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उत्‍तम प्रदेश बनने की चाहत का ढिंढोरा पीटने वाले उत्‍तर प्रदेश का संभल जल रहा है. कारण वही शर्मनाक. एक इंसान के रूप में हमारी पहचान खोकर हिंदू-मुसलमान के रूप में पहचान ढूंढ़ने की कोशिश. इस कोशिश में हम गड़े मुर्दे उखाड़ कर नई लाशों के लिए कब्र खोदने में भी गुरेज नहीं कर रहे. और, हम यह सब किसके नाम पर कर रहे हैं? धर्म या आस्‍था के नाम पर. किसमें आस्‍था के नाम पर? ईश्‍वर या अल्‍लाह में आस्‍था के नाम पर.

हम अपनी बात को आगे बढ़ाएं, इससे पहले बताते चले कि संभल में हिंसा की आग कैसे भड़की? 19 नवंबर को एक पुजारी ने अर्जी दी कि संभल की शाही जामा मस्‍जिद जहां खड़ी है, वहां कभी मंदिर हुआ करता था. 16वीं सदी में इस मंदिर को ढहा दिया गया था. मस्‍जिद पर ‘ईश्‍वर’ का दावा जतलाने वाली यह अर्जी दोपहर में दायर हुई. कुछ ही घंटे में सिविल जज (सीनियर डिविजन) आदित्‍य सिंह ने मस्जिद का शुरुआती सर्वे कराने का आदेश जारी कर दिया और 29 नवंबर को रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा. पहले दिन का सर्वे भी उसी दिन कर लिया गया. प्रशासन के मुताबिक 24 नवंबर को दूसरे राउंड का सर्वे करने के लिए टीम पहुंची. इसी दौरान कुछ लोग वहां जमा हो गए और नारेबाजी व पत्‍थरबाजी करने लगे. पुलिस ने भी बल प्रयोग किया. इसी दौरान भीड़ में से फायरिंग हुई और इसमें पांच लोग मारे गए.

हमारी आस्‍था का जो मूल है, उसका सिद्धांत है ईश्‍वर एक है, ईश्‍वर-अल्‍लाह तेरो नाम… उसने जब इंसान को पृथ्‍वी पर भेजा तो हिंदू-मुसलमान बना कर नहीं भेजा. फिर हमारी आस्‍था ने यह वीभत्‍स रूप कैसे अख्तियार कर लिया? यह तब हुआ जब हमने अपनी आस्‍था को नेताओं के पास गिरवी रख दिया और नेता अपना स्‍वार्थ साधने के लिए हमारी आस्‍था का अपनी सुविधानुसार इस्‍तेमाल करने लग गए. या कहें, हमने उन्‍हें करने दिया.

ज्‍यादा पुराने पन्‍ने पलटने की जरूरत नहीं है. अयोध्‍या में हाल ही में बने भव्‍य राम मंदिर का ही महज कुछेक दशक पुराना इतिहास देख लिया जाए तो यह बात साफ हो जाती है कि आस्‍था के नाम पर कैसे हम इस्‍तेमाल किए गए और हमें इस्‍तेमाल कर नेताओं ने सत्‍ता पाई और मकसद सधते ही आगे बढ़ गए. नेताओं को समझ में आ गया है कि आस्‍था के नाम पर अब लोगों को भड़काने का उतना फायदा नहीं मिल सकता, जितना अयोध्‍या में मिल गया. अयोध्‍या क्षेत्र में आए लोकसभा चुनाव के नतीजों का भी यही सबक था. नेता अब जरूरत के हिसाब से अपना स्‍टैंड बदल रहे हैं, लेकिन हम हमारी आस्‍था के मूल से भटक कर वापस लौट ही नहीं पा रहे हैं.

ढाई साल पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने क्‍या कहा था, याद है? मैं याद दिलाता हूं. जून, 2022 में नागपुर में भागवत बोले थे, ‘ज्ञानवापी विवाद चल रहा है. ज्ञानवापी का एक इतिहास है, जो अब बदला नहीं जा सकता. वह इतिहास हमने नहीं बनाया है. न आज के हिंदुओं ने, न मुसलमानों ने. यह तब हो गया था. इस्‍लाम यहां आक्रांताओं के जरिये आया. इन हमलों में मंदिर तोड़े गए. ऐसा उनका मनोबल तोड़ने के लिए किया गया जो इस देश की स्‍वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे. ऐसे हजारों मंदिर हैं. हिंदुओं के मन में जिस मंदिर को लेकर विशेष श्रद्धा है, उनका मुद्दा अब उठाया जा रहा है. रोज एक मामला निकालें नया, ये भी नहीं करना चाहिए. हमको झगड़ा क्‍यों बढ़ाना? ज्ञानवापी के बारे में हमारी श्रद्धा परंपरा से चलती आई है. हम करते आ रहे हैं वो ठीक है. पर हर मस्जिद में शिवलिंग क्‍यों देखना? वो भी एक पूजा है. ठीक है बाहर से आई है, लेकिन जिन्‍होंने अपनाया है वो मुसलमान तो बाहर से संबंध नहीं रखते. ये उनको भी समझना चाहिए. यद्यपि पूजा उनकी उधर की है उसमें वो रहना चाहते हैं तो अच्‍छी बात है. हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं.’

