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हाल ही में असम के नलबाड़ी जिले में एक व्यक्ति ने तलाक के बाद अपनी खुशी का इजहार 40 लीटर दूध से नहाकर किया. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया. अगर दूध से नहाया जाए तो क्या होगा. इसका शरीर पर क्या असर पड़ता है. पुराने समय में मिस्र और चीन में दूध से नहाने के उदाहरण तो मिलते हैं.

दूध से नहाने को “मिल्क बाथ” कहा जाता है, जो प्राचीन काल से सुंदरता और त्वचा की देखभाल के लिए इस्तेमाल होता आया है. दूध से नहाना एक ऐसा विचार है जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से कहीं कहीं प्रचलित तो रहा है.

विशेष रूप से प्राचीन मिस्र में, जहां रानी क्लियोपेट्रा के दूध और शहद के स्नान की कहानियां मशहूर हैं. ये कहा जाता है कि चीन की महारानी भी जवान रहने के लिए दूध से नहाया करती थी.

क्या दूध से नहाना बेहतर होता है

दूध में लैक्टिक एसिड, प्रोटीन, वसा, और विटामिन (A, D, और E) होते हैं, जो त्वचा के लिए लाभकारी हो सकते हैं. लैक्टिक एसिड एक प्राकृतिक एक्सफोलिएंट है, जो मृत त्वचा को हटाने और त्वचा को चिकना बनाने में मदद करता है. दूध में मौजूद वसा और प्रोटीन त्वचा को मॉइस्चराइज कर सकते हैं, जिससे यह मुलायम और कोमल बनी रहती है. प्राचीन काल में क्लियोपेट्रा के गधे के दूध से स्नान की कहानी इसी विश्वास पर आधारित थी कि दूध त्वचा को जवां और चमकदार बनाता है.

पानी से नहाने से क्या होता है

पानी से नहाना मुख्य रूप से त्वचा को साफ करने और गंदगी, पसीना, और बैक्टीरिया को हटाने का काम करता है. पानी त्वचा को हाइड्रेट तो करता है, लेकिन इसमें कोई पोषक तत्व नहीं होते जो त्वचा को अतिरिक्त लाभ पहुंचाएं. यदि साबुन या क्लींजर का उपयोग किया जाता है, तो यह त्वचा की प्राकृतिक नमी को कम कर सकता है, जिससे त्वचा रूखी हो सकती है. इस हिसाब से तो दूध से नहाना त्वचा को पोषण देने और मॉइस्चराइज करने में पानी से बेहतर हो सकता है.

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दूध से नहाने की तुलना में शरीर की स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिए पानी से नहाना ज्यादा बेहतर है. ( news18)

दूध से नहाने पर संक्रमण का खतरा भी

दूध से नहाने का प्रभाव हर व्यक्ति की त्वचा पर अलग-अलग हो सकता है. जिन लोगों की त्वचा संवेदनशील हो या जिन्हें लैक्टोज से एलर्जी हो, उनके लिए दूध से नहाना नुकसानदायक हो सकता है. इसके अलावा, दूध में मौजूद बैक्टीरिया अगर ठीक से स्टरलाइज न किए गए हों, तो त्वचा पर संक्रमण का खतरा भी हो सकता है.

दूध से नहाने पर शरीर को और भी दिक्कतें

पानी से नहाना स्वच्छ शरीर का अहम हिस्सा होता है. यह शरीर से गंदगी, तेल और बैक्टीरिया को प्रभावी ढंग से हटाता है. दूध से नहाने में यह स्वच्छता का स्तर प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि दूध में चिपचिपाहट होती है. यह त्वचा पर अवशेष छोड़ सकता है. अगर दूध को ठीक से धोया न जाए, तो यह त्वचा के छिद्रों को बंद कर सकता है, जिससे मुंहासे या अन्य त्वचा संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.

दूध से नहाने के बाद पानी से धोना जरूरी हो सकता है, जिससे ये पूरा काम जटिल और समय लेने वाला हो जाता है. पानी से नहाना इस मामले में अधिक सरल और प्रभावी है.

