लीच थेरेपी
– फोटो : अमर उजाला
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आयुर्वेद के तरफ बढ़े झुकाव ने प्राचीन चिकित्सा पद्धति की मांग बढ़ा दी है। दिल्ली सरकार के चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान में इस दुर्लभ पद्धति की मदद से दूषित खून चूस कर जोंक शरीर को सेहतमंद बना रहा है। इसमें न कोई चीर-फाड़ या दवा की जरूरत होती है।
संस्थान में हर दिन 8 से 10 मरीज इस पद्धति से इलाज करवाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस पद्धति से इलाज करवाने पर शरीर में रक्त प्रवाह बढ़ता है। प्रभावित अंग में सूजन तेजी से कम होती है। साथ ही खून के बहाव में आई रुकावट दूर होती है। साथ ही प्रभावित क्षेत्र में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति बढ़ती है।
डॉक्टरों का कहना है कि लंबे समय तक प्रभावित क्षेत्र में दूषित खून जमा रहने से उक्त अंग के फेल होने की आशंका रहती है। चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेद चरक संस्थान के निदेशक-प्रिंसिपल प्रोफेसर (डॉ.) एमबी गौड़ ने कहा कि लीच थेरेपी (जोंक चिकित्सा) एक दुर्लभ चिकित्सा पद्धति है।
इन मरीजों पर लीच थेरेपी फायदेमंद
घाव या अल्सर, काफी देर तक खड़े रहने के कारण खून का प्रवाह प्रभावित होना, फोड़ा होना,शिराएं और धमनियां में रक्त प्रवाह रुक जाना।
30 मिनट की होती है थेरेपी
संस्थान में शल्य तंत्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. महेश कुमार ने बताया कि इस पद्धति में करीब 30 मिनट की थेरेपी होती है। मरीज में रोग के आधार पर एक से 10 जोंक लगाए जाते हैं। जोंक लगाने के दौरान मरीज की स्थिति देखी जाती है। उनका कहना है कि इस थेरेपी के दौरान शरीर से गंदा खून जोंक चूसता है। ऐसे में विशेषज्ञ मरीज के पल-पल व्यवहार पर नजर रखते हैं।
- डॉक्टरों का कहना है कि जोंक रक्त को चूसने के दौरान थूक में मौजूद एंजाइम (जैसे हेडरिन) को रक्त में छोड़ते हैं। ये एंजाइम रक्त को पतला करते हैं और खून के थक्के बनने की प्रक्रिया को रोकते हैं। इसकी मदद से रक्त प्रवाह को बढ़ाता है। सूजन को कम करता है और प्रभावित क्षेत्र में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति में सुधार होता है। यह उपचार विभिन्न बीमारियों, जैसे कि गठिया, त्वचा संबंधी समस्याएं, और पुनर्निर्माण सर्जरी में मददगार साबित हो सकती है।
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