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नई दिल्ली45 मिनट पहले

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मडर्स डे मई के दूसरे रविवार को मनाया जाता है।

बचपन में कोई अतिथि या गुरुजन हमारे घर आते तो बातों-बातों में पूछते, ‘बोलो तो बेटी, पिताजी ज्यादा अच्छे हैं या मां?’ मैं एक बार पिताजी की ओर देखती, एक बार मां की ओर। फिर झट से बोल देती, ‘मां ज्यादा अच्छी है।’ मां ज्यादा अच्छी है कहने का मतलब यह नहीं है कि पिताजी अच्छे नहीं हैं।

अपनी नन्हीं-सी बुद्धि से मैंने सिर्फ इतना समझा था कि दुनिया में मां का स्थान कोई नहीं ले सकता। बड़ी होकर मेरी गृहस्थी बसी, मैं मां बनी। मां बनने के बाद मैंने समझा- संतान का मुंह देखकर जीवन के सारे दुःख-कष्ट भूल जाना ही मातृत्व है। मां हमेशा यही दुआ करती है कि उसके बच्चे अच्छे इंसान बनें, अपने पैरों पर खड़े हों।

वर्ष में एक बार, मई महीने के दूसरे रविवार को ‘मदर्स डे’ यानी ‘मातृ दिवस’ मनाया जाता है, मां को याद करने के लिए। लेकिन मैं अपनी मां को हर दिन याद करती हूं। अकेले होने पर कई बार मेरे अंदर एक नन्हा-सा बच्चा मानो चंचल हो उठता है, मां की गोद, उसके आंचल की छाया हमेशा ढूंढ़ता रहता है।

मेरा अस्तित्व, मेरा व्यक्तित्व, मेरा परिचय- सब मेरी मां की देन है। उन्हीं की सारी बातें अक्षरशः मानते हुए आज मैं एक अच्छी मां बन पाई हूं। शिक्षक, फिर काउंसलर, उसके बाद विधायक, मंत्री, राज्यपाल और अब राष्ट्रपति के रूप में मैंने अनेक दायित्व निभाए हैं, निभा भी रही हूं। लेकिन इन सबके बीच अपने अंदर के मातृत्व को मैंने हमेशा बनाए रखा है।

मातृत्व और नेतृत्व दोनों एक ही लय-ताल में चल सकते हैं। मुझे लगता है, हर मां में मातृत्व और नेतृत्व ये दोनों विशेषताएं होती हैं, क्योंकि नेतृत्व मां की सहजात प्रवृत्ति है। प्रकृति में झांकने पर पता चलता है कि अनेक प्रजातियों में बच्चों के लिए आहार की तलाश के लिए मां ही प्रयास करती है। हाथियों के झुंड का नेतृत्व हमेशा मां-हाथी ही संभालती है।

मानव समाज में भी सदियों से यह धारा प्रवाहित है। हम सभी जानते हैं कि बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में पूरे भारत में ब्रिटेन विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ रखा था। उन आंदोलनों के नेतृत्व का एक बड़ा हिस्सा हमारी मातृ-शक्ति के हाथों में था। इसीलिए समाज के हर स्तर तक स्वराज्य और क्रांति का संदेश पहुंच पाया था एवं विदेशी शासन का अंत भी हुआ था। संविधान सभा में भी पंद्रह महिला सदस्य थीं और संविधान निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

स्वाधीन भारत की माताओं के कल्याण के लिए केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों की ओर से अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। हर्ष की बात है कि इन दिनों माताओं को 26 सप्ताह अर्थात साढ़े छह महीने का मातृत्व अवकाश दिया जा रहा है। नवजात शिशु की सही देखभाल करने के साथ ही मां को पर्याप्त विश्राम देना सुनिश्चित करने की दिशा में भारत सरकार निरंतर प्रयास कर रही है।

प्रधानमंत्री मातृ-वंदना योजना के जरिए गर्भवती माताओं को प्रोत्साहन राशि दी जाती है। गर्भवती एवं दूध पिलानेवाली माताओं को पोषक आहार उपलब्ध कराने के लिए सरकार की ओर से ‘सक्षम आंगनवाड़ी एवं पोषण 2.0’ अभियान चलाया जा रहा है।

व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर हम सबका मां के लिए प्रतिदान आवश्यक है। यह सच है कि मां को सम्मान देने के लिए हम मातृ दिवस मनाते हैं, पर इस दिवस को मनाने का उद्देश्य सिर्फ सम्मान देने तक ही सीमित न रह जाए। बच्चे का भविष्य बनाने में मां के दायित्वबोध के प्रति भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। उदाहरणस्वरूप, आज के चकाचौंध भरे प्रतियोगितापूर्ण परिवेश में अपने सामर्थ्य के अनुसार संतान को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए हर मां तत्पर रहती है।

अतः स्मार्टफोन के इस युग के बच्चे मोबाइल हैंडसेट के जरिए शिक्षा प्राप्त करते हैं और कमरे की चारदीवारी में ही सिमट कर रह जाते हैं उनके दिन-रात। मैं चाहती हूं, आज की माताएं अपने बच्चों को बाहरी दुनिया से परिचित कराने की दिशा में भी सजग रहें। उन्हें समाज के विभिन्न तत्वों और उपादानों से अवगत कराने में मदद करें। एक जिम्मेवार मां के रूप में अपने बच्चों को तकनीकी ज्ञान का लाभ अवश्य प्रदान करें, परंतु उन्हें तकनीकी का शिकार न होने दें।

सहिष्णुता, मां का अंतर्निहित गुण है। कहावत है, कहने वाला महान नहीं होता, महान होता है सहने वाला। अतः मां की सहनशीलता ने ही उसे महीयसी बनाया है। शायद इसीलिए हम न जाने कब से धरती को, पृथ्वी को, नदी और प्रकृति को मां मानते आए हैं। इस तरह न जाने किन-किन रूपों में हम मां की कल्पना करते हैं। अनेक प्राचीन सभ्यताओं में मां को देवी या अधिष्ठात्री का आसन दिया गया है। हमारे पुराणों के पृष्ठ देवकी मां और माता यशोदा जैसी माताओं के यशोगान से मुखरित हैं।

मां के बिना सभ्यता की स्थिति या विस्तृति की कल्पना नहीं की जा सकती। मातृ दिवस के इस शुभ अवसर पर हम सिर्फ मां को ही क्यों, दादी मां, मौसी मां, नानी मां के स्नेह, श्रद्धा और योगदान को भी याद करें। हर मां की कथा, कहानी और उपदेश याद करके हम सब भावी पीढ़ी को सभ्य, शिक्षित और संवेदनशील बनाएं एवं मातृ दिवस के इस पावन अवसर पर हम सब अटूट निष्ठा के साथ भारत माता की सेवा करने का संकल्प लें।

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