बहराइच के बबलू ने बेरोजगारी से जूझते हुए पिता से सीखी कुल्फी बनाने की कला को अपना व्यवसाय बना लिया. शुद्ध दूध, मेवा और पारंपरिक विधि से बनी उनकी कुल्फी गर्मियों में लोगों की पहली पसंद बन गई है.
- बबलू ने कुल्फी व्यवसाय से बदली अपनी किस्मत.
- शुद्ध दूध और मेवा से बनी कुल्फी लोगों की पसंद.
- बबलू की कुल्फी बहराइच में मशहूर और प्रेरणा बनी.
बहराइच- उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के बडिहीन बगिया निवासी बबलू कभी रोजगार के लिए दर-दर भटकते थे. नौकरी न मिलने के कारण वह मानसिक रूप से बेहद परेशान हो गए थे. ऐसे समय में उन्होंने अपने पिता से सीखी कुल्फी बनाने की कला को ही रोज़गार का जरिया बना लिया. यह फैसला उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट बन गया. आज बबलू की कुल्फी न सिर्फ इलाके में मशहूर है, बल्कि लोग दूर-दूर से इसका स्वाद लेने आते हैं.
बबलू की कुल्फी की खासियत इसकी शुद्धता और पारंपरिक विधि है. इसमें शुद्ध दूध, खोया, मेवा, केसर और पिस्ता जैसी समाग्रियों का प्रयोग किया जाता है. दूध को तब तक उबाला जाता है जब तक वह हल्का लाल और गाढ़ा न हो जाए, जिससे स्वाद दोगुना हो जाता है. कुल्फी 30 से 90 रुपये के बीच बिकती है और घर पर भी आसानी से बनाई जा सकती है.
फटाफट नोट करें कुल्फी की रेसिपी!
- सबसे पहले शुद्ध दूध को गाढ़ा होने तक उबालें.
- इसमें खोया, बादाम, पिस्ता और केसर मिलाएं.
- ठंडा होने दें और फिर इसे छोटे-छोटे लोहे के डिब्बों में डालें.
- बर्फ के घड़े में रखकर जमा लें.
- जमने के बाद इसे काटकर फालूदा सेवई के साथ परोसें.
पीतल के घड़े में बिकती है कुल्फी
गर्मियों के दिनों में बबलू कुल्फी के ठेले के साथ शहर की गलियों में घूमते हैं. वह पीतल के पारंपरिक घड़े में बर्फ के साथ कुल्फी रखते हैं, जिनमें लोहे के डिब्बे रहते हैं. इन डिब्बों में जमी हुई कुल्फी को ग्राहक की मांग पर काटकर फालूदा सेवई के साथ परोसा जाता है. ठंडा बनाए रखने के लिए घड़े को बार-बार गीले लाल कपड़े से ढका जाता है.
बहराइच की पहचान बन गई है बबलू की कुल्फी
बबलू की कुल्फी बहराइच शहर के घंटाघर से लेकर पीपल तिराहा तक बिकती है. कहीं भी आप नजर घुमाएंगे तो आपको बबलू कुल्फी बेचते हुए मिल जाएंगे. स्थानीय लोगों के बीच बबलू एक पहचान बन चुके हैं और उनका यह देसी व्यवसाय सैकड़ों बेरोजगारों के लिए प्रेरणा बन गया है.
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