पिछले साल फरवरी में जब राहुल गांधी ममता बनर्जी की टीएमसी को बीजेपी की टीम बी बता रहे थे तो इसके समर्थन में उनकी दलील थी कि गोवा में कांग्रेस को नुकसान और भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए टीएमसी ने चुनाव लड़ा और मेघालय में भी कुछ ऐसा ही कर रही है. एक बार फिर ममता बनर्जी की ओर से कुछ ऐसी बातें कही गई हैं जिनके आधार पर कांग्रेस सवाल पूछ सकती है कि क्या टीएमसी भाजपा की टीम बी है? INDIA में होने के चलते औपचारिक रूप से वह ऐसा नहीं पूछ पा रही है. लेकिन, ममता बनर्जी अपनी राजनीतिक जरूरतों के हिसाब से आगे बढ़ रही हैं. हो सकता है, आने वाली परिस्थितियों को देखते हुए वह INDIA से नाता तोड़ भी लें.
क्या ममता को अब कांग्रेस की जरूरत नहीं…
असल में ममता बनर्जी की राजनीतिक जरूरत ऐसी बनती जा रही है कि उन्हें कांग्रेस को अहमियत देने की जरूरत नहीं है. राष्ट्रीय स्तर पर भी तृणमूल कांग्रेस के कांग्रेस के साथ चलने में कांग्रेस का ही फायदा है. ममता बनर्जी की ओर से कई ऐसे बयान आए हैं जो कांग्रेस पर सवालिया निशान लगाते हैं या भाजपा की लाइन से मिलते-जुलते लगते हैं. इसका यह मतलब कतई नहीं है कि ममता बनर्जी भाजपा के करीब जा रही हैं. पश्चिम बंगाल में उनकी लड़ाई भाजपा से ही है और यह लड़ाई लगातार मुश्किल होती जा रही है.
ममता बनर्जी ने कहा, ‘मैंने INDIA गठबंधन बनाया. जो लोग मुझे पसंद नहीं करते हैं वे तो हमेशा गलतियां ही निकालेंगे. वे मुझे भले पसंद न करें, लेकिन अगर मुझे जिम्मेदारी दी जाती है…वैसे मैं चाहती नहीं हूं. मैं बंगाल छोड़ना नहीं चाहूंगी. मैं यहां जन्मी हूं और यहीं आखिरी सांस लूंगी. मैं बंगाल को बहुत चाहती हूं. फिर भी मुझे यकीन है कि मैं यहां से भी संभाल (INDIA का नेतृत्व) लूंगी.’
अभी INDIA का नेतृत्व (भले ही अनौपचारिक) कांग्रेस के ही हाथ में है. वह 99 सांसदों के साथ गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी भी है. कांग्रेस नेताओं ने ममता की बात को मजाक कह कर खारिज कर दिया और कहा कि वह क्षेत्रीय पार्टी चला रही हैं, राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व नहीं कर सकती हैं. ममता का यह बयान सीधा-सीधा कांग्रेस पर निशाना माना गया. लेकिन सच है कि ऐसा बयान देकर ममता बनर्जी ने INDIA काे एक तरह से अप्रासंगिक बता दिया.
ममता के मन की ममता ही जानें क्योंकि..
बात केवल बयानों तक ही सीमित नहीं रही. एक्शन में भी तृणमूल ने कांग्रेस से अलग राह पकड़ी. अदाणी प्रकरण पर संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन में तृणमूल ने कांग्रेस का साथ नहीं दिया. टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि भाजपा को सदन में घेरने के फैसले पर विपक्षी पार्टियां एक मत हैं, लेकिन उनकी रणनीति अलग है. तृणमूल के इस कदम से भाजपा को विपक्ष को घेरने का भले ही एक बहाना मिल गया हो, लेकिन टीएमसी ने साफ संकेत कर दिया की उसकी रणनीति उसकी जरूरतों के हिसाब से तय होगी.
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के मामले में भी ममता बनर्जी ने भाजपा या केंद्र सरकार पर कोई जोरदार हमला नहीं बोला है. उन्होंने सधे हुए अंदाज में कहा कि कहीं भी अल्पसंख्यकों पर जुल्म नहीं होना चाहिए और भारत सरकार को बांग्लादेश में चल रहे घटनाक्रम पर कदम उठाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में हम (राज्य सरकार) केंद्र के निर्देश पर ही काम करते हैं. जबकि, कांग्रेस ने इस मसले पर सरकार पर आक्रामक रुख अख्तियार किया हुआ है.
जाहिर है, ममता ने जो कुछ कहा सैद्धांतिक रूप से उसे कोई गलत नहीं ठहरा सकता, लेकिन राजनीति में संकेतों व प्रतीकों का बड़ा महत्व है. वह एक अंतरराष्ट्रीय मसले पर भी अपनी राजनीतिक जरूरत के लिहाज से बातें कह रही हैं और एक्शन ले रही हैं. INDIA की परवाह नहीं कर रही हैं.
तृणमूल कांग्रेस के लिए कांग्रेस का कोई महत्व नहीं है. न बंगाल की राजनीति में और न आज की परिस्थिति के मद्देनजर राष्ट्रीय राजनीति में. बंगाल में भी टीएमसी का मुकाबला बीजेपी से ही है. पिछले कई चुनावों में ममता बीजपी से ही लड़ती और जीतती आ रही हैं. आने वाले कई चुनावों में भी मैदान में मुकाबला इन्हीं दो के बीच होते रहने के आसार हैं. इस बीच, ममता के लिए लड़ाई मुश्किल होती गई है. भाजपा पांव जमाते जा रही है. ऐसे में ममता अपनी जरूरत के हिसाब से चाल चलती या बदलती जा रही हैं.
नंदीग्राम में हुई हिंसा देती है कई संकेत..
बंगाल में बीजेपी से तृणमूल की लड़ाई लगातार जारी है. आठ दिसंबर को भी नंदीग्राम में एक चुनावी लड़ाई में दोनों पार्टियों के बीच हिंसक लड़ाई हुई, जिसमें 25 लोग घायल हुए. यह चुनाव सहकारी समिति का था. फिर भी दोनों पक्ष जान हथेली पर रख कर लड़ रहे थे. इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि ममता के लिए चुनौती कैसे बढ़ती जा रही है.
भाजपा राज्य में अपना चुनावी प्रदर्शन बेहतर कर रही है और अब उसका जोर मजबूत संगठन बनाने पर है. उसने एक करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा है. यह अलग बात है कि इसमें उसे काफी मुश्किल आ रही है. 30 नवंबर तक की समय सीमा में लक्ष्य पूरा नहीं हो सका तो 15 दिसंबर तक समय सीमा बढ़ा दी गई. यह अलग बात है कि आठ दिसंबर तक यह संख्या 30 लाख भी नहीं पहुंच सकी.
भाजपा की तैयारी के मद्देनजर ममता के लिए पश्चिम बंगाल का गढ़ बचाना ज्यादा चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है. ऐसे में वह INDIA की परवाह नहीं कर सकतीं. कांग्रेस को भी यह समझ लेना चाहिए और अपनी प्रासंगिकता बचाए रखने के उपायों पर मंथन करना चाहिए.
Tags: INDIA Alliance, Mamta Banerjee, Rahul gandhi
FIRST PUBLISHED : December 9, 2024, 16:06 IST
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