Pahalgam Terror Attack Politics: पहलगाम में हिन्दू टूरिस्टों के नरसंहार के बाद पूरे देश में उबाल है. हर तरफ से बदला लेने की मांग उठ रही है, इस बीच कांग्रेस के एक जिम्मेदार नेता ने विवादित बात कह दी है.
हाइलाइट्स
- पहलगाम में हिन्दू टूरिस्टों के नरसंहार के बाद पूरे देश में गम और गुस्सा
- कांग्रेस के नेता बीके हरिप्रसाद ने पीएम मोदी को लेकर कही बड़ी बात
- आतंकी हमले के बाद भारत के तेवर सख्त, पाकिस्तान की हालत खराब
नई दिल्ली. पहलगाम में हिन्दू पर्यटकों के नरसंहार से देशभर में गम और गुस्से का माहौल है. हर तरफ से एक ही बात की डिमांड की जा रही है- आतंकवादियों को न भूलने वाला सबक सिखाया जाए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मधुबनी रैली के बाद रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ में इस बर्बर नरसंहार का जिक्र करते हुए कहा कि हमले के पीड़ितों को न्याय दिलाया जाएगा. बता दें कि जब पहलगाम में हमला हुआ था, उस वक्त पीएम मोदी सऊदी अरब के दौरे पर थे. बैसरन घाटी में दो दर्जन से ज्यादा निर्दोष देशवासियों का खून बहने की सूचना मिलते ही उन्होंने बीच में ही अपना दौरा छोड़कर वापस भारत लौट आए. उन्होंने एयरपोर्ट पर ही महत्वपूर्ण बैठक भी की थी. इसके बावजूद कुछ नेता विवादित बोल बोलने से बाज नहीं आ रहे हैं. कांग्रेस के सीनियर लीडर बीके हरिप्रसाद ने कहा कि पीएम मोदी जम्मू-कश्मीर तक नहीं गए.
कांग्रेस नेता बीके हरिप्रसाद ने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट शेयर किया है. उन्होंने लिखा, ‘कोई यह नहीं समझ सका कि पीएम मोदी सऊदी अरब से वापस क्यों लौटे? वह जम्मू-कश्मीर नहीं गए. उन्होंने ऑल पार्टी मीटिंग में भी हिस्सा नहीं लिया. हमले के बाद उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं किया. वह घायल पीड़ितों से मिलने भी नहीं गए. जिन्होंने अपने परिजनों को खोया, उनसे भी उन्होंने मुलाकात नहीं की. क्या वह केवल बिहार में चुनाव रैली करने के लिए वापस लौटे थे? क्या राष्ट्रीय शोक से राजनीति ज्यादा महत्वपूर्ण है?’
बीके हरिप्रसाद का एक्स पर पोस्ट.
मणिशंकर अय्यर के बोल
मणिशंकर अय्यर ने एक बार फिर विवाद खड़ा कर दिया. 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए टेरर अटैक को लेकर था. अय्यर ने कहा था कि पहलगाम की घटना ‘विभाजन के अनसुलझे सवालों’ को दर्शाती है. इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए अय्यर ने कहा, ‘बहुत से लोगों ने विभाजन को रोकने की कोशिश की, लेकिन यह इसलिए हुआ क्योंकि गांधी और पंडित नेहरू जैसे लोगों और जिन्ना और कई अन्य मुसलमानों के बीच भारत की राष्ट्रवाद की प्रकृति और इसकी सभ्यता की विरासत के बारे में मूल्यों और आकलन में अंतर था…जो जिन्ना से सहमत नहीं थे.’
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