बता दें कि यह मंदिर बिश्नोई समाज के लिए सबसे बड़ा आस्था का केंद्र है. यहां हर साल बड़ी संख्या में देशभर से लोग आते है. यहां साल में दो बार मेला लगता है जहां 10 से 12 लाख लोग आते है. यहां हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से लोग आते हैं और मुक्तिधाम में मत्था टेकते हैं.
लॉरेंस पर टिप्पणी नहीं, सलमान मामले में चाहिए न्याय
अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के कार्यालय सचिव हनुमानराम बिश्नोई ने बताया कि लॉरेंस बिश्नोई का मामला न्यायालय में चल रहा है. इस संबंध में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते है. सलमान खान एक अपराधी है. उन्होंने काले हिरण का शिकार किया. न्यायालय में मामला चल रहा है.
वे बताते है कि हमें न्यायपालिका पर पूरा विश्वास है. न्याय जरूर मिलेगा. जब तक अपराधी के खुद के मन में पश्चाताप करने का मन में नहीं आता है तो मतलब नहीं है. उसके खुद के मन में होना चाहिए कि मैंने अपराध किया है. कानूनी कार्रवाई चल रही है और अपराधी को सजा जरूर मिलेगी. हमें परमात्मा और न्याय पालिका पर पूरा विश्वास है कि न्याय जरूर होगा.
गुरु जंभेश्वर को यहां दी गई थी समाधि
हनुमान बिश्नोई आगे कहते हैं, “मान्यता है कि गुरु जम्भेश्वर जी को बीकानेर में मुकाम नामक जगह पर एकादशी के दिन समाधि दी गई थी. यही जगह आज मुक्तिधाम के नाम से जानी जाती है. कहा यह भी जाता है कि गुरु महाराज ने समाधि लेने से पहले खेजड़ी और जाल के वृक्ष को अपनी समाधि का चिह्न बताया था. आज उसी जगह पर उनकी समाधि बनी हुई है.”
इतिहासकारों की मानें तो जब गुरु महाराज को समाधि देने के लिए 24 हाथ नीचे खुदाई की गई तो वहां एक त्रिशूल मिला था. वह त्रिशूल आज भी मुक्तिधाम मुकाम पर स्थापित है. इस मंदिर का निर्माण गुरु जम्भेश्वर के प्रिय शिष्यों में से एक रणधीर जी बावल ने करवाया था. उनके स्वर्गवास के बाद इस मंदिर को बिश्नोई समाज के संतों की मदद से पूरा किया गया था.
गुरु जंभेश्वर ने अपनी संपत्ति कर दी थी दान
बिश्नोई समाज के इतिहासकारों के अनुसार गुरु जंभेश्वर जी का जन्म 1451 ईस्वी विक्रम संवत 1508 में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन नागौर जिले के पीपासर गांव में हुआ था. जंभेश्वर के पिता का नाम लोहट पंवार और मां का नाम हंसादेवी था. इनके पिता पंवार गोत्रिय राजपूत थे. जंभेश्वर जी के गुरु का नाम गोरखनाथ था. जंभेश्वर जी की मां हंसादेवी है. माता-पिता के निधन के बाद जंभेश्वर जी ने अपनी पूरी संपत्ति जनहित में दान कर दी.
उसके बाद गुरु जंभेश्वर समराथल धोरे पर जाकर रहने लगे. सन् 1485 में उन्होंने बिश्नोई पंथ की स्थापना की. पंथ स्थापना समराथल धोरे पर कार्तिक वदी अष्टमी को की गई थी. विक्रमी संवत 1593 सन् 1536 मिंगसर वदी नवमी चिलत नवमी के दिन लालासर में गुरु जम्भेश्वर निर्वाण को प्राप्त हुए. उनकी समाधि स्थल आज भी मुकाम गांव में स्थित है.
हर साल लगते हैं 2 बड़े मेले
मुकाम मंदिर में हर साल दो बड़े मेले लगते हैं. पहला फाल्गुन अमावस्या पर और दूसरा आसोज अमावस्या के दिन. बताया जाता है कि फाल्गुन अमावस्या का मेला बहुत पुराना है. लेकिन आसोज अमावस्या का मेला संत विल्होजी ने 1591 ई. में शुरू किया था. इस मेले का आयोजन अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा और अखिल भारतीय गुरु जम्भेश्वर सेवक दल मिलकर करते हैं. हर साल आसोज अमावस्या पर यहां हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से लोग आते हैं और मुक्तिधाम में मत्था टेकते हैं.
Tags: Bikaner news, Local18, Rajasthan news, Salman khan
FIRST PUBLISHED : October 19, 2024, 10:02 IST
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