कराया था तैयार
इतिहासकारों के मुताबिक, मान्यता है कि महाभारत काल में उग्रसेन नामक अग्रोहा के राजा ने इसे तैयार करवाया था। बाद में ऐतिहासिक तौर पर जो संदर्भ मिलता है, उसमें 14वीं शताब्दी में इसे अग्रवाल समुदाय के लोगों द्वारा फिर से बनाया गया, जो राजा उग्रसेन के वंशज माने जाते थे।