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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस फैसले में अदालत ने स्पष्ट किया कि एएमयू को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिलेगा। अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनके प्रशासन का अधिकार देता है। यह निर्णय भारत के शैक्षणिक और सामाजिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डालेगा।
अदालत ने यह निर्णय दिया कि एएमयू का गठन 1920 के एक्ट से हुआ था और इसे अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित नहीं किया गया था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी बहस में यह बताया कि एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने का कोई आधार नहीं है, क्योंकि इसे किसी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित या प्रशासित नहीं किया गया था। अदालत ने कहा कि एएमयू एक राष्ट्रीय महत्व का संस्थान है और संविधान का अनुच्छेद 15 (1) कहता है कि राज्य किसी के साथ जाति, धर्म, भाषा, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
इस फैसले का प्रभाव न केवल एएमयू पर पड़ेगा, बल्कि हिंदू संस्थानों पर भी पड़ेगा। अगर एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा नहीं मिलता है, तो यह अन्य संस्थानों के लिए भी एक उदाहरण बन जाएगा, जिनके खिलाफ समान दावे किए जा सकते हैं। इससे यह स्पष्ट होगा कि किसी भी शैक्षणिक संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा केवल इसलिए नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह एक विशेष समुदाय द्वारा संचालित होता है। इस फैसले से शिक्षा के क्षेत्र में समानता और निष्पक्षता को बढ़ावा मिलेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि सभी संस्थान संविधान के अनुरूप कार्य करें। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से हिंदू संस्थानों को भी प्रेरणा मिलेगी कि वे अपने अधिकारों के प्रति सजग रहें और किसी भी प्रकार के भेदभाव का सामना करने के लिए तत्पर रहें।
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