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“जो खतरा बन सकता है, उसे खतरा बनने से पहले ही मिटा दो” — यही है इज़रायल की रक्षानीति का मूल मंत्र. इज़रायल ने बीते कुछ दशकों में यह बार-बार साबित किया है कि वह किसी भी देश को अपने खिलाफ परमाणु शक्ति बनने नहीं देगा. चाहे इराक का ओसिराक रिएक्टर हो, सीरिया का अल-किबार ठिकाना या फिर ईरान की छुपी हुई परमाणु प्रयोगशालाएं— इज़रायल ने न सिर्फ इन्हें पहचान कर हमला किया, बल्कि उन्हें इतिहास के पन्नों से मिटा दिया. यह कहानी है उन ख़ुफ़िया ऑपरेशनों और एयरस्ट्राइक्स की, जिनके पीछे थी Mossad की पैनी नज़र और एक राष्ट्र की असाधारण सैन्य रणनीति.

ऑपरेशन ओपेरा (Iraq) – 1981
7 जून 1981 को शाम 4 बजे, इज़रायल के एत्ज़ियॉन एयरबेस से 14 फाइटर जेट उड़े. करीब 5:30 बजे उन्होंने इराक के “ओसिराक न्यूक्लियर रिएक्टर” पर हमला किया और उसे पूरी तरह से तबाह कर दिया.

ऑपरेशन ओपेरा में हिस्सा लेने वाले पायलट / Source: www.idf.il

इराक ने अपने तानाशाह सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में 1959 से ही परमाणु कार्यक्रम शुरू किया था, लेकिन असली रफ्तार 1970 के दशक में मिली जब इराक ने फ्रांस के साथ समझौता किया. इसके तहत इराक को दो न्यूक्लियर प्लांट मिलने वाले थे—तमुज़ 1 और तमुज़ 2. इज़रायल को लगा कि अगर ये प्लांट पूरे हो गए, तो इराक परमाणु बम बना सकता है और ये उसके लिए बड़ा खतरा होगा. इसी वजह से इज़रायल ने पहले ही इसे नष्ट करने की योजना बना ली.

ऑपरेशन ओपेरा में हिस्सा लेने वाले फाइटर F16 / Source: www.idf.il
हमले में 8 F-16 और 6 F-15A फाइटर जेट का इस्तेमाल किया गया. इसके अलावा, करीब 60 अन्य सपोर्ट विमान भी ऑपरेशन में शामिल थे. सभी फाइटर जेट बिना रेडियो और बिना रडार ऑन किए, चुपचाप 1,100 किलोमीटर तक उड़कर इराक पहुंचे. वहां हर जेट ने 5-5 सेकंड के अंतर से बम गिराए. हमला इतना सटीक था कि ओसिराक रिएक्टर पूरी तरह खत्म हो गया.

ऑपरेशन ऑर्चर्ड (Syria) – 2007
6 सितंबर 2007 को इज़रायल ने ‘ऑपरेशन ऑर्चर्ड’ नाम का एक गुप्त सैन्य अभियान चलाया और सीरिया के अल किबर इलाके में बने एक न्यूक्लियर रिएक्टर को चुपचाप नष्ट कर दिया. यह ठिकाना सीरियाई सेना का था और माना जाता है कि इसे उत्तर कोरिया की मदद से बनाया गया था.

मार्च 2007 में, इज़रायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने एक गुप्त ऑपरेशन में वियना (ऑस्ट्रिया) में सीरिया के एटोमिक एनर्जी कमीशन के प्रमुख के घर पर छापा मारा. वहां से उन्हें पक्के सबूत मिले कि सीरिया, उत्तर-पूर्वी हिस्से में यूफ्रेट्स नदी के पास एक गुप्त न्यूक्लियर रिएक्टर बना रहा है. इसके बाद कई महीनों तक इज़रायली सरकार और अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश प्रशासन के बीच गुप्त बातचीत चली. अंत में, इज़रायल के प्रधानमंत्री एहुद ओलमेरट ने उस ठिकाने को खत्म करने की मंज़ूरी दी.

8 इज़रायली फाइटर जेट्स को इस मिशन में लगाया गया. ये विमान सीरिया और तुर्की की सीमा के पास से उड़ते हुए गए और रात करीब 1 बजे उस ठिकाने को निशाना बनाकर पूरी तरह तबाह कर दिया. यह पूरा ऑपरेशन इतनी चुपचाप और सटीकता से हुआ कि सीरिया को भी कुछ समय तक इसकी भनक नहीं लगी.

इज़रायल की ये कार्रवाइयाँ सिर्फ हवाई हमले नहीं थीं, बल्कि एक विचारधारा का प्रतीक थीं—”जीने का अधिकार, लेकिन बिना डर के”. चाहे दुश्मन कितना भी दूर हो, चाहे खतरा अभी अधूरा हो—अगर वह इज़रायल की सुरक्षा को छूने का सपना भी देखता है, तो उसे नींद से पहले ही हमेशा के लिए सुला दिया जाता है. मोसाद की चुपचाप चलती चालों और इज़रायली वायुसेना की दहाड़ मिलकर वो रणनीति बनाते हैं, जिसे दुनिया “प्रिवेंटिव डिफेंस” यानी “पूर्व-संरक्षण” के रूप में जानती है. यही वजह है कि जब बात आती है अस्तित्व की लड़ाई की, तो इज़रायल चेतावनी नहीं देता—वो सीधे कार्रवाई करता है.

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