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59 मिनट पहले

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दिल्ली हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस यानी AIIMS को MBBS कोर्स में एडमिशन के लिए अप्लाई करने वाले विकलांग कैंडिडेट के असेसमेंट के लिए बनाए गए तीन मेंबर के बोर्ड में विकलांग डॉक्टर को शामिल करने का आदेश दिया था। 1 अक्टूबर को नई रिपोर्ट जमा की जा चुकी है। इस मामले में अब मंगलवार को फैसला सुनाया जाएगा।

दरअसल, कबीर पहाड़िया नाम के एक कैंडिडेट ने NEET का एग्जाम क्लियर कर लिया था। लेकिन उनकी फिजिकल डिसएबिलिटी के कारण उन्हें MBBS में एडमिशन नहीं दिया गया। पहले AIIMS का एक बोर्ड उन्हें मेडिकल की पढ़ाई के लिए अयोग्य घोषित कर चुका है। इस बोर्ड में एक भी विकलांग डॉक्टर को शामिल नहीं किया गया था जबकि डायरेक्टर जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज यानी DGHS ने 2022 में ही ये आदेश दिया था कि विकलांगता का प्रमाण देने वाले सभी सेंटर्स में एक विकलांग डॉक्टर शामिल जरूर होना चाहिए। यही वजह है कि कोर्ट ने अब विकलांग डॉक्टर शामिल करने का आदेश दिया है।

पेंटिंग बनाते हैं कबीर पर सर्जन नहीं बन सकते कबीर बाइलेट्रल अपर लिंब डिसएबिलिटी के शिकार हैं यानी उनके बाहिने हाथ की तीन और दाहिने हाथ की दो उंगलियों की ग्रोथ पूरी नहीं हुई है। इसी के साथ उनके बाएं पैर की भी दो उंगलियां अधूरी हैं।

कबीर के पिता मनीष पहाड़िया कहते हैं, ‘कबीर के चलने-फिरने या रोजमर्रा के कामों पर इस डिसएबिलिटी का कोई असर नहीं पड़ा है। वो फुटबॉल खेलता है, स्केचिंग करता है और जूतों की फीते भी बांध लेता है। लेकिन मेडिकल बोर्ड्स इसे लोकोमोटर डिसएबिलिटी बता रहे हैं।’

10वीं में कबीर ने 91.5% स्कोर किया और 12वीं में 90% मार्क्स स्कोर किए हैं। NEET में उनके 720 में से 542 मार्क्स आए। इन एग्जाम्स के लिए कबीर ने किसी स्क्राइब का इस्तेमाल नहीं किया और सभी एग्जाम अपने हाथों से ही लिखे हैं।

मेडिकल बोर्ड ने ‘अनफिट’ घोषित किया, तो कोर्ट गए

दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल ने कबीर पहाड़िया की विकलांगता का इवैल्यूएशन किया। इसके बाद हॉस्पिटल ने विकलांगता की वजह से कबीर को मेडिकल की पढ़ाई के लिए अयोग्य घोषित किया था। इसके बाद कबीर ने हॉस्पिटल के इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चैलेंज किया।

हाईकोर्ट ने AIIMS दिल्ली को एक इंडीपेंडेंट बोर्ड बनाकर कबीर का एसेसमेंट करने का आदेश दिया। AIIMS के इस बोर्ड ने भी कबीर को विकलांगता की वजह से अयोग्य घोषित किया था। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने भी कबीर को MBBS के लिए अयोग्य मानते हुए ही फैसला सुनाया था। लेकिन AIIMS के इस मेडिकल बोर्ड में एक भी विकलांग डॉक्टर शामिल नहीं किया गया था। इस मेडिकल बोर्ड का कहना था कि कबीर को मेडिकल की पढ़ाई में विकलांग होने की वजह से कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। उनके दोनों ही हाथों की उंगलियां मिसिंग हैं, जिसकी वजह से मेडिकल प्रोफेशन से जुड़ी कई तरह की स्किल्स वो नहीं सीख पाएंगे। हालांकि उस स्किल के बारे में इस रिपोर्ट में कुछ स्पेसिफाई नहीं किया गया जो कबीर नहीं सीख पाएंगे।

NMC की गाइडलाइन्स आउटडेटेड

दिल्ली के GTB हॉस्पिटल के प्रोफेसर और डिसएबिलिटी राइट्स एक्टिविस्ट डॉ. सतेंद्र सिंह ने कहा, ‘NMC की गाइडलाइन्स में लिखा है – बोथ हैंड्स इन्टेक्ट विद सेंसेशन यानी दोनों हाथ पूरी तरह ठीक होने चाहिए। ये 1979 से चली आ रही गाइडलाइन्स आउटडेटेड हो चुकी हैं। आज के समय में AI आ चुका है, रोबोट्स सर्जरी कर रहे हैं। उनके हाथों में तो कोई सेंसेशन नहीं होता।’

डॉ. सतेंद्र सिंह डिसएबिलिटी राइट्स एक्विटिस्ट हैं। उन्होंने बताया कि वो 183 ऐसे सर्जन से बात कर चुके हैं जिन्हें किसी हादसे में उंगलियां गंवानी पड़ी। आज वो बिना उंगलियों के भी सर्जरी कर रहे हैं।

डॉ. सतेंद्र सिंह डिसएबिलिटी राइट्स एक्विटिस्ट हैं। उन्होंने बताया कि वो 183 ऐसे सर्जन से बात कर चुके हैं जिन्हें किसी हादसे में उंगलियां गंवानी पड़ी। आज वो बिना उंगलियों के भी सर्जरी कर रहे हैं।

डॉ सिंह ने बताया कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्कान शेख नाम की एक लड़की को MBBS में एडमिशन देने का फैसला सुनाया था। एक सड़क हादसे में मुस्कान का हाथ कलाई से अलग हो गया था।

इसके अलावा पिछले साल इसी तरह के एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक विकलांग लड़की को मेडिकल कॉलेज में एडमिशन से मना कर दिया था। इसके साथ ही कोर्ट ने NMC को कहा था कि हाथ से विकलांग स्टूडेंट्स सर्जरी नहीं कर सकते, लेकिन जरूरी नहीं कि हर बच्चा सर्जन ही बनना चाहता है। मेडिकल में और भी कई ब्रांच हैं।

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