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मंडी. हिमाचल प्रदेश के आईआइटी मंडी के सहायक प्रोफेसर डॉ. गजेंद्र सिंह नियोनेटल इनक्यूबेटर बनाया है, जिससे अब बच्चों को अस्पताल तक पहुंचने में आसानी होगी.  सहायक प्रोफेसर को अपनी बेटी के उपचार के लिए नियोनेटल एम्बुलेंस नहीं मिली थी और उसके बाद उन्होंने पहाड़ों में रहने वाले लोगों के दर्द को समझा और फिर खुद पोर्टेबल नियोनेटल इनक्यूबेटर का निर्माण कर डाला. डेढ़ वर्ष पहले एक मॉडल के रूप में बनाया गया नियोनेटल इनक्यूबेटर आज स्टार्टअप तक पहुंच गया है और जल्द ही एक निजी कंपनी इसका निर्माण कार्य भी शुरू करने जा रही है. डॉ. गजेंद्र सिंह मूलतः मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं और आईआईटी मंडी में सहायक प्रोफेसर हैं.

दरअसल, डेढ़ वर्ष पहले जब उनकी बेटी का जन्म हुआ तो उसे पैदा होते ही इन्फेक्शन हो गया. उपचार के लिए बेटी को चंडीगढ़ रेफर किया गया गया, लेकिन नवजात को सामान्य एम्बुलेंस में नहीं ले जा सकते थे. इसके लिए नियोनेटल इनक्यूबेटर सुविधा वाली एम्बुलेंस की जरूरत थी. लेकिन यह एम्बुलेंस चंडीगढ़ के सिवाय और कहीं उपलब्ध नहीं है. चंडीगढ़ से इस एम्बुलेंस को आने में 12 से 14 घंटों का समय लग गया. इतने में बेटी की तबीयत और ज्यादा खराब हो रही थी और फिर यह एम्बुलेंस पहुंची और नवजात को अस्पताल ले जाया गया. तब डॉ. गजेंद्र ने यह सुविधा पहाड़ के गांव-गांव तक पहुंचाने की ठानी.

डॉ. गजेंद्र ने बताया कि उन्होंने इसके बारे में गहन शोध किया और फिर अपने सहयोगियों के साथ नियोनेटल इनक्यूबेटर का मॉडल बनाने का कार्य शुरू किया.

इस नियोनेटल इनक्यूबेटर की बाजार में कीमत 35 लाख से अधिक की है लेकिन डॉ. गजेंद्र ने जो इनक्यूबेटर बनाया है वो 3 से 8 लाख रुपये में उपलब्ध होगा. यह ऐसा नियोनेटल इनक्यूबेटर है, जिसके लिए एम्बुलेंस की जरूरत भी नहीं होगी और यह वजन में इतना हल्का है कि इसे ड्रोन की मदद से या कार के एक हिस्से में आसानी से ले जाया जा सकता है. इसमें ऑक्सीजन सिलेंडर, दो घंटों का बैटरी वैकअप, पीलिया की रोकथाम के लिए फोटोथैरेपी और वॉर्मर की पूरी सुविधा भी उपलब्ध है. डॉ. गजेंद्र ने बताया कि उन्होंने इसमें डिजीटल हेल्थ फीचर भी शामिल किए हैं जिसकी मदद से डॉक्टर कोसों दूर से भी बच्चे पर निगरानी रख सकता है और उसे ऑनलाइन ट्रीटमेंट दे सकता है.

डॉ. गजेंद्र ने बताया कि उन्होंने इसमें डिजीटल हेल्थ फीचर भी शामिल किए हैं.

जल्द ही बाजार में आएगा मॉडल

उन्होंने बताया कि डिजाइन प्रेक्टिकम प्रोजेक्ट के तौर पर बनाया गया यह मॉडल अब स्टार्टअप बन चुका है और आने वाले एक या दो वर्षों में एक निजी कंपनी की ओर से इसका निर्माण शुरू किया जाएगा और उसके बाद यह बाजार में उपलब्ध हो जाएगा. इसकी औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं. इस नियोनेटल इनक्यूबेटर को बनाने में डा. गजेंद्र के साथ एसोसिएट प्रोफेसर डा. सत्वशील पोवार, स्टूडेंट केशव वर्मा, वत्सल, धीरज और बादल ने भी अपना अहम योगदान दिया है.

डॉ. गजेंद्र सिंह मूलतः मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं और आईआईटी मंडी में सहायक प्रोफेसर हैं.

किस काम आता है इनक्यूबेटर

नियोनेटल इनक्यूबेटर को इन्फेंट इनक्यूबेटर भी कहा जाता है. यह एक मशीन की तरह होता है और इसमें बच्चे को रखा जाता है. इस इनक्यूबेटर के जरिये तापमान, ह्यूमिडिटी और ऑक्सीजन लेवल को मैंटेन किया जाता है. साथ ही ऑर्गन्स और हर्ट रेट के अलावा, अन्य जरूरी चीजों की निगरानी की जाती है.

Tags: Ambulance Service, Shimla News Today

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