Image Slider

  • Hindi News
  • National
  • Mandir Masjid Dispute; Places Of Worship Act Supreme Court Hearing Update | Hindu Muslim
नई दिल्ली8 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक

सुप्रीम कोर्ट में आज प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस मनमोहन की तीन जजों की बेंच इस मामले को सुनेगी।

हिंदू पक्ष ने 1991 में बने इस कानून को चुनौती दी है। कानून के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। उधर जमीअत उलमा ए हिंद ने कानून के समर्थन में याचिका लगाई है।

इस मामले में कुल छह याचिकाएं दाखिल इस मामले में अब तक कुल छह याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में आज इन सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई होगी। इनमें से कुछ याचिकाओं में इस कानून को रद्द करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं में विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, सुब्रह्मण्यन स्वामी और अश्विनी उपाध्याय शामिल हैं। वहीं जमीअत उलमा ए हिंद ने इसके समर्थन में याचिका लगाई है। मुस्लिम पक्ष की दलील है कि इस कानून को रद्द न किया जाए।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट-1991 क्या है? 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाया। ये कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। अयोध्या का मामला उस वक्त कोर्ट में था इसलिए उसे इस कानून से अलग रखा गया था।

क्यों बनाया गया था ये कानून? दरअसल, ये वो दौर था जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से रथयात्रा निकाली। इसे 29 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था, लेकिन 23 अक्टूबर को उन्हें बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार करने का आदेश दिया था जनता दल के मुख्यमंत्री लालू यादव ने। इस गिरफ्तारी का असर ये हुआ कि केंद्र में जनता दल की वीपी सिंह सरकार गिर गई, जो भाजपा के समर्थन से चल रही थी।

इसके बाद वीपी सिंह से अलग होकर चंद्रशेखर ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन ये भी ज्यादा नहीं चल सकी। नए सिरे से चुनाव हुए और केंद्र में कांग्रेस की सरकार आई। पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। राम मंदिर आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के चलते अयोध्या के साथ ही कई और मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे थे। इन विवादों पर विराम लगाने के लिए ही नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी।

अब इसका विरोध क्यों हो रहा है? ऐसा नहीं है कि इस कानून का पहली बार विरोध हो रहा है। जुलाई 1991 में जब केंद्र सरकार ये कानून लेकर आई थी तब भी संसद में भाजपा ने इसका विरोध किया था। उस वक्त राज्यसभा में अरुण जेटली और लोकसभा में उमा भारती ने इस मामले को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजने की मांग की थी, लेकिन इसके बाद भी ये कानून पास हो गया।

2019 में अयोध्या मामले का फैसला आने के बाद एक बार फिर काशी और मथुरा सहित देशभर के करीब 100 पूजा स्थलों पर मंदिर की जमीन होने को लेकर दावेदारी की जा रही है, लेकिन 1991 के कानून के चलते दावा करने वाले कोर्ट नहीं जा सकते। यही विवाद की मूल वजह है।

जब धर्म स्थल की दावेदारी को लेकर कोर्ट नहीं जा सकते तो ये याचिका कैसे लगा दी गई? ये याचिका किसी धर्म स्थल की दावेदारी को लेकर नहीं लगाई गई। बल्कि इस याचिका में तो दावेदारी पर रोक लगाने वाले 1991 के कानून की वैधानिकता को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं में से एकग अश्विनी उपाध्याय ने कानून को भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए चुनौती दी है।

याचिका में इस कानून की धारा दो, तीन, चार को रद्द करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि ये धाराएं 1192 से लेकर 1947 के दौरान आक्रांताओं द्वारा गैरकानूनी रूप से स्थापित किए गए पूजा स्थलों को कानूनी मान्यता देते हैं।

याचिका में कहा गया है कि यह कानून हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करता है। उनके जिन धार्मिक और तीर्थ स्थलों को विदेशी आक्रमणकारियों ने तोड़ा, उसे वापस पाने के उनके कानूनी रास्ते को भी बंद करता है।

याचिका में कहा गया है कि इस एक्ट में राम जन्मभूमि का जिक्र है और उसे कानून के दायरे से अलग रखा गया है, लेकिन कृष्ण जन्म भूमि को नहीं। जबकि राम और कृष्ण दोनों ही विष्णु का अवतार हैं। ऐसे में ये कानून संविधान के आर्टिकल-14 और 15 का उल्लंघन करता है जो सभी को समानता का अधिकार देता है।

क्या ये काशी और मथुरा के मंदिरों के लिए एक रास्ता खोलने वाली याचिका है? अब अगर सुप्रीम कोर्ट पूजा स्थल कानून की वैधानिकता पर विचार करता है तो इसका असर काशी-मथुरा के मंदिर विवादों पर भी पड़ेगा। इन मंदिरों के लिए भी अयोध्या मामले की तरह कानूनी लड़ाई का नया रास्ता खुल सकता है।

कहा जाता है कि मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद जिस जमीन के ऊपर बनाई गई है, उसके नीचे ही वो जगह है जहां श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। 17वीं सदी में औरंगजेब ने यहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवा दी थी। इसी तरह काशी के विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर भी विवाद है।

इस तरह के कितने मंदिर हैं जिन पर इस कानून पर होने वाले फैसले का असर पड़ेगा? याचिकाकर्ता के मुताबिक देश में ऐसे 900 मंदिर हैं जिन्हें 1192 से 1947 के बीच तोड़कर उनकी जमीन पर कब्जा करके मस्जिद या चर्च बना दिया गया। इनमें से सौ तो ऐसे हैं जिनका जिक्र हमारे 18 महापुराणों में है। वो कहते हैं कि इस कानून का बेस 1947 रखा गया है। अगर इस तरह का कोई बेस बनाया जाता है तो वो बेस 1192 ही होना चाहिए।

ये खबर भी पढ़ें…

राउत बोले- देश में आग लगाकर रिटायर हुए जस्टिस चंद्रचूड़: जयराम रमेश ने कहा- पूर्व CJI ने मस्जिद-मंदिर विवादों को बढ़ावा दिया

कांग्रेस और शिवसेना UBT के नेताओं ने पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ को लेकर 2 बयान दिए हैं। जिसमें एक ही बात कही गई है कि अजमेर-संभल में हुए मंदिर-मस्जिद जैसे विवादों के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जिम्मेदार हैं। पढ़ें पूरी खबर…

खबरें और भी हैं…

———-

🔸 स्थानीय सूचनाओं के लिए यहाँ क्लिक कर हमारा यह व्हाट्सएप चैनल जॉइन करें।

 

Disclaimer: This story is auto-aggregated by a computer program and has not been created or edited by Ghaziabad365 || मूल प्रकाशक ||