दूध से नहाने को “मिल्क बाथ” कहा जाता है, जो प्राचीन काल से सुंदरता और त्वचा की देखभाल के लिए इस्तेमाल होता आया है. दूध से नहाना एक ऐसा विचार है जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से कहीं कहीं प्रचलित तो रहा है.
क्या दूध से नहाना बेहतर होता है
दूध में लैक्टिक एसिड, प्रोटीन, वसा, और विटामिन (A, D, और E) होते हैं, जो त्वचा के लिए लाभकारी हो सकते हैं. लैक्टिक एसिड एक प्राकृतिक एक्सफोलिएंट है, जो मृत त्वचा को हटाने और त्वचा को चिकना बनाने में मदद करता है. दूध में मौजूद वसा और प्रोटीन त्वचा को मॉइस्चराइज कर सकते हैं, जिससे यह मुलायम और कोमल बनी रहती है. प्राचीन काल में क्लियोपेट्रा के गधे के दूध से स्नान की कहानी इसी विश्वास पर आधारित थी कि दूध त्वचा को जवां और चमकदार बनाता है.
पानी से नहाने से क्या होता है
दूध से नहाने की तुलना में शरीर की स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए पानी से नहाना ज्यादा बेहतर है. ( news18)
दूध से नहाने पर संक्रमण का खतरा भी
दूध से नहाने का प्रभाव हर व्यक्ति की त्वचा पर अलग-अलग हो सकता है. जिन लोगों की त्वचा संवेदनशील हो या जिन्हें लैक्टोज से एलर्जी हो, उनके लिए दूध से नहाना नुकसानदायक हो सकता है. इसके अलावा, दूध में मौजूद बैक्टीरिया अगर ठीक से स्टरलाइज न किए गए हों, तो त्वचा पर संक्रमण का खतरा भी हो सकता है.
दूध से नहाने पर शरीर को और भी दिक्कतें
दूध से नहाने के बाद पानी से धोना जरूरी हो सकता है, जिससे ये पूरा काम जटिल और समय लेने वाला हो जाता है. पानी से नहाना इस मामले में अधिक सरल और प्रभावी है.
दूध में चिपचिपाहट होती है. यह त्वचा पर अवशेष छोड़ सकता है, जिससे शरीर में चिपचिपाहट और बेचैनी हो सकती है. (news18)
महंगा विकल्प भी
पानी से नहाना न केवल सस्ता है, बल्कि अधिक व्यावहारिक भी है. नहाने के लिए पानी आसानी से उपलब्ध होता है, जबकि दूध को विशेष रूप से खरीदना पड़ता है. दूध की बर्बादी भी एक नैतिक मुद्दा हो सकता है.
पर्यावरण पर खराब असर डालता है
मिस्र की शासिका क्लियोपेत्रा अपनी सुंदरता और जवां रहने के लिए दूध से नहाया करती थी. (news18)
ये असामान्य भी, रोज नहीं किया जा सकता
भारत में दूध का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. इसे पवित्र माना जाता है. पूजा-पाठ में उपयोग किया जाता है. लिहाजा दूध से नहाना सामाजिक रूप से असामान्य माना जा सकता है. इसे संसाधनों की बर्बादी के रूप में देखा जा सकता है. पानी से नहाना सामाजिक रूप से स्वीकार्य और रोजमर्रा का अभ्यास है.
साइंस क्या कहती है
वैसे साइंस कहती है कि गर्म या गुनगुने दूध से नहाने से चिपचिपाहट का अहसास कम हो सकता है, क्योंकि गर्म दूध त्वचा पर आसानी से फैलता है और कम चिपकता है. ठंडा दूध अधिक चिपचिपा लग सकता है.
बेशक लंबे समय तक दूध से नहाने से त्वचा मुलायम और चमकदार हो सकती है, लेकिन अगर इसे ठीक से धोया नहीं गया, तो त्वचा संबंधी समस्याएं जैसे मुंहासे या फंगल इंफेक्शन हो सकते हैं. महीने का 6000-8400 रुपये का खर्च भी आर्थिक बोझ बन सकता है. वैसे कभी-कभार नहाना कोई बुरा नहीं.
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