भागवत की बात के दो मायने निकलते हैं. एक तो वह मानते हैं कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने के अनेक मामले हो सकते हैं. दूसरी ओर, वह संयम बरतने की सलाह भी दे रहे हैं. लेकिन लगता है भागवत ने जिनके लिए संयम बरतने की सलाह दी, उन्‍होंने इसे या तो सुना नहीं या सुन कर भी अनसुना कर दिया. असल में हिंदू हो या मुसलमान, अपनी समझ का इस्‍तेमाल करने वाला आम इंसान मंदिर-मस्जिद के झमेले में पड़ता ही नहीं. नेताओं के झांसे में आने वाले हिंदू-मुसलमान ही मंदिर-मस्जिद के जरिए अपनी पहचान ढूंढ़ने के नाम पर मर-मिटने के लिए तैयार रहते हैं. संभल की ताजा घटना भी कोई अपवाद नहीं है.

संभल के मामले में 36 साल के युवा जज आदित्‍य सिंह ने भी जो तेजी दिखाई, वह हैरान करने वाली है. जनहित से जुड़े मामलों में अगर न्‍यायपालिका ऐसी तेजी दिखाए तो न्‍याय व्‍यवस्‍था की सूरत ही बदल जाएगी और इसमें जनता का भरोसा भी मजबूत होगा. साथ ही, न्‍यायपालि‍का की जिम्‍मेदारी संभल जैसी समस्‍या के मूल कारणों पर भी चोट करने की है. मूल कारण है धर्म के नाम पर राजनीति करना. राजनीति में धर्म का गलत तरीके से इस्‍तेमाल करना. इस पर रोक नहीं लगी तो ‘हर मस्‍ज‍िद में शिवलिंग खोजे जाने की प्रवृत्ति’ का लगातार विस्‍तार होने का ही खतरा है. यह समाज को कहां ले जाएगा, यह सोच कर भी डर लगता है.

ब्लॉगर के बारे में

व‍िजय कुमार झा

व‍िजय कुमार झा जनसत्‍ता.कॉम के पूर्व संपादक हैं और पत्रकार‍िता में करीब ढाई दशक से सक्रिय हैं. ऑनलाइन मीड‍िया के अलावा, प्र‍िंट मीड‍िया में भी लंबा वक्‍त गुजारा है. देश के तमाम बड़े अखबारों में अलग-अलग ज‍िम्‍मेदारी न‍िभाते हुए तरह-तरह के प्रयोग क‍िए हैं और अपने अनुभव को लगातार न‍िखारते रहे हैं. जनसत्‍ता ड‍िज‍िटल के पहले संपादक के तौर पर नौ साल की लंबी पारी खेली. उससे पहले दैन‍िकभास्‍कर.कॉम में पांच साल रहे. पाठक को केंद्र में रखकर कंटेंट प्‍लान और प्रेजेंट करना सबसे बड़ी ताकत है. दैन‍िक जागरण, दैन‍िक भास्‍कर, नवभारत टाइम्‍स जैसे अखबारों में तरह-तरह की ज‍िम्‍मेदार‍ियां न‍िभा चुके विजय कुमार झा आंचल‍िक पत्रकार‍िता की चुनौत‍ियों और बारीक‍ियों को समझने वाले देश के चुनिंदा पत्रकारों में हैं. व‍िजय ने देश के प्रतिष्ठित भारतीय जनसंचार संस्‍थान (आईआईएमसी) से पत्रकारिता की पढ़ाई की है. सोशल मीड‍िया पर फेक न्‍यूज की बाढ़ और इससे जुड़ी चुनौत‍ियों से न‍िपटने के ल‍िए उन्होंने IAMAI-Meta Fact-Checking News Fellowship भी पूरी की है और Certified Fact-Checker हैं. खाली वक्त में गाना सुनना और क‍िताबें पढ़ना पसंद करते हैं.

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