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दूध में चिपचिपाहट होती है. यह त्वचा पर अवशेष छोड़ सकता है, जिससे शरीर में चिपचिपाहट और बेचैनी हो सकती है. (news18)

महंगा विकल्प भी

दूध से नहाना महंगा विकल्प भी है. एक सामान्य स्नान के लिए कम से कम 10-20 लीटर दूध की जरूरत तो होगी ही. इसकी लागत पानी की तुलना में कहीं अधिक होगी. भारत में एक लीटर दूध की कीमत लगभग 50-70 रुपये हो सकती है, जबकि पानी की लागत नगण्य होती है. इसके अलावा दूध को गर्म करने या ठंडा रखने की जरूरत भी हो सकती है जिससे वो खराब नहीं हो.

पानी से नहाना न केवल सस्ता है, बल्कि अधिक व्यावहारिक भी है. नहाने के लिए पानी आसानी से उपलब्ध होता है, जबकि दूध को विशेष रूप से खरीदना पड़ता है. दूध की बर्बादी भी एक नैतिक मुद्दा हो सकता है.

पर्यावरण पर खराब असर डालता है

पानी की तुलना में दूध का उत्पादन पर्यावरण पर अधिक प्रभाव डालता है. डेयरी उद्योग में गायों के पालन, चारे की खेती, और दूध के प्रसंस्करण के लिए बड़ी मात्रा में पानी, ऊर्जा, और अन्य संसाधनों की आवश्यकता होती है. दूध से नहाने का मतलब है कि इन संसाधनों का उपयोग केवल स्नान के लिए किया जा रहा है, जो पर्यावरण की दृष्टि से उचित नहीं कहा जाएगा.वहीं पानी का उपयोग पर्यावरण पर कम प्रभाव डालता है.

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मिस्र की शासिका क्लियोपेत्रा अपनी सुंदरता और जवां रहने के लिए दूध से नहाया करती थी. (news18)

ये असामान्य भी, रोज नहीं किया जा सकता

भारत में दूध का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. इसे पवित्र माना जाता है. पूजा-पाठ में उपयोग किया जाता है. लिहाजा दूध से नहाना सामाजिक रूप से असामान्य माना जा सकता है. इसे संसाधनों की बर्बादी के रूप में देखा जा सकता है. पानी से नहाना सामाजिक रूप से स्वीकार्य और रोजमर्रा का अभ्यास है.

साइंस क्या कहती है

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दूध से नहाने के लाभों पर सीमित शोध उपलब्ध है. कुछ अध्ययनों के अनुसार, दूध में मौजूद लैक्टिक एसिड और प्रोटीन त्वचा को मॉइस्चराइज और एक्सफोलिएट करने में मदद कर सकते हैं, लेकिन इन लाभों को सामान्य मॉइस्चराइजर्स और स्क्रब के माध्यम से भी प्राप्त किया जा सकता है, जो दूध से सस्ते और अधिक प्रभावी हो सकते हैं.

वैसे साइंस कहती है कि गर्म या गुनगुने दूध से नहाने से चिपचिपाहट का अहसास कम हो सकता है, क्योंकि गर्म दूध त्वचा पर आसानी से फैलता है और कम चिपकता है. ठंडा दूध अधिक चिपचिपा लग सकता है.

चिकित्सकीय रूप से, दूध से नहाना कुछ लोगों के लिए त्वचा की जलन या एलर्जी का कारण बन सकता है. विशेष रूप से, जिन लोगों को डेयरी उत्पादों से एलर्जी है, उनके लिए यह हानिकारक हो सकता है. पानी से नहाना इस मामले में अधिक सुरक्षित और बेहतर विकल्प है.

बेशक लंबे समय तक दूध से नहाने से त्वचा मुलायम और चमकदार हो सकती है, लेकिन अगर इसे ठीक से धोया नहीं गया, तो त्वचा संबंधी समस्याएं जैसे मुंहासे या फंगल इंफेक्शन हो सकते हैं. महीने का 6000-8400 रुपये का खर्च भी आर्थिक बोझ बन सकता है. वैसे कभी-कभार नहाना कोई बुरा नहीं.